आखिर यह सब क्या हो रहा है! जिधर देखो उधर से ऐसी हैरान करने वाली खबरें आती हैं, जो जिम्मेदारी के प्रति लापरवाही को उजागर करती हैं। इस तरह की घटनाओं से तो ऐसा लगता है कि कोई भी अपनी जिम्मेदारी समझने को तैयार नहीं है! इस प्राथमिक चिकित्सा केंद्र पर जो स्वास्थ्यकर्मी काम कर रहे हैं क्या उन्हें पोलियो ड्रॉप और सैनेटाइजर में अंतर नहीं है! स्वास्थ्य केंद्रों पर ऐसी लापरवाही किसी की जान भी ले सकती है। इस घटना के लिए जो भी दोषी हों, उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए, जो औरों के लिए मिसाल बन सके।
’हेमा हरि उपाध्याय, खाचरोद, उज्जैन

बजट और गरीबी

कोरोना महामारी से देश को भारी आर्थिक नुकसान हुआ। इसे देखते हुए यह अटकलें लगाई जा रही थी कि इस बार सरकार आम बजट में भारी कर लगा सकती है, लेकिन सरकार ने सभी अटकलों को ध्वस्त करते हुए लगभग हर वर्ग हर क्षेत्र को कुछ न कुछ देने की कोशिश की।

हालांकि वित्त मंत्री ने पेट्रोल, डीजल पर कृषि उपकर लगा कर गरीबों के जख्मों पर नमक लगाने का काम भी किया। डीजल की कीमत बढ़ने से महंगाई बढ़ेगी। इस बार के आम बजट में मुफ्तखोरी की योजनाओं में रूचि न दिखा कर भी वित्त मंत्री ने अर्थतंत्र में जान फूंकने का प्रयास किया है। चाहे देश को स्वस्थ रखने के लिए आत्मनिर्भर स्वास्थ्य योजना हो, किसानों की आय बढ़ाने का फैसला हो या बजट में किया गया अन्य कोई भी एलान, यह सब तभी सार्थक होगा, जब इसे हर राज्य सरकार बिना किसी राजनीतिक भेदभाव के लागू होने देंगी और सरकारी बाबू भ्रष्टाचार से बाहर निकल कर सोचेंगे।

लघु और नए उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए भी बजट में अच्छा प्रयास रहा। लेकिन आयकर में कोई बदलाव न कर मध्यम वर्ग के करदाताओं को निराशा किया है। कोरोना से हर वर्ग प्रभावित हुआ है, इसलिए सरकार को इसकी तरफ भी ध्यान देना चाहिए था। आजाद भारत में शुरू से ही आम बजट किसी भी राजनीतिक पार्टी की सरकार ने क्यों न पेश किया हो, इसे कुछ ने पानी के आधे भरे गिलास की तरह देखा है, तो कुछ ने आधा खाली की नजर से देखा।

कोई बी सरकार बजट से हरेक को खुश नहीं कर सकती और आज तक जितने भी आम बजट पेश किए गए, उन्होंने देश की गरीबी मिटाने के लिए कोई महत्त्वपूर्ण भूमिका नहीं निभाई है। अगर निभाई होती तो आज हमारे देश में गरीबी का नामोनिशान न होता और न ही कोई दो वक्त की रोटी को तरसता, महंगा इलाज किसी गरीब की मौत का कारण न बनता, किसी गरीब का बच्चा आधुनिक पढ़ाई को न तरसता।
’राजेश कुमार चौहान, जलंधर