उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों में चुनावी माहौल गरमाया हुआ है। चुनाव से पहले दल-बदल भी धड़ाधड़ हो रहे हैं। हर राजनीतिक दल की अपनी विचारधारा होती है और हर राजनेता उसी के आधार पर उससे जुड़ा होता है, लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण है कि यहां दल-बदल जातिवाद के आधार पर हो रहे हैं। वास्तविकता यह है कि उत्तर भारत की राजनीति धर्म और जाति की संकरी गली में फंस चुकी है। इस बात में निहित परिणामों को यहां ढूंढ़ा जा सकता है कि अभी कुछ समय पहले ही नीति आयोग ने स्वास्थ्य, सुशासन और गरीबी-भुखमरी पर सूचकांक जारी किए थे। उसके अनुसार दक्षिण भारत के राज्य स्वास्थ्य, सुशासन, शिक्षा में सबसे ऊंचे पायदान पर हैं, जबकि उत्तर भारत के राज्य गरीबी और भुखमरी में शीर्ष पर हैं।

उत्तर भारत की जनसंख्या और मतदाता भी ज्यादा हैं। सबसे ज्यादा प्रधानमंत्री देश को उत्तर भारत ने ही दिए हैं। प्रतिभा की भी यहां कोई कमीं नहीं है। हर वर्ष सिविल सेवक भी उत्तर भारत से ही ज्यादा संख्या में बनते हैं। उसके बावजूद उत्तर भारत के राज्य शिक्षा, साक्षरता, स्वास्थ्य, विकास में दक्षिण के राज्यों से बहुत पीछे हैं। इस पिछड़ेपन से बचने का यही उपाय है कि यहां के मतदाताओं को धर्म-जाति से ऊपर उठ कर, विकास के आधार पर अपने शासक चुनने होंगे।

  • आशू सैनी, मुरादाबाद

भ्रष्टाचार की दीमक

भ्रष्टाचार किसी भी देश के विकास में बाधक है। समय-समय पर भ्रष्टाचार की परत विभिन्न जांच एजेंसियों द्वारा खोली जाती है। केंद्रीय सतर्कता आयोग अपनी वार्षिक रिपोर्ट में विभिन्न मंत्रालयों और विभागों के बड़े-बड़े अधिकारियों के खिलाफ शिकायतों की जांच और उनका नाम वेबसाइट पर जारी करता है। भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए समय-समय पर राज्य सरकारें भी शिकंजा कसने का प्रयास करती हैं।

प्रधानमंत्री ने भ्रष्टाचार को समाज का दीमक कहा है। भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई तेज करने तथा इसके लिए त्वरित न्यायालयों की स्थापना भी करनी होगी। भ्रष्टाचार पर शिकंजा कसने के लिए जांच एजेंसियों को और ताकतवर बनाना होगा। देखा गया है कि सरकार किसी भी दल की हो, भ्रष्ट अधिकारी हमेशा अपनी पैठ जमा लेते हैं और मलाईदार पदों पर रह कर धन-दौलत एकत्रित करते हैं। ऐसे अधिकारी राजनीतिक दलों के इर्द-गिर्द हमेशा घूमते रहते हैं। भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए ऐसे लोगों के खिलाफ सख्ती बरतनी होगी।