नौदौर की बातचीत के बाद अमेरिका और तालिबान ने एक शांति समझौता पर दस्तखत किया था, जिसके चार अहम बिंदु थे- हिंसा रोकना, विदेशी फौजों की वापसी, अंतर-अफगान बातचीत की शुरुआत और अफगानिस्तान को फिर से दहशतगर्दों की पनाहगाह न बनने देना। इन चार मुद्दों में से सिर्फ एक, यानी विदेशी फौजों की वापसी तय शर्त के अनुसार हो रही है। बाकी के तीन मसले बिल्कुल अलग स्थिति में हैं। इस शांति-समझौते से पूर्व की हिंसा और बाद के खूनी हमलों की तुलना करें, तो तालिबान की हिंसा में सौ फीसद का इजाफा हुआ है। इसने अपने कब्जे वाले जिलों में औरतों और दूसरे मजहबी अल्पसंख्यक समूह पर 1990 के दशक को अपनी सख्त नीतियां थोप दी हैं। बादाख्शान, ताखार और अन्य जगहों पर उसने परिवार के बड़ों को आदेश दिया है कि वे पंद्रह साल से अधिक उम्र की लड़कियों और पैंतालीस साल से कम की विधवाओं की सूची बनाएं और उसे तालिबान के सांस्कृतिक प्रकोष्ठ को सौंप दें, ताकि संगठन के लड़ाकों के साथ उनका निकाह कराया जा सके।

राजनीतिक समाधान में तालिबान का कभी भरोसा नहीं रहा, इसलिए उसने अपनी पूरी ताकत समझौते के बजाय संघर्ष में झोंक दी। अपनी इलाकाई खुफिया एजेंसियों की सलाह पर बातचीत की मेज तो उसने बहुत पहले छोड़ दी थी। अमेरिका से समझौते के बाद तो वह अफगान सुरक्षा बलों के खिलाफ कहीं ज्यादा आक्रामक हो गया, ताकि वह अधिक मजबूती के साथ वार्ता के मेज पर आ सके। बहरहाल, बढ़ती हिंसक कर्रवाइयों ने अंतर-अफगान वार्ता को ही बेपटरी कर दिया। इस तरह, आतंकवाद विशेषज्ञों का मानना है कि न तो तालिबान सक्षम है और न ही वह अफगानिस्तान को आतंकियों की सुरक्षित पनाहगाह बनने से रोक सकता है। अफगान तालिबान के अल-कायदा के साथ गहरे संबंध हैं। इस समय, तालिबान, अल-कायदा और आइएस के गुर्गे एक गठबंधन के रूप में उत्तरी अफगानिस्तान में सरकारी फौजों से मोर्चा ले रहे हैं। इसलिए वे अफगानिस्तान को दहशतगर्दों से मुक्त करा ही नहीं सकते।
’सदन, पटना विवि, पटना, बिहार</p>

चीन की चाल

चीन लगातार हठधर्मिता करने पर उतरा हुआ है। सीमा क्षेत्र और अरुणाचल पर हक जता कर विवाद खड़ा करने वाला चीन इस समय सीमा के पास फिर निर्माण में लगा हुआ है, जिससे भारतीय क्षेत्रों में उसकी पहुंच सुगम हो सके। भारत को सीमा पर बड़ी सतर्कता की जरूरत है, जिससे चीन के नापाक इरादों से निपटा जा सके। पिछले दो साल से चीन भारतीय सीमा पर लगातार हरकतें कर रहा है।

दरअसल, चीन की निगाह अरुणाचल प्रदेश के क्षेत्रों पर लगी हुई है। इस समय उसकी कुटिल चाल फिर शुरू हो गई है। वह अब अरुणाचल, लद्दाख और सिक्किम में सीमा के पास पर पक्की सड़कों का निर्माण कर रहा है। साथ ही इमारतें भी बनाई जा रही हैं। इससे चीन की आवाजाही विवादित क्षेत्रों तक सुगम हो जाएगी। ऐसा करके चीन सीमा के पास डट कर बैठा रहना चाहता है। वाकई यह समाचार चिंता पैदा करने वाला है। सीमा विवाद के बाद चीन का पीछे हटना भले ही हमारी सफलता कही जा सकती है, पर चीन कब कहां कुटिल चाल चल जाए, इसका कोई भरोसा नहीं है। भारत सरकार को इस मामले में पूरी तरह सचेत रहना चाहिए।
’अमृतलाल मारू ‘रवि’, धार, मप्र