जैसे बिना कठोर साधना के साध्य का स्वर्ग नहीं मिलता, सफलता का शीर्ष टेढ़ी-मेढ़ी खौफनाक पगडंडियों से होकर ही पाया जाता है और बिना तपस्या के वरदान नहीं मिलता, वैसे ही छब्बीस जनवरी साधना का कंटकाकीर्ण पथ और कठोर तपस्या है, जिसके फलस्वरूप पंद्रह अगस्त यानी आजादी का दिन एक सिद्धि है। शहीद सपूतों के बलिदान और महात्मा गांधी के कठिन परिश्रम, कठोर तपस्या और अनंत संघर्ष के फलस्वरूप मिली आजादी से सभी भारतीय गौरवान्वित हैं।

सर्वत्र शक्ति, सादगी और समुन्नति के प्रतीक, अशोक के चक्र की तरह अबाध गति, अविराम संघर्ष, अनंत साधना का संदेश देने वाले तिरंगे झंडे को फहराते हुए राष्ट्र की वेदी पर प्राणों की बलि चढ़ाने वाले अमर शहीदों के समाधियों पर श्रद्धा और भक्ति के फूल चढ़ाए जाते हैं। इस परंपरा को देश, प्रदेश और सभी संस्थाओं में सम्मानपूर्वक मनाया जाता है। लेकिन अफसोस कि इसके उद्देश्यों को भूल जाते हैं, दायित्वों से मुंह मोड़ लेते हैं। अपनों को झूठे सपने दिखाकर सबको भ्रमजाल में फंसाते हैं। निहित स्वार्थ के कारण देश एवं संस्थाओं की प्रगति रुक जाती है।

अब इस दिन हम सभी को एकजुट होकर अपने समाज, संस्थाओं, राज्य और राष्ट्र की प्रगति के लिए अपने दायित्वों को पूरा करने का संकल्प लेने की जरूरत है। प्रतिज्ञा करने की जरूरत है कि हम भारत की आजादी और भौगोलिक सीमा को सदैव सुरक्षित रखेंगे, धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक व्यवस्था को बनाए रखेंगे, अंधविश्वास को छोड़ कर, रूढ़िवादी सांप्रदायिक प्रतिबंधों को तोड़कर कराहती हुई मानवता की रक्षा करेंगे, इंसानियत और मुहब्बत के साथ ‘हिंदू, मुसलिम, सिक्ख, ईसाई… आपस में हैं भाई-भाई’ के भाव को सार्थक बनाएंगे। भारत की खुशहाली, समृद्धि और प्रगति के लिए ईमानदारी पूर्वक अपने दायित्वों का निर्वहन करेंगे।
कामता प्रसाद, भभुआ, बिहार।

समावेशी नीतियां

आम लोगों को यही उम्मीद होती है कि बजट रोजगार सृजन को बढ़ावा देने के लिए एक खाका तैयार करेगा। रेलवे, रक्षा, हवाई अड्डे, सिंचाई, शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और सड़कों के लिए बढ़ा हुआ आबंटन बुनियादी अपेक्षाएं हैं। उम्मीद है कि कर के स्तर और कटौतियां बढ़ाकर वेतनभोगी वर्ग को बड़ी राहत दी जी जकेगी। मध्यम वर्ग के हाथों में बढ़ी हुई आय न केवल खपत को बढ़ावा देगी, बल्कि सेवा क्षेत्र को भी मदद करेगी।

एक देश के रूप में भारत में करदाताओं का प्रतिशत कम है और जीडीपी अनुपात में हमारा कर काफी कम है। ऐसी स्थिति में अमीर किसानों की कृषि आय पर टैक्स लगाया जाना चाहिए, ताकि कर का दायरा बढ़ाया जा सके। शुरुआत में पचास लाख रुपए से ऊपर की कृषि आय पर टैक्स लगाया जा सकता है।

कम दरों पर ऋण उपलब्ध कराने के लिए एक वैकल्पिक तंत्र हो सकता है। नवाचार की मदद के लिए ईएसओपी के लिए कर नियमों में संशोधन पर विचार किया जा सकता है। अचल संपत्ति क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए आवास ऋण पर ब्याज के लिए कटौती को वर्तमान दो लाख रुपए से बढ़ाया जा सकता है। इससे एक ओर आम आदमी और कारपोरेट भारत की आकांक्षाओं को संतुलित करने और दूसरी ओर राजकोषीय अनुशासन बनाए रखने की अपेक्षा की जाती है।

यह बजट 2024 में आम चुनाव से पहले आखिरी बजट होने की उम्मीद है। इसलिए हम उम्मीद करते हैं कि वित्त मंत्रालय भारत के लिए एक नीली-आकाश दृष्टि प्रदान करेगा और भारत की दस ट्रिलियन डालर की अर्थव्यवस्था बनने की आकांक्षा को पूरा करने के लिए एक ढांचा पेश करेगा।
विजय सिंह अधिकारी, अल्मोड़ा, उत्तराखंड।

बेहतर की कसौटी

भारत के वैज्ञानिकों ने शून्य की खोज की तमाम प्रकार की नवाचार के दिशा में खोज की। मंगलयान, चंद्रयान को सबसे कम खर्चे में सफल किया और विदेश के वैज्ञानिकों को लिए भी मिसाल दिया। आज के वैश्वीकरण में विश्व के महानतम कंपनियों के शीर्ष पद पर भारत के ही पढ़े-लिखे लोग काम कर रहे हैं। भारत के लोग हर क्षेत्र में आगे बढ़ रहे हैं, लेकिन सरकार ने विदेशी विश्वविद्यालयों के परिसर भारत में खोलने की अनुमति दे दी है।

प्रश्न उठता है कि भारत के उन विश्वविद्यालय क्या होगा, जिनके परिसर से हजारों होनहार विद्यार्थी पूरे विश्व का नेतृत्व कर रहे हैं, जो देश के लिए गर्व का विषय है। चाहे वह जेएनयू हो या बीएचयू हो या इलाहाबाद विश्वविद्यालय हो, वहां के होनहार छात्र प्रशासनिक अधिकारी होने के साथ राजनीतिक भागीदारी में भी अपना लोहा मनवा रहे हैं।

जिस विश्वविद्यालय ने भारत को चार प्रधानमंत्री दिया, कई अर्थशास्त्री, कई वैज्ञानिक दिए, आज उसकी रैंकिंग दो सौ के पार है। कहने का आशय यह है कि जो विश्वविद्यालय देश में हैं, उनमें सुधार किया जाए और उच्च शिक्षा के लिए बेहतर बनाया जाए। सवाल यह भी है कि क्या गरीब विद्यार्थियों के लिए उचित फीस होगी, जिससे किसान गरीब, शोषित, वंचित के घरों के विद्यार्थी विदेशी विश्वविद्यालयों में पढ़ सकेंगे!

यह ध्यान रखने की जरूरत है कि पिछले कुछ सालों में देश के ही विश्वविद्यालयों, कालेजों में पढ़ाई करने के खर्चों में जिस तेजी से बढ़ोतरी हुई है, उसमें गरीब तबकों के विद्यार्थियों के लिए कई तरह की चुनौतियां खड़ी हो गई हैं। ऐसे में इस तरह की व्यवस्था बनाने की कोशिश होनी चाहिए कि बेहतर शिक्षा तक सबकी पहुंच हो।
सचिन पांडेय, इलाहाबाद विवि।

वास्तविक पुरस्कार

इस वर्ष छब्बीस जनवरी पर जिन ग्यारह बच्चों को सम्मानित किया जा रहा है, उनमें छह लड़के और पांच लड़कियां हैं। हर बच्चे को तमगा और प्रमाणपत्र के साथ एक लाख रुपए नकद का इनाम दिया जाएगा। विलक्षण प्रतिभा के धनी इन बच्चों को सम्मानित और पुरस्कृत किए जाने के साथ ही इनके उज्ज्वल भविष्य के लिए इनकी समुचित पढ़ाई और भविष्य बेहतर बन सके, इसकी पर्याप्त व्यवस्था की जानी चाहिए!

यही उनके लिए वास्तविक पुरस्कार होगा! अन्यथा होता यह आया है कि छब्बीस जनवरी पर पुरस्कृत होने के बाद देश इन बच्चों को भुला देता है! अगर शासन इन्हें आगे रह कर इनकी इच्छा अनुसार इनका भविष्य संवारने का जिम्मा ले तो यह अन्य बच्चों के लिए भी प्रेरणादायी उदाहरण होगा!
सुभाष बुड़ावन वाला, रतलाम, मप्र।