भारत आज तेजी से विकास की ओर बढ़ रहा है, लेकिन सच यह भी है कि आज भी लोग कहीं न कहीं रूढ़िवादी विचारों से आजाद नहीं हुए हैं। रूढ़िवादी विचारधारा की मार स्त्रियों पर सबसे अधिक पड़ती है। स्त्री चाहे जिस भी वर्ग-जाति समूह की हो, वह जन्म से ही अपने आप को असहाय और अबला समझकर सदैव पुरुषवादी मानसिकता का शिकार होती रही है।
हम आधुनिक शहरों में रहते हैं और मान लेते हैं कि महिलाओं को बहुत सारी समस्याओं से छुटकारा मिल गया है। जबकि हालत यह है कि मासिक धर्म को लेकर चली आ रही रूढ़िवादी सोच का सामाजिक स्तर पर कई प्रकार से दुष्प्रभाव भी देखने को मिलता रहा है। मासिक धर्म के दिनों में महिलाओं को अछूत मानना, उन्हें घर के काम न करने देना पूजा-पाठ के योग्य न मानना आम है।
छोटी उम्र में लड़कियों की शादी करवाना भले ही हमारे देश में बहुत पहले गैरकानूनी करार दिया गया है, लेकिन आज भी यह छिपते-छिपाते हो रही है। समय से पहले शादी होने के कारण लड़कियां शारीरिक रूप से परिपक्व नहीं हो पाती हैं और गर्भवती हो जाती है। रूढ़िवादी सोच के कारण ही समाज में आज भी असमानता देखी जा रही है, जिससे केवल एक व्यक्ति ही नहीं, पीढ़ी दर पीढ़ी प्रभावित हो रही है।
- मोहिनी राणा, भिवाड़ी, राजस्थान</strong>