इन दिनों कोरोना के चलते ऑनलाइन स्कूली शिक्षा एक चर्चा का मुद्दा बनी हुई है। छोटे-छोटे बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाई करनी पढ़ रही है। जब पूर्व-प्रथामिक के बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाने की खबरें सुनने को मिलती हैं तो आश्चर्य होता है। बच्चे ऑनलाइन पढ़ नहीं पाते तो माता-पिता या परिवार का कोई और सदस्य बच्चों के साथ उनकी पढ़ाई कराते हैं। यह बहुत दुखद है। मेरे पड़ोसी का चार साल का बेटा एक निजी स्कूल में पूर्व-प्राथमिक में पढ़ता है। उसे रोज एक घंटा मोबाइल का इस्तेमाल करते हुए पढ़ना पड़ता है। अब चार साल का यह बच्चा अकेले तो पढ़ नहीं सकता ऐसे में उसके पिता भी एक घंटे के लिए उसके साथ बैठ कर उसे पढ़ाई कराते हैं।
आज लाखों की संख्या में छोटे बच्चे ऑननलाइन पढ़ाई का दबाव झेल रहे हैं। जब दुनिया जब गहरे संकट के दौर से गुजर रही है, तब हमारी पहली प्राथमिकता स्वास्थ्य और लोगों का रोजगार होना चाहिए। लेकिन ऑनलाइन पढ़ाई प्राथमिकताओं में शामिल हो रही है। प्राथमिक और माध्यमिक स्तर के बच्चों को पाठ्यक्रम पूरा कराने का लक्ष्य और पढ़ाई का दबाव बनाना ठीक बात नहीं है।
स्कूलों को अगर पढ़ाई करानी है तो इस विपदा से जूझने-समझने को ही एक पाठ्यक्रम की तरह से देखा जाए। क्या ऐसा नहीं किया जा सकता है कि पूरी स्कूली शिक्षा को इस साल ‘जीरो ईयर’ की तरह से देखा जाए। पाठ्यक्रम और परीक्षा दोनों के दबावों से बच्चों को मुक्त कर दिया जाए।
’शिवनारायण गौर, सलैया, भोपाल, मप्र