अगर कोई गलती करता है तो उसकी गलतियों को सुधारने का मौका देना चाहिए। गलतियां भी उन्हीं से होती हैं जो काम करते हैं। हमारे समाज कि कभी-कभी कुछ ऐसी खबरें सामने होती हैं जो लगती तो मामूली हैं, लेकिन वे होती हैं दिल को झकझोर करने वाली। कभी-कभी हम साक्षात कुछ ऐसा भी देखते हैं कि कुछ लोगों पर पैसे और पद का घमंड इस कदर हावी हुआ होता है कि वे मजबूर लोगों की मजबूरी का भी गलत फायदा उठाते हैं।
कुछ महीने पहले देश में एक जगह एक पढ़ी-लिखी महिला ने सोसायटी के एक गार्ड को इसलिए थप्पड़ मार दिए थे, क्योंकि गार्ड को गेट खोलने के लिए चंद सेकेंड की देरी हो गई थी। हालांकि पुलिस ने इसमें हस्तक्षेप करते हुए महिला के खिलाफ मामला भी दर्ज किया था। लेकिन बहुत ही शर्मनाक और निंदनीय हरकत की तरह इसे देखा जाना चाहिए, जिसमें पैसे और पद के अहंकार में आकर किसी ने सुरक्षा गार्डों के साथ बदतमीजी की।
ऐसे न जाने कितने मामले ऐसे देश में हर रोज होते होंगे, लेकिन वे सुर्खियों में नहीं आ पाते हैं। कभी-कभी रेहड़ी पर सामान बेचकर जो गरीब लोग बहुत ही मुश्किल से घर चलाते हैं, उन्हें भी कुछ धनवान या सरकारी बाबू परेशान करते होंगे। गरीब लोग पुलिस में भी अपनी शिकायत नहीं करते होंगे, क्योंकि वे देश के कानून बारे भी जानते हैं कि उससे किसकी मदद होनी है। गरीबों की सुनवाई तो होनी नहीं!
जिन लोगों को बचपन में शिक्षा के साथ नैतिकता और इंसानियत का सबक न घर में और न ही शिक्षा संस्थानों में पढ़ाया जाता हैं, ऐसे लोग बेशक पैसे से अमीर हो जाएं, किसी उच्च पद पर बैठ जाएं, लेकिन वे पढ़-लिखकर और अमीर बनकर भी सभ्य और समझदार नहीं कहलाते हैं। यह कहना उचित होगा कि जो लोग भी मजबूर और जरूरतमंदों के साथ बदतमीजी करते हैं, उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि वे लोग इनकी वजह से ही सुरक्षित रहते हैं और मजदूरों, कामगारों कि मेहनत की बदौलत ही शहरी लोग अपने सुख के लिए सहूलियतें पाते हैं।
राजेश कुमार चौहान, जलंधर