कोरोना काल में बाकी संकट के बीच महंगाई ने लोगों की कमर तोड़ कर रख दी है। देश मे पूर्णबंदी और कर्फ्यू लगाया जा रहा है, जिसकी वजह से लोगों के रोजगार चौपट हो गए हैं। दूसरी ओर, बढ़ती हुई महंगाई आम आदमी की जान खा रही है। पेट्रोल और डीजल के दाम लगातार बढ़ते जा रहे हैं। सब्जियों के दाम आसमान छू रहे हैं। ऐसे में गरीब के घरों मे तो चूल्हा जलना भी बहुत मुश्किल हो रहा है।

जहां अमीरों को इस बात का डर है कि कहीं उन्हें कोरोना न हो जाए, वहीं गरीबों को पूर्णबंदी लगने का डर है, क्योंकि इसकी वजह से उनके घरों मे दो वक्त की रोटी भी मुश्किल है। इस वजह से गरीब अधिक गरीब होता जा रहा है। आज महंगाई का असर लोगों के स्वास्थ्य से लेकर उनकी रसोई तथा बाजारों तक भी दिख रहा है। ज्यादातर लोग बिना रोजगार के हैं। ऐसे में महंगाई की मार सहन कर सकना मुश्किल है।
’अंजली नरवत, फरीदाबाद, हरियाणा

गुम कहानियां

बदलते परिदृश्य में सब कुछ बदलता चला गया। बच्चे तो हैं, मगर बचपन गुम हो गया। दादी-नानी और मां लोरियां और कहानियां सुनाती थीं तो ज्ञानार्जन में वृद्धि होती थी। वहीं कोलाहल से दूर एकाग्रता का समावेश होता था। मीठी नींद जो अच्छे स्वास्थ्य का सूचक होती थी, वह इनसे प्राप्त होती थी। लेकिन वर्तमान में इलेक्ट्रॉनिक दुनिया की भागदौड़ भरी व्यस्ततम जिंदगी में बच्चों के लिए साथ बिताने का समय लोग नहीं निकाल पाते।

इसके अलावा, रिश्तेदारी का व्यावहारिक ज्ञान भी पीछे छूट-सा गया है। कहानी से कल्पनाओं की उत्पत्ति होती थी, वहीं मातृत्व का दुलार भी सही तरीके से प्राप्त होता था। अब यह चिंता सताने लगी है कि कही कहानियां सुनाने की प्रथा विलुप्त न हो जाए और बच्चे लाड़-प्यार और कहानियों से वंचित न हो जाएं।
’संजय वर्मा ‘दृष्टि’, धार, मप्र