वर्ष 2023 में भारत की शंघाई सहयोग संगठन की अध्यक्षता का विषय ‘शंघाई सहयोग संगठन को सुरक्षित करना’ है। भारत इस क्षेत्र में बहुपक्षीय, राजनीतिक, सुरक्षा, आर्थिक और लोगों से लोगों के बीच संपर्क को प्रोत्साहन देने में शंघाई सहयोग संगठन को विशेष महत्त्व देता है। शंघाई सहयोग संगठन के साथ चल रहे संपर्क ने भारत को उस क्षेत्र के देशों के साथ अपने संबंधों को प्रोत्साहन देने में सहायता की है, जिसके साथ भारत ने सभ्यतागत संबंध साझा किए हैं और इसे भारत का विस्तारित पड़ोस माना जाता है। यह संगठन सदस्य देशों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता, आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने, सभी सदस्य देशों की समानता और उनमें से प्रत्येक की राय के लिए आपसी समझ और सम्मान के सिद्धांतों के आधार पर अपनी नीति का पालन करता है।
आतंकवाद, अलगाववाद और उग्रवाद वे प्रमुख खतरे हैं, जिन पर शंघाई सहयोग संगठन विशेष रूप से ध्यान केंद्रित करता है। आतंकवाद, अलगाववाद और उग्रवाद के विरुद्ध संघर्ष में सदस्य देशों के बीच सहयोग को बढ़ावा देने के लिये क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी संरचना का निर्माण किया गया है। इसके सदस्य देशों, पर्यवेक्षकों और भागीदारों के समग्र सांस्कृतिक धरोहर में दो सौ सात यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल शामिल हैं।
इसके सदस्य देशों ने एक पहल के तहत हर साल शंघाई सहयोग संगठन सदस्य देशों के किसी एक शहर को पर्यटन एवं सांस्कृतिक राजधानी के रूप में नामित करने का निर्णय लिया है। इस क्रम में ‘काशी’ (वाराणसी) को शंघाई सहयोग संगठन की पहली सांस्कृतिक राजधानी के रूप में नामित किया गया है।
इस संगठन के आठ सदस्य देश वैश्विक आबादी के लगभग 42 फीसद और वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद के 25 फीसद का प्रतिनिधित्व करते हैं। इस क्षेत्र में पर्यटन की अपार संभावनाएं मौजूद हैं जिसे इन देशों के बारे में जागरूकता का प्रसार कर बढ़ावा दिया जा सकता है। वर्तमान में भारत में आने वाले करीब छह प्रतिशत भागीदार एससीओ देशों से आते हैं। इसे आगे बढ़ाया जा सकता है।
रवि रंजन, नई दिल्ली।
भविष्य की नींव
बदलते समय के साथ भारत सहित विश्व के बहुत से देशों में परिवर्तन हुआ। अगर हम भारतीय समाज की बात करें तो भारत में परिवर्तन का प्रभाव ज्यादातर बाहरी रूप से ज्यादा हुआ है, क्योंकि हम लोग खुद की विरासत को सही तरीके से समझने दूर रहे हैं। हमारे देश के नेता या कोई और अच्छी-अच्छी बातें तो करते हैं, लेकिन जब उसको धरातल के पटल पर लाना पड़ता है तो ‘खोदा पहाड़ निकली चुहिया’ जैसे मुहावरे सामने आते हैं। इसका जीता जागता उदाहरण है कि भीमराव आंबेडकर की जयंती पर तमाम नेता और उच्च पद पर आसीन बड़े लोग आंबेडकर की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित करते हैं, अच्छी-अच्छी बातें करते हैं, उनके महत्त्व और योगदान की प्रशंसा करते हैं।
अगर धूमिल चश्मे के शीशे को साफ करके देखा जाए तो यही लोग उनके विचारों और कार्यों को आत्मसात करने की कभी कोशिश नहीं करते हैं। ऐसा इसलिए होता है कि इनके रूढ़िवादी विचार इनको रोक देते हैं। अगर भारत जैसे देश में कार्यों को न महत्त्व देकर उसकी जाति, धर्म आदि को महत्त्व दिया जाएगा तो एक उज्ज्वल भारत के भविष्य के महल की नींव को धीरे-धीरे गिराने की ही भूमिका तैयार की जाएगी।
अवनीश कुमार गुप्ता, आजमगढ़।
क्रिकेट का महोत्सव
सन 2008 में इंडियन प्रीमियर लीग शुरू होने के बाद भारत में क्रिकेट की लोकप्रियता में काफी तेज उछाल आया। सिर्फ भारत में ही नहीं, आइपीएल का आकर्षण विश्व भर में अतुलनीय है। आइपीएल मैचों का रोमांच विश्व कप क्रिकेट से कहीं ज्यादा है। देसी-विदेशी दिग्गज खिलाड़ी कंधे से कंधा मिलाकर मैदान में उतर कर विश्व बंधुत्व के संदेश को संक्रमित करते हैं।
यह एक ऐसी क्रिकेट प्रतियोगिता है, जहां दुनिया भर के महान खिलाड़ी और प्रशिक्षकों का समावेश होता है। इससे सभी देशों के युवा और प्रतिभावान खिलाड़ी लाभान्वित होते हैं। आइपीएल का हर एक मैच क्रिकेट की अनिश्चितता को ही साबित करता है। उत्तेजना से भरे सभी मैच पल-पल रंग बदलते हैं और मैच की अंतिम गेंद से पहले यह कहना मुश्किल हो जाता है कि कौन-सी टीम विजयी होगी।
आइपीएल का आकर्षण इस हद तक पहुंच चुका है कि दुनिया के अनेक महान क्रिकेटर अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद भी आइपीएल के माध्यम से क्रिकेट प्रेमियों का मनोरंजन कर रहे हैं। इंडियन प्रीमियर लीग की अपार सफलता के कारण ही भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड आज दुनिया के सबसे धनी खेल संस्थाओं में एक है। बीसीसीआइ को चाहिए कि वह आइपीएल से उपार्जित आय की बड़ी रकम को युवा, प्रतिभावान और आर्थिक रूप से तंग खिलाड़ियों के लिए व्यय करें।
अनित कुमार राय टिंकू, बाघमारा, धनबाद।
विवेक का तकाजा
आजादी के बाद से भारत में जहां जातिवाद और धर्म आधारित राजनीति खत्म होनी चाहिए थी, इसके विपरीत यह बढ़ती ही गई है। किसी भी देश की राजनीति का केंद्रबिंदु अगर जाति या धर्म होगा, तो उस देश के नागरिक भी एक उत्कृष्ट जनप्रतिनिधि न चुनकर ऐसे प्रतिनिधि चुनेंगे, जो नकारात्मक नतीजे देंगे। इक्कीसवीं सदी में एक तरफ हम मंगल पर जीवन की उम्मीद करते हैं तो दूसरी तरफ धर्म की राजनीति से ऊपर उठ नहीं पा रहे हैं।
राजनीति विकास आधारित होनी चाहिए, जहां सभी समुदाय को साथ लेकर चलने की बात हो। भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है। उसके बावजूद यहां की राजनीति धर्म के आधार पर टिकी है। देश के मतदाताओं को भी राजनीतिक दलों के चुनावी एजंडे को समझना चाहिए और एक ऐसे जनप्रतिनिधि को चुनना चाहिए, जिसकी छवि साफ और बेदाग हो, न कि धर्म या जाति देखकर।
अगर मतदाता जागरूक नहीं होंगे तो धीरे-धीरे हमारी राजनीति में भी धर्म पूरी तरह हावी हो जाएगा और विकास जैसे मुद्दे पीछे छूट जाएंगे। आज देश में कोई भी दल छुआछूत मिटाने, सामाजिक वैमनस्यता, जातिवाद और कुरीतियों को दूर करने का संकल्प नहीं लेता। ऐसा क्यों हो गया? समय की मांग है कि मतदाता अपने विवेक से काम करे, अपनी जिम्मेदारी समझे।
अमित पांडेय, बिलासपुर, छत्तीसगढ़।