देश के आर्थिक विकास को गति देने के लिए कल-कारखाने जरूरी हैं। कारखानों में लाखों लोगों को रोजगार मिलता और सरकार को राजस्व की उगाही होती है, लेकिन सरकार कारखानों में सुरक्षा पर कोई विशेष ध्यान नहीं देती है (संपाद्रीय, 27 दिसंबर)। कारखाना मालिक को मजदूरों की सुरक्षा से अधिक अपने मुनाफा की चिंता रहती है।

बिहार के मुजफ्फरपुर में एक स्नैक्स फैक्टरी के बायलर फटने की वजह से छह मजदूरों की मौत हो गई और कई घायल हो गए। विस्फोट इतना भयानक था कि आसपास के तीन किलोमीटर के दायरे के सभी कारखाने की दीवारों पर दरार पड़ गई और शीशे टूट गए हैं।यह कारखाना प्रबंधन और सरकारी लापरवाही की पराकाष्ठा है। निश्चय ही वह बायलर बहुत पुराना रहा होगा। कारखाना प्रबंधक ने रखरखाव पर कोई ध्यान नहीं दिया और सरकार की ओर से कारखाना जांच की खानापूर्ति होती रही होगी।

इस तरह के कई हादसे देश में घटित हो चुके हैं। हर हादसे के बाद मुआवजे और जांच की घोषणा करना सामान्य-सी बात हो चुकी है, लेकिन कभी हादसों की जड़ तक जाने का प्रयास नहीं किया जाता है। इन हादसों की जिम्मेदारी तय होनी चाहिए और दोषियों पर हत्या का मुकदमा चलाया जाना चाहिए। सरकार को भविष्य में इस तरह के हादसों को रोकने के लिए कठोर कदम उठाना चाहिए।
’हिमांशु शेखर, केसपा, गया

नतीजों के संकेत

चंडीगढ़ नगर निगम के परिणामों से बीजेपी, कांग्रेस,अकाली दल और बसपा सकते में हैं। वहां कुल पैंतीस में से आम आदमी पार्टी को चौदह सीटें मिली हैं। भारतीय जनता पार्टी को बारह, और कांग्रेस को आठ सीटें मिली हैं। अकाली दल, बसपा गठबंधन को मात्र एक सीट पर संतोष करना पड़ा है। 2016 के नगर निगम चुनाव में स्थिति बिल्कुल उलट थी। तब कुल छब्बीस सीटों पर चुनाव हुए थे, जिनमें से बीस पर भाजपा ने शानदार जीत हासिल की थी, जबकि कांग्रेस को चार और अकाली दल को एक सीट मिली थी। इस बार भाजपा के चंडीगढ़ मेयर श्रीकांत शर्मा को भी हार का मुंह देखना पड़ा है।

सामान्यतया चंडीगढ़ नगर निगम में भाजपा और कांग्रेस के बीच टक्कर मानी जाती रही है, लेकिन इस बार के चुनाव को आम आदमी पार्टी ने त्रिकोणीय बना दिया था। इन चुनाव नतीजों का पंजाब के आगामी विधानसभा चुनाव में अवश्य प्रभाव पड़ेगा। भाजपा और कांग्रेस को भी अपने चुनाव प्रबंधन को आगामी चुनाव के लिए अलग ढंग से तैयार करना होगा। अकाली दल, बसपा गठबंधन के लिए यह एक बड़ी हार है। इस गठबंधन को अवश्य ही आगामी चुनाव को ध्यान में रख कर नई रणनीति अपनानी होगी।
’वीरेंद्र कुमार जाटव, नई दिल्ली<br>निरर्थक विरोध

नगालैंड में ‘अफस्पा’ को निरस्त करने की मांग हो रही है। केंद्र सरकार ने इस संबंध में एक समिति का गठन किया है। इसके पीछे सुरक्षाबलों की गोलीबारी में निर्दोष लोगों के मारे जाने की घटना है। सैनिकों को दोष दिया जा रहा है। सैनिकों को मिली सूचना का सैनिक ही पालन न करते, तो भी वही दोषी होते। मतलब दोनों बाजुओं से सैनिक ही दोषी होते। इस जटिल दुविधा में सैनिकों को अपनी ड्यूटी कैसे करनी चाहिए थी, इस बारे में कोई स्पष्ट रूप से नहीं बोलता है। ऊंट पर बैठ कर बकरी भगाना बहुत आसान है, लेकिन यह सैनिकों को तय करना होता है कि कौन-सी स्थिति में क्या करना है? राजनीतिक दलों की तरह उस स्थिति में शाब्दिक बुलबुले छोड़ना काम नहीं आता। सैनिकों को हथियारों की भाषा क्यों बोलनी पड़ी? यह घटना के बारे में जो समाचार पढ़ने में आए है, उससे देश को पता चला है।

नगालैंड विधानसभा ने सर्वसम्मति से अफस्पा वापस लेने का प्रस्ताव पारित कर दिया है। यह चौंकाने वाला है। अगर कल उस क्षेत्र में कानून निरस्त कर दिया जाता है और उग्रवादियों का कब्जा हो जाता है, तो सैनिक ही नागरिकों की रक्षा के लिए ढाल बन कर खड़े होंगे। उस समय ऐसे राजनीतिक नेता भी होंगे जो मांग करेंगे कि हमें अधिक सुरक्षा की आवश्यकता है, क्योंकि हमारी जान को खतरा है। उस वक्त उन्हें लोगों की सुरक्षा याद नहीं रहेगी।आशा करते हैं कि समिति ऐसी सिफारिशें नहीं करेगी, जो सैनिकों के मनोबल पर नकारात्मक प्रभाव डालती हों।अफस्पा को निरस्त करने का मतलब है बाघ के दांत-नाखून निकाल कर उसे शिकार पर भेजना। ऐसा क्यों हो रहा है? कानून वापस लेकर हमारे सैनिकों का अधिकार छीनने के विचार पर जोर दिया जा रहा है। संसद हो या राज्यों के विधान भवन, वहां अक्सर बेवजह हंगामे के चलते भारी वित्तीय नुकसान होता है। इस बारे में भी तुरंत कानून बने। आज तक इसे गंभीरता से नहीं लिया गया।

नगालैंड पर अफस्पा अधिनियम पर विचार करते समय, यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि देश के सबसे संवेदनशील सीमावर्ती क्षेत्रों, विशेष रूप से कश्मीर में तैनात सैनिकों को भी गठित समिति की सिफारिशों से परेशानी नहीं होनी चाहिए। कश्मीर में तैनात जवानों को यह न लगे कि नगालैंड में जो हुआ उस कारण जो सैनिक पूछताछ के चक्कर में फंस गए हैं, वह कल हमारे बारे में भी हो सकता है। अफस्पा कश्मीर में भी लागू है। अगर कश्मीर में नगालैंड जैसे कानून निरस्त करने की मांग होती है और उस कानून के विरोध के लिए उग्र प्रदर्शन किए जाते हैं, तो सैनिक देश की सीमाओं की रक्षा कैसे करें, यह भी स्पष्ट होना चाहिए।
’जयेश राणे, मुंबई, महाराष्ट्र

अनर्गल प्रलाप
छत्तीसगढ़ के रायपुर में आयोजित धर्म संसद में साधु कालीचरण द्वारा महात्मा गांधी को लेकर दिए गए विवादित बयान की जितनी निंदा की जाए कम है। जिस तरह कालीचरण ने गांधीजी की हत्या को जायज ठहराया वह कभी सभ्य समाज द्वारा स्वीकृत नहीं किया जा सकता। साधु संत तो ज्ञान की गंगा बहाने के लिए होते हैं, उनके मुख से इस तरह के बयान कहीं न कहीं देश की छवि को भी धूमिल करता है। ऐसे लोगों को सार्वजनिक मंचों से दूर रखना चाहिए।
’प्रदीप कुमार तिवारी, ग्रेटर नोएडा</p>