हमने अक्सर लोगों को स्त्री स्वतंत्रता के विषय में बातें करते सुना है और समाज की नजर में महिलाएं काफी हद तक स्वतंत्र हो भी चुकी है। सवाल यह है क्या इसे सही मायने में स्वतंत्रता कहा जाएगा। वेशभूषा, दिखने-सुनने में बदलाव, घूमना-फिरना, समाज और स्त्री को इस स्वतंत्रता से क्या हासिल हुआ है? असल में देखा जाए तो महिलाएं आज भी बहुत सारे बंधनों से मुक्त नहीं हो पाई है।

मानसिकता और सोच में बदलाव की बात की जाए तो कितनी औरते हैं जो दहेज के खिलाफ आवाज उठाती हैं या गर्भ में पल रहे कन्या भ्रूण की हत्या का विरोध कर पाती है? क्या अपने परिवार से लड़-झगड़ कर उतनी ही सुख-सुविधाएं वे अपनी बेटी को दे सकती हैं जो उनके बेटे को मुहैया की जा रही है? पढ़ाई या नौकरी करने और शादी करने के निर्णय आज भी परिवार और उसके पुरुषों पर ही निर्भर करते हैं।

बदलाव आ रहा है, लेकिन इसकी गति बहुत धीमी है। स्त्री को अपनी स्वतंत्रता खुद तय करनी होगी। उसे अभी भी मानसिक रूप से सुदृढ़ और ताकतवर होने की आवश्यकता है। अब यह पुरानी दलील हो चुकी है कि महिलाएं हर कार्य करने में सक्षम है। अंतरिक्ष, विज्ञान, खेल-कूद हो या फिर राजनीति, महिलाओं ने नए कीर्तिमान स्थापित किए हैं।

आज गंभीरता से विचार करने की जरूरत है कि महिला विकास की ओर कदम बढ़ा रही है तो समाज को भी उसे प्रोत्साहित करना चाहिए। स्वतंत्रता के बाद इतने वर्षों में भारतीय महिलाएं हर क्षेत्र में आगे बढ़ी हैं। उन्होंने कई उपलब्धियां हासिल की हैं। लेकिन फिलहाल हमें जरूरत है उन्हें आत्मनिर्भर बनाने की, जिसके लिए विचार परिवर्तन एक सबसे बुनियादी शर्त है। यानी सामाजिक संकीर्णताओं से मुक्ति पाना प्राथमिक काम है। फिर भारतीय महिलाएं अपना आसमान खुद तलाश लेंगी।
’प्रेरणा कौशिक, नोएडा</p>