बिना तैयारी के उत्सव और लड़खड़ाती हुई अर्थव्यवस्था के बीच सुख-सुविधाओं वाले भवनों का निर्माण कराने का निर्णय विचित्र है। जहां पिछले एक माह से देश कोरोना से जूझ रहा है, लोग मूलभूत सुविधाओं के अभाव में दम तोड़ रहे हैं, ऐसे में केंद्र सरकार का यह फैसला देश की जनता को आहत करने वाला है। आज महामारी की आपदा ने लाखों प्राणों को लील लिया है, आॅक्सीजन की कमी की वजह से अस्पतालों में मरीजों ने घुट-घुट कर दम तोड़ दिया और अस्पतालों में बिस्तर की खोज में जनता दर-बदर बदहवास होकर चक्कर काट रही है। ऐसा प्रतीत होता है कि देश में जनता का सुध लेने वाला कोई नहीं। किसकी जवाबदेही तय हो, कुछ पता नहीं। केवल ऊपर वाले से प्रार्थना के अलावा कुछ भी नहीं।
आज सत्ता पक्ष का हो या विपक्ष, सभी गिड़गिड़ाते दिख रहे हैं। जिन्हें गुमान था कि ये जो तख्त पर बैठे हैं, हमारे किसी कष्ट के समय साथ देंगे, आज उनकी हालत देखी नहीं जाती। हालत यह है कि कई राजनेताओं ने भी सहायता के अभाव में दम तोड़ दिया। ऐसे समय जहां पूरा ध्यान इस आपदा से निपटने पर होना चाहिए था, वहीं पूरा ध्यान भवनों के निर्माण पर है। ऐसा लगता है कि समय का अभाव है और फिर मौका नहीं मिलेगा। जबकि अभी सरकार को ऐसे कार्य स्थागित कर देने चाहिए, जिसमें व्यर्थ ही पूंजी का व्यय हो।
देश की जनता पर एक साल में कोरोना की वजह से दोहरी मार पड़ी है। लोगों को जीविका चलाने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में किसी तरह का उत्सव या जरूरत के बगैर नवनिर्माण देश की असहाय, मजबूर जनता को आहत करने जैसा है। सवाल यह है कि आखिर इतनी हड़बड़ी क्यों है? फिलहाल देश पुराने भवनों में भी रह कर चल रहा है और इसे आगे भी चलाया जा सकता है।
ऐसे समय में देश की सरकार को केवल एक काम करना चाहिए कि परेशान जनता की परेशानी कैसे दूर की जाए। अस्पताल भवनों, आॅक्सीजन संयंत्र का निर्माण दवाइयों के कारखाने का निर्माण, स्कूलों की ओर अपना ध्यान लगाना चाहिए था, जिससे देश की जनता को राहत मिलती। ऐसे भवनों के निर्माण से क्या फायदा जहां खुशियों का नहीं, जनता की मजबूरियां दिखाई पड़े और जहां रोशनी में डूबी हुई चिताओं की जलती हुई रोशनी महसूस हो। जब देश की जनता ही खुश नहीं रहेगी तो यह भवन यह सिंहासन किस काम का?
’मोहम्मद आसिफ, जामिया नगर, दिल्ली</p>
मनमानी का इलाज
‘इलाज का हक’ (संपादकीय, 4 मई) पढ़ा। कोरोना महामारी की त्रासदी से पूरा देश जूझ रहा है। यह एक राष्ट्रीय आपदा के समान है और इस महामारी पर नियंत्रण के लिए सभी राज्यों को मिल कर सम्मिलित प्रयास करना चाहिए। चिकित्सक को भगवान की तरह देखा जाता रहा है। मरीज और चिकित्सक के बीच जाति, धर्म और क्षेत्र की कोई दीवार नहीं होती है।
किसी मरीज को क्षेत्र के आधार पर इलाज से वंचित रखना सबसे बड़ा अपराध है। आज देश के कई हिस्सों में कोरोना संक्रमितों को अस्पताल में दाखिला से पूर्व उनसे आवासीय प्रमाण पत्र मांगा जा रहा है। दिल्ली में कई अस्पताल दूसरे राज्यों के संक्रमितों को इलाज करने से इनकार कर रहे हैं। देश के कई राज्यों में मरीजों को किसी बहाने से इलाज से वंचित किया जा रहा है। यह मानवता को शर्मसार करने वाली घटनाएं हैं। ऐसी खबरें भी आईं, जिनमें अस्पताल प्रबंधन संक्रमितों को सड़कों पर मरने के लिए छोड़ दे रहा है। आश्चर्य का विषय है कि सर्वोच्च न्यायालय ने इस विषय पर संज्ञान लिया है, लेकिन अभी तक केंद्र सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया है।
अस्पतालों का एक मात्र कर्तव्य मरीजों का इलाज करना है। क्षेत्र के आधार पर उन्हें भेदभाव करने का कोई अधिकार नहीं होना चाहिए। देश में इस तरह की घटनाएं बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। केंद्र सरकार को संक्रमितों के इलाज के लिए राष्ट्रीय नीति का निर्धारण करना चाहिए, ताकि इलाज के अभाव किसी मरीज की मौत नहीं हो सके। मानव जीवन अनमोल है, इसकी रक्षा करना सभी का परम कर्तव्य है।
’हिमांशु शेखर, केसपा, गया, बिहार</p>