राजकुमार रजक
सन 2021, गांव के किनारे भागती हुई महा-रेलगाड़ी! ओपू और दुर्गा रेलगाड़ी को देखने की जुगत लगा दौड़ रहे हैं! प्रतिदिन सैकड़ों किलोमीटर दौड़ती यह रेल ओपू और दुर्गा के गांव से निकलती है, क्योंकि इनके गांव के धान के खेतों की जगह बहुत बड़े हिस्से में ‘मेक इन इंडिया’ की परियोजना का विद्युतीय कॉरिडोर भी है! रेल को देखने से ओपू और दुर्गा की नजर संतुष्ट नहीं होती है। आखिर रेल महा-रफ्तार से भागती उनकी आंखों के सामने से ओझल हो जाती है! ओपू और दुर्गा एक दूसरे को आश्चर्य से ताकते रहते हैं। दोनों अपने गांव और आस-पड़ोस के गांव में स्कूल खोजते हैं कि वे इसका मतलब मास्टरजी से पूछेंगे। पर पड़ोसी गांव के स्कूल में आरटीआइ के तहत उनका नामांकन तो है, लेकिन कक्षा नहीं, स्मार्ट स्कूल नहीं और उन्हें मास्टरजी रोक देते हैं। ओपू और दुर्गा के प्रश्न के इतर मास्टरजी उनको नौकरी कैसे करनी है, का उपदेश दे देते हैं।
इसके बाद इंडिया के औद्योगिक कॉरिडोर में नवीन वैश्विक परियोजनाओं के राजमार्ग पर भविष्य का शेर छलांग लगाने के लिए अडिग और व्याकुल खड़ा है। उसके जोश का सिंहनाद हमारे कानों को चीरते हुए सन्नाटे के आगोश में हमें वशीभूत करने पर तुला हुआ है। ‘मेक इन इंडिया’ की परियोजना को जब भी सुनता हूं तो चार्ली चैपलिन की फिल्म ‘मॉडर्न टाइम्स’ की बार-बार याद आती रहती है।
ऐसा लगता है कि भारत के मशीनीकरण, स्मार्ट शहरों के निर्माण में, सन-सन भागने वाली तेज-रफ्तार की रेलगाड़ियां अपना मुकाम एक उद्योग के दरवाजे से दूसरे उद्योग के दरवाजे की तरफ भूखे-प्यासे भाग रही हैं। स्मार्ट शहर के निर्माण का चश्मा लगाए नर के इंद्र ने आखिरकार अपनी अमृत बूंद से शिक्षा के फटे जूते पर किसी भी प्रकार की अमृत वर्षा नहीं की। आखिर आजम-ए-इंडिया ने बिना स्मार्ट शिक्षा के स्मार्ट शहर का निर्माण करने का यह नायाब फलसफा जो जाहिर किया है। ऐसा लगता है जैसे बिना जान-प्राण के खड़ा कोई बुत, जिसमें किसी भी प्रकार के कोई स्पंदन की गुंजाइश बची न हो। यह भविष्य का शेर जोशीली छलांग लगाएगा और जिसके भी बचे-खुचे खेत पर इसके पदचिह्न पड़े, वहां अनाज की जगह मशीन उगेंगी। मानवता का बीज केवल स्लोगन चाटते हुए निहत्थे स्मार्ट शहरों के सीने में दफन कर दिया जाएगा, जहां भ्रामक पावन युग इंद्र का भ्रमजाल बना अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहा है और रूपक बनने की चाह की चटनी चाट रहा है।
‘मेक इन इंडिया’ परियोजना की आड़ में भावी देश की बुनियाद में शिक्षा का कहीं भी जिक्र नहीं है। इससे यह प्रतीत होता है कि जिस देश में शिक्षा प्रक्रिया हाशिये पर होगी, वहां स्वायत्त के स्थान पर मानसिक गुलामी का संक्रमण विस्तारित होगा, जिसका विश्व इतिहास साक्षी है। संस्कृति की अगुआई करने वाले अपने सुनहरे कर-कमलों से मानवीय संस्कृति का गलाघोंटू बनी हुई सरकार! जिसके सपनों की फैक्ट्रियों से अत्याधुनिक गुलाम उत्पाद बन रोशनियों के शहर में भटक रहे होंगे। शिक्षा को प्यासी यह धरती हमें कोस रही होगी और हम ‘मेक इन इंडिया’ की परियोजनाओं में व्यस्त हो भविष्य का शिकार कर रहे होंगे।
ओपू और दुर्गा स्मार्ट शहरों में अपना प्रश्न लिए नट-बोल्ट की तरह खो गए हैं और चुंबकीय स्कूलों के स्थान पर उन्हें गुलाम होने की चौपाई रटवाई गई थी और जिसकी वजह से वे ‘मेक इन इंडिया’ के महाकुंभ में जाने कहां गुलाम हो भटक रहे होंगे।
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