पिछले कुछ सालों से दिल्ली में चोरी, रोड-रेज, छेड़खानी, बलात्कार, हत्या आदि जैसे संगीन अपराधों में शामिल नाबालिगों की बढ़ती संख्या डराने वाली है। आपराधिक घटनाओं में नाबालिगों की बढ़ती संलिप्तता समाज और देश दोनों के लिए नुकसानदेह है। कहा जाता है कि किसी भी देश का भविष्य युवाओं पर निर्भर करता है, लेकिन जब उसी वर्ग का एक हिस्सा अपराध की राह पर आगे बढ़ रहा हो, तब यह सोचने वाली बात है कि हमारा समाज किस दिशा में जा रहा है और हम किस प्रकार के भविष्य की नींव रख रहे हैं? ऐसा नहीं है कि इसमें केवल आर्थिक रूप से कमजोर या गरीब लड़के शामिल हैं, बल्कि ऐसी घटनाओं में संपन्न वर्ग के लड़के भी शामिल हैं।

हो सकता है कि गरीब घरों के लड़के पैसों के अभाव की वजह से इस ओर प्रेरित हुए हों, लेकिन अमीर घरों के लड़के तो अहंकार के कारण अपराध के रास्ते पर आगे बढ़ते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि कानून उनका क्या बिगाड़ लेगा और पैसे के बल पर वे बच जाएंगे। जरूरत इस मानसिकता को बदलने की है।

इस स्थिति के लिए माता-पिता भी कम जिम्मेवार नहीं हैं, जो अपने बच्चों की हर वाजिब-गैर वाजिब मांग और जिद को बचपन से ही पूरा करते रहते हैं। बिना यह सोच-विचार किए कि इसका परिणाम क्या होगा और इससे हम अपने बच्चों की कैसी मानसिकता बना रहे हैं। नतीजा, नाबालिग बच्चे अपने माता-पिता की बात तक नहीं सुनते। टेलीविजन, इंटरनेट और सोशल मीडिया ने बच्चों को समय से पहले वयस्क बना दिया है। दिल्ली की सड़कों पर खुलेआम चौदह-पंद्रह वर्ष के लड़के बिना हेलमेट के स्कूटी-बाइक तो तेज रफ्तार में चलाते ही हैं, बड़ी-बड़ी गाड़ियां भी तेजी से चलाते हैं।

हाल ही में दिल्ली के संभ्रांत सिविल लाइंस इलाके में मर्सिडीज कार से हुई टक्कर में एक व्यक्ति की मौत नाबालिगों की बिगड़ी हुई मानसिकता का ही नमूना है। लेकिन इन्हें रोकने वाला कोई है नहीं, माता-पिता भी पहले अपने बच्चों की कारगुजारियों पर परदा डालने की ही कोशिश करते हैं। ऊपर से इन्हें कानून का भी भय नहीं है।

नाबालिगों में बढ़ती आपराधिक प्रवृत्ति को रोकने के लिए पारिवारिक, सामाजिक और प्रशासनिक सभी स्तरों पर सजग होने की आवश्यकता है। इसमें भी माता-पिता की भूमिका सबसे महत्त्वपूर्ण है। माता-पिता को बच्चों की छोटी-छोटी गलत हरकतों को नजरअंदाज करने की बजाय उन पर ध्यान देने और ऐसा करने से रोकने के लिए सख्त कदम उठाना चाहिए। स्कूलों में नियमित रूप से बच्चों की काउंसलिंग की व्यवस्था की जानी चाहिए और इसमें पुलिस का भी सहयोग लिया जाए।
’सरोज कुमारी, रोहिणी, दिल्ली