राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद एक राष्ट्रीय संस्था है, जो अध्यापक शिक्षा में गुणवत्ता लाने हेतु कार्य करती है। आज जो भी अध्यापक शिक्षा में आमूलचूल परिवर्तन देखने को मिल रहे हैं, वे राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद के प्रयासों का नतीजा हैं। राष्ट्रीय अध्यापक पात्रता परीक्षा (सीटीईटी) और राज्य स्तर पर आयोजित की जाने वाली अध्यापक पात्रता परीक्षा का आरंभ भी राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद के सुझाव पर किया गया था। राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर इस परीक्षा का लगभग हर वर्ष आयोजन किया जाता है, ताकि भावी शिक्षक इस परीक्षा को सफलतापूर्वक पास करके विद्यालयों में शिक्षक बन सकें।

अगर हम पूर्व में अध्यापक शिक्षा पर नजर डालें, तो पाएंगे की उस समय हमारी अध्यापक शिक्षा में बहुत-सी विसंगतियां थीं, जैसे अध्यापक शिक्षा संस्थानों में बिना किसी प्रवेश परीक्षा के, मात्र स्नातक स्तर पर प्राप्त अंकों के आधार पर प्रवेश दिया जाना। बीएड पाठ्यक्रम का एक वर्षीय होना या दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से चलाए जा रहे बीएड पाठ्यक्रम में नियमों का उल्लंघन आदि। इनकी वजह से हमारी अध्यापक शिक्षा की गुणवत्ता निरंतर घटती जा रही थी। ऐसा भी समय था जब किसी-किसी विश्वविद्यालय ने तो एक वर्ष में ही चालीस हजार अभ्यर्थियों को बीएड की डिग्री दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से प्रदान कर दी थी।

इसके चलते हमारी पूरी शिक्षा प्रणाली ही शक के दायरे में आ गई थी। पर समय बदला और सरकार ने दूरस्थ शिक्षा से बीएड पाठ्यक्रम को बहुत सीमित कर दिया। वह भी एक वर्ष के स्थान पर दो वर्ष का। नियम बहुत सख्त बनाए गए। बीएड पाठ्यक्रम की सुविधा सिर्फ कार्यरत अध्यापकों को दी जाने लगी। इन नियमों की वजह से इसमें सुधार संभव हो पाया। बीएड नियमित पाठ्यक्रम में प्रवेश के लिए प्रवेश परीक्षा का प्रावधान किया गया, जिससे सिर्फ योग्य अभ्यर्थियों को ही बीएड पाठ्यक्रम में प्रवेश मिले। यह पाठयक्रम भी एक वर्ष से बढ़ा कर, दो वर्ष का कर दिया गया, जिससे अध्यापक शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार संभव हो पाया।

वर्तमान में जिस प्रकार से अध्यापक पात्रता परीक्षा को अनिवार्य किया गया है, उस पर हमारे शिक्षाविदों को राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद को और सरकार को नए सिरे से विचार किए जाने की आवश्यकता है। क्योंकि हमारे ग्रामीण क्षेत्रों में अब भी प्रशिक्षित अध्यापकों का अभाव बना हुआ है। ऐसे में अध्यापक पात्रता परीक्षा की अनिवार्यता कहीं न कहीं पूर्ण साक्षरता में व्यवधान उत्पन्न कर रहा है। क्योंकि अब अधिकांश स्कूल, राष्ट्रीय या राज्य अध्यापक पात्रता परीक्षा पास अध्यापकों को ही अपने स्कूलों में नौकरी पर लगाते हैं। कई अध्यापकों को पात्रता परीक्षा पास करने पर भी, किन्ही कारणों से नौकरी नहीं मिल पाती तथा पात्रता परीक्षा की वैधता भी एक निश्चित समय के बाद समाप्त हो जाती है।

इस प्रकार से देखें तो अगर अध्यापक को पात्रता परीक्षा की वैधता खत्म होने से पहले नौकरी मिल गई, तो ठीक नहीं तो उसे फिर से अध्यापक पात्रता परीक्षा देनी होगी, क्योंकि पिछले परीक्षा परिणाम के आधार पर तो कोई स्कूल नौकरी नहीं देता। इस तरह बेरोजगारी की मार झेल रहे अध्यापकों को पात्रता परीक्षा के लिए हर बार नए सिरे से आवेदन करना, फीस भरना पड़ता है। दूसरे शहरों में परीक्षा देने जाना, उस पर आने जाने के लिए खर्च वहन करना, दूसरी ओर पात्रता परीक्षा पास होते हुए भी, नौकरी न मिल पाना उनकी मानसिक स्थिति को अव्यवस्थित कर देता है। इसलिए राज्य और केंद्र सरकारों को इस दिशा में पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। अध्यापक नियुक्ति में अध्यापक के पूर्व अनुभव को प्राथमिकता देने पर विचार करना चाहिए, न कि अध्यापक पात्रता परीक्षा पर।

  • राजेंद्र कुमार शर्मा, रेवाड़ी, हरियाणा