प्रश्नपत्रों को लीक करवाने वाले बरसों से इस काम में लगे हैं। इस तरह का धंधा चलाने वाले बड़े खिलाड़ी कोचिंग संस्थान भी चलाते हैं। पैसा खर्च करने वाले प्रतिभागियों से पैसा उगाही और उसे इसके मुख्य सरगना तक पहुंचाना कोचिंग संस्थानों के जिम्मे होता है। कोचिंग का दोहरा फायदा प्रश्नपत्र लीक के लिए पैसों में उनका हिस्सा होता ही है, साथ ही विद्यार्थियों का चयन होने पर उनके संस्थान की साख अलग से मजबूत होती है।

मजबूत साख का मतलब है, अगली बार मोटी फीस वसूलने की सुविधा। यह धंधा बेईमानी का है, लेकिन इसमें पैसों के लेन-देन में कोई गड़बड़ी नहीं होती। कई धंधेबाज कुछ रकम अग्रिम और प्रश्नपत्र सही निकलने पर बाकी रकम देने का तरीका अपनाते हैं तो कुछ बिना पैसे लिए ही पर्चे दे देते हैं। इस तरह के काम करवाने वाले लोग इस बात को लेकर निश्चित रहते हैं कि वे पैसा वसूल लेंगे। वे व्यवस्था में कहीं किसी कमजोर कड़ी के जरिए अगर प्रश्नपत्र बाहर निकलवा सकते हैं तो किसी से पैसा वसूलने के लिए हर तरह के हथकंडे भी अपना सकते हैं।

तकनीक के बढ़ते दखल के चलते परीक्षा के प्रश्नपत्र को बाहर निकालना काफी आसान हो गया है। पहले जहां कागजात बाहर लाने पड़ते थे, अब मोबाइल कैमरा ही सारा काम कर देता है। परीक्षा केंद्र के जरिए उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में छोटे-छोटे कालेजों को भी परीक्षा केंद्र बनाया जाता है। कुछ घंटों पहले केंद्र पर पहुंचा प्रश्नपत्र भी कई बार लीक करवाने वालों के लिए कमजोर कड़ी साबित होता है। उस पर विचित्र यह है कि कभी भी ऐसे मामलों में किसी केंद्र के खिलाफ कोई आपराधिक मामला दर्ज नहीं किया जाता है।
योगेंद्र गौतम, उन्नाव।

सम्यक दृष्टि

जूठन, उतरन, छूत, शोषण, दमन, अत्याचार, जुर्म, बलात्कार, तिरस्कार आदि शब्द भारतीय समाज को समझने के लिए काफी है। ऐसे कार्य हमारे चारों तरफ होते रहते हैं, लेकिन हम महसूस नहीं करते हैं। कुछ तो ऐसे करने वाले को भान भी नहीं होता कि वे ऐसा कर रहे हैं। ऐसे ही हमारी सामाजिक बनावट और व्यवस्था जहां कमजोर लोग घुट-घुट कर रहते हैं।

अगर कोई शोषण, दमन, अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाता है तो धर्म कैसे खतरे में पड़ जाता है, यह समझ नहीं आता है। जाति, धर्म, वर्ग ने मानव को बनाया है या यह मानव निर्मित है? मानव निर्मित कृतियों में दोष नहीं हो सकता है, यह कौन दावा कर सकता है? जब समाज सुधारक दोष रहित, शोषण, दमन, ऊंच-नीच रहित समाज की बात करते हैं तो पाखंडियों का चेहरा सामने आ जाता है। ‘हम ही श्रेष्ठ हैं और अन्य कमतर’, यह चलने वाला नहीं है।

जब तक बड़ी आबादी शिक्षा से दूर रही, तब तक धर्म अंधविश्वास, पाखंड का भय दिखाता रहा, लेकिन जैसे-जैसे शिक्षा की रोशनी अंतिम पायदान तक पहुंच रही है, कई लोगों की ठगी की दुकानदारी बंद होती जा रही है। पहले काम के बदले पुराने उतरन कपड़े या जूठा खाना गरीबों को दे दिया जाता था। इसे देने वाले महादानी और लेने वाले किसी के रहमोकरम पर जीने वाले समझते थे।

समय का चक्र बदला, भारत में सबको शिक्षा देने की नीति बनाई गई, देश की व्यवस्था बदल गई। ज्योतिबा फुले, सावित्री बाई फुले, पेरियार, संत कबीर, दयानंद सरस्वती, आंबेडकर, ईश्वरचंद्र विद्यासागर, स्वामी सहजानंद सरस्वती आदि समाज सुधारकों ने विधवा विवाह, अंतरजातीय विवाह आदि का शुरुआत कर स्त्री और कमजोर लोगों के जीवन में रोशनी भर दिया। राजमहलों से लेकर देवदासी प्रथा तक में महिलाओं का शोषण, दोहन एक जगजाहिर तथ्य था। हम मनुष्य हैं। सभी प्राणियों में खुद को श्रेष्ठ मानते हैं तो बुद्धि, विवेक भी वैसा ही होना चाहिए। बुद्ध की सम्यक दृष्टि, चार आर्य सत्य में विश्वास करना चाहिए।
प्रसिद्ध यादव, बाबूचक, पटना।

अस्पताल में स्वच्छता

देश के सरकारी अस्पतालों की स्वच्छता पर ध्यान दिया जाए तो सोचनीय बात यह है कि सरकार योजनाएं तो बहुत चलाती है, अस्पतालों पर करोड़ों में बजट पास करती है, पर वह आम लोगों की पहुंच से बाहर है। मरीजों के रिश्तेदारों के बैठने के लिए जगह नहीं होती है। अधिकतर अस्पतालों में स्वच्छता की व्यवस्था दयनीय अवस्था में होती है। जब कोई मंत्री, नेता या अधिकारी अस्पतालों का निरीक्षण करने आते हैं, तब साफ-सफाई पर ध्यान दिया जाता है। इसके बाद कुछ कहा नहीं जा सकता।

अगर निरीक्षण से ही काम संभव है तो अस्पतालों की सफाई व्यवस्था बनाए रखने के लिए अधिकारियों का निरीक्षण हर सप्ताह होना चाहिए, ताकि अस्पताल प्रशासन स्वच्छता को लेकर सजग रहे और स्वच्छता अभियान में भी भागीदारी निभाए और अस्पताल में मरीजों को दिक्कतों का सामना न करना पड़े। यों यह एक सामान्य व्यवस्था होनी चाहिए कि अस्पतालों की व्यवस्था के लिए किसी नेता या मंत्री या अधिकारी को निरीक्षण करने की जरूरत नहीं पड़े।
स्नेहलता किर, देवली टोंक, राजस्थान।

खतरे की खेती

आज हमारे समाज में एक तरफ खाद्य संकट का हवाला देकर खेती में अत्यधिक रासायनिक खाद का प्रयोग किया जा रहा है, जिससे लोगों को पर्याप्त मात्रा में खाने के लिए भोजन मिल सके। भारत जैसा देश अकाल के समय खाद्य संकट की त्रासदी से भली-भांति परिचित है। हालांकि अनेक शोधों में यह उजागर हो चुका है कि रासायनिक खाद से उत्पन्न खाद्य पदार्थ स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, जो बहुत सारी जटिल बीमारियों को जन्म दे रहा है।

मसलन, मुंहासे, हड्डी रोग, नाखून विकृत होना, शरीर में ऐंठन, याददाश्त में कमी, वात रोग, जख्म भरने में देरी होना, मोटापा, बच्चे की औसत लंबाई में कमी या शरीर का विकास रुकना, रोग प्रतिरोध क्षमता घटना आदि। सच यह भी है कि बिना प्रशिक्षण के किसानों को संतुलित खाद के उपयोग के बारे में भी पता नहीं होता है और इस कारण भी यह समस्या ज्यादा खतरनाक होती जा रहीं है। किसानों को जागरूक करके, जैविक खाद के प्रयोग और संतुलित रासायनिक खादों के प्रयोग से इस समस्या को कम करने का प्रयास किया जा सकता है।
दिव्यम द्विवेदी, इलाहाबाद विवि।