उसके बाद बाजार की रणनीति की तरह प्रचार-प्रसार और फिर उसी के दम पर देश के राज्यों में सरकार बनाने का सिलसिला जारी रहा। क्या एक देश की सत्ता के लिए सूचना माध्यमों को प्रचार माध्यम बना कर उनका सहारा लेना, लोगों के विश्वास को दरकिनार करना जायज है? हकीकत यह है कि जिन लोगों पर देशवासियों का विश्वास है, उसी का दुरुपयोग कर स्वार्थ को सिद्ध करने का काम किया जा रहा है।

जब भी सेना और राष्ट्र के सुरक्षा की बात आती है तो यह कह कर टाल दिया जाता है कि देश की सुरक्षा के खिलाफ बोलना देशद्रोह है। सवाल है कि जो लोग इसका फायदा उठा रहे हैं, वे कितने देश प्रेमी हैं? सेना का इस्तेमाल स्वार्थ सिद्ध करने के लिए करना, लोगों की भावनाओं और उनके विश्वास के साथ खेलना, क्या यही देशप्रेम और देशसेवा है? किसी ने कहा है कि राजनीति में सब जायज है।

जो लोग अपने भाषण में देश की अखंडता, संप्रभुता पर कोई सवालिया निशान नहीं खड़ा करना चाहते, क्या उन्हें परेशान करना सही है? क्या ऐसी भावनाओं का दुरुपयोग करना सही है? किसी भी देश और उसके नागरिक के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा सर्वोपरि है। जरूरत है लोगों के विश्वास को बनाए रखने के लिए पारदर्शिता के साथ काम किया जाए। अन्यथा जिस दिन लोगों का विश्वास कम हो जाएगा, वह किसी भी देश के लिए अच्छा नहीं कहा जा सकता।
’अमन जायसवाल, दिल्ली विवि, दिल्ली

हाशिये के लोग

कितनी अजीब बात है कि किसी राजनेता या अभिनेता के मरने पर ऐसा लगने लगता है मानो सारा देश ही शोक में डूब गया हो। अगर सरहद पर कोई जवान शहीद होता है तो उसके परिवार का दुख मानो सारे देश का दुख हो जाता है।

यह देश के प्रति जनभावनाओं का प्रतीक हो सकता है। लेकिन क्या हम भावनाओं के स्तर पर बंटे होते हैं? जब बात गरीब मजदूरों की आती है तो पता नहीं, सबको क्या हो जाता है। बस सरकार या संबंधित पदाधिकारियों की ओर से एक बयान आ जाता है कि इसकी जांच कराएंगे।

आखिर कब तक गरीब मजदूर सड़क के किनारे ऐसे ही रहेंगे? किसी न किसी को तो जवाबदेह बनना पड़ेगा! सरकार या फिर प्रशासन। आजादी के सात दशक से भी ज्यादा बीत चुके हैं और आज भी मजदूरों की आमदनी और उसकी हैसियत का जैसे कोई भाव नहीं है।
’अमित कुमार पांडेय, पीलीभीत, उप्र