विवादास्पद कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग को लेकर किसान बीते सात महीनों से दिल्ली की सीमाओं पर डेरा जमाए बैठे हैं। सरकार भी अपने रुख पर अडिग है। सरकार का कहना है कि कानूनों में संशोधन तो हो सकते हैं लेकिन कानून वापस नहीं लिए जाएंगे। अब तक सरकार और किसानों के बीच ग्यारह दौर की बैठकें हो चुकी हैं, पर सब बेनतीजा रहीं।

बात चाहे ब्रिटिश शासनकाल की हो या स्वतंत्र भारत की, आंदोलनों और सरकार का संबंध पुराना ही रही है। इस आंदोलन का असर बंगाल के विधानसभा और उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनाव में भाजपा को दिख भी चुका है। सरकार को अगले साल होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए इसका हल जल्द से जल्द निकालना चाहिए, वरना विधानसभा चुनावों में इसका असर साफ दिखेगा। किसानों की रणनीति अब देशभर में राजभवनों के घेराव की है। सवाल है कि अगर इसी तरह का रवैया बना रहा, किसान धरने पर बने रहे और सरकार आंदोलन की उपेक्षा करती रही तो गतिरोध और बढ़ेगा। ऐसा होना देश हित में किसी भी प्रकार से अच्छा नहीं है। इसलिए सरकार को किसानों के साथ गतिरोध को बढ़ाने के बजाय फिर से सकारात्मक माहौल में बात करने की जरूरत है।
’अजय धनगर, दिल्ली विवि, दिल्ली

धक्के खाते अभ्यर्थी

बिहार में राज्य स्तरीय सरकारी सेवा के लिए ऐसी कोई परीक्षा नहीं जिस पर उंगली नहीं उठी हो। पुलिस की दौड़ में कितने लोग हवालात में गए, लेकिन सरकार की नाकामी के चलते कितने योग्य अभ्यर्थियों को लिखित परीक्षा में असफल होना पड़ा। यही हाल बिहार लोक सेवा आयोग की चौसठवीं पीटी परीक्षा में हुई। एक प्रश्न गलत होने से नौ सौ उम्मीदवार बाहर हो गए थे। ऐसे करीब पांच-छह प्रश्न गलत थे। मामला पटना हाई कोर्ट तक पहुंचा भी, लेकिन नतीजे घोषित कर दिए गए। इसके बाद दो अभ्यर्थियों ने खुदकुशी कर ली थी, लेकिन सरकार के कान पर जूं तक नहीं रेंगी।

बिहार में शिक्षक पात्रता परीक्षा परिणाम (एसटीईटी) के नतीजे जारी होने के बाद एक बार फिर से बिहार बोर्ड सवालों के घेरे में है। अभ्यर्थियों का आंदोलन अब भी जारी है। कुल पंद्रह विषयों का नतीजा जारी होने के बाद वरीयता सूची के पेंच में अभ्यर्थियों का भविष्य फंस गया है। महिला अभ्यर्थियों के नतीजे में भी धांधली का आरोप है। महिला अभ्यर्थियों का आरोप है कि परीक्षा से पहले बोर्ड के अध्यक्ष आनंद किशोर ने कहा था कि टीईटी, एसटीईटी में सभी वर्ग की महिला अभ्यर्थियों को पैंतालीस प्रतिशत अंक लाने पर उत्तीर्ण किया जाएगा। लेकिन नतीजा आने के बाद सामान्य श्रेणी की महिला अभ्यर्थी ठगा महसूस कर रही हैं क्योंकि इस श्रेणी की महिला अभ्यर्थियों को पचास प्रतिशत पर उत्तीर्ण किया गया है। इससे हजारों अभ्यर्थी वरीयता सूची से बाहर हो गई हैं।

हैरानी की बात तो यह है कि इससे पहले आयोजित हुई एसटीईटी और टीईटी परीक्षा में महिला अभ्यर्थियों को पांच प्रतिशत की छूट दी गई थी, जबकि 2019 की परीक्षा में इसका लाभ नहीं मिला। हालांकि शिक्षा मंत्री ने ये भरोसा जरूर दिया कि सभी एसटीइटी उतीर्ण अभ्यर्थियों की बहाली होगी। लेकिन, जो अभ्यर्थी वरीयता सूची से बाहर हैं उन्हें यकीन नहीं हो रहा है कि अब बहाली कैसे होगी। इधर बीएसइबी यह जानकारी भी नहीं दे रहा है कि एसटीइटी पास कितने अभ्यर्थी विषयवार वरीयता सूची में नहीं आए हैं।

जाहिर है, ऐसे में अभ्यर्थियों के बीच असमंजस की स्थिति बनी हुई है। पंद्रह विषयों में वरीयता सूची में कुल 30675 अभ्यर्थी हैं, वहीं वरीयता सूची के आधार पर 6772 सीटें कम रह गई हैं। ऐसा इसलिए कि सभी एसटीइटी उतीर्ण अभ्यर्थियों को मौका नहीं दिया गया। इधर लगातार अभ्यर्थियों के हंगामे और आंदोलन के बाद शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव संजय कुमार ने आनन फानन में चार सदस्यीय कमेटी बना दी है जो विज्ञापन से लेकर वरीयता सूची तक की जांच में जुटी है। शिक्षा विभाग की मानें तो मंगलवार यानी 29 जून को कमेटी की रिपोर्ट शिक्षा विभाग को मिल जाएगी और उसके आधार पर सभी न्यूनतम अंक से अधिक अंक पाने वालो को बहाली का मौका दिया जाएगा।
’प्रसिद्ध यादव, बाबूचक, पटना