जल के बिना जीवन की परिकल्पना करना कठिन है। 22 मार्च को विश्व जल दिवस के रूप में मनाया जाता है। जल संरक्षण करना बहुत जरूरी है। अधिकांश सभ्यताएं नदी के किनारे ही विकसित हुर्इं। यों तो पृथ्वी पर 71 फीसद हिस्सा जल है। लेकिन पीने योग्य पानी महज एक फीसद है। यह बेवजह नहीं है कि भारत के भी कई हिस्सों में भी पानी की कमी एक बड़ी समस्या है।

खासतौर पर बुंदेलखंड, सोनभद्र में पानी की भारी कमी है। उसके सरंक्षण को लेकर हम सबको सजग होना पड़ेगा और जल संरक्षण के प्रति सभी को जागरूक करना होगा। पर हम देखते हैं कि जल संरक्षण के नाम पर हम सिर्फ कोई सालाना दिवस के रूप में याद कर लेते हैं तो इतने से क्या जल संरक्षण हो जाएगा? घर से लेकर बाहर तक जगह-जगह पानी की टोंटी को खुला छोड़ देने और टंकी से पानी लगातार बहने को लेकर शायद ही लोग कभी गंभीर देखे जाते हैं।

जबकि लोगों को यथासंभव पानी को संरक्षित करना चाहिए। बल्कि वर्षा के पानी को भी तालाबों में संरक्षित कर उसे बहने से रोकना चाहिए। पानी की बचत आज की सबसे महत्त्वपूर्ण आवश्कता है। बढ़ती आबादी और बढ़ते औद्योगीकरण के कारण शहरी आवास में वृद्धि हुई है और पानी की खपत बढ़ रही है। मनुष्य जितना ज्यादा पानी का उपयोग करता है, उतना वह उसके संरक्षण के विषय में नहीं सोचता है।
सचिन पांडेय, प्रयागराज, उप्र

युद्ध की मार

रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध के अब महीने पूरे होने वाले हैं। अगर समझौता वार्ताएं इसी तरह बेनतीजा समाप्त होती रहीं तो परमाणु युद्ध की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। युद्ध की त्रासदी यों तो हर किसी पर भारी होती है, पर मासूम बच्चे और महिलाएं इस त्रासदी के सबसे भयंकर परिणाम भुगतते हैं। 21 मार्च की एक खबर के अनुसार रूस यूक्रेन का युद्ध मासूम बच्चों और महिलाओं के लिए मानव तस्करी और बंधुआ मजदूरी जैसे संकट लेकर आया है। यूनिसेफ की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि अब तक करीब 15 लाख यूक्रेनी बच्चे शरणार्थी बन चुके हैं।

यह एक भयावह चेहरा है कि इन बेसहारा बच्चों और महिलाओं को मानव तस्करी और बंधुआ मजदूरी जैसे अपराधों का शिकार बनना पड़ रहा है। बच्चों और महिलाओं को युद्ध के बहाने यह सजा क्यों दी जा रही है? एक आरोप के अनुसार रूसी सेना यूक्रेन से, अपने देश के लिए बंधुआ मजदूर भी जुटा रही है । शरणार्थी और विस्थापित बच्चे अपने परिवार से बिछड़ कर मानव तस्करी और शोषण जैसे अपराधों के जल्दी शिकार हो रहे है। यूक्रेन के पड़ोसी देशों, जहां ऐसे बच्चों और महिलाओं ने शरण ली हुई है, उन देशों को यूनिसेफ और संयुक्त राष्ट्र जैसी वैश्विक संस्थाओं की मदद से शरणार्थी बच्चों और महिलाओं की सुरक्षा के लिए कड़े कदम उठाने चाहिए।

इसके अतिरिक्त गुटनिरपेक्ष देशों को शरणार्थी बच्चों और महिलाओं की मदद के लिए ऐसे देशों को आर्थिक सहायता देनी चाहिए जो इन बच्चों और महिलाओं को अपने यहां शरण दे रहे है, ताकि बच्चे और महिलाओं की सुरक्षा के साथ-साथ उनके पुनर्वास के प्रबंध मानवीय आधार पर किए जा सके। बच्चों और महिलाओं को युद्ध का शिकार बनाया जाना किसी भी सभ्य समाज के लिए स्वीकार्य नहीं नही हो सकता।
राजेंद्र कुमार शर्मा, रेवाड़ी , हरियाणा