जब किसी नेता को वर्तमान दल में अपनी दाल गलती नजर नहीं आती तो वह दूसरे दल में चला जाता है और पुराने दल की आलोचना में लग जाता है, चाहे वीरेंद्र सिंह हों या एसएस धीर या कोई। दिल्ली विधानसभा के अध्यक्ष धीर नौ-दस महीने सत्ता सुख लेते रहे और अब जिंदगी भर ‘भूतपूर्व’ होने की सुविधाएं भी पाते रहेंगे।
लेकिन जब आम आदमी पार्टी ने उम्मीदवार नहीं बनाया तो अंगूर खट्टे नजर आने लगे। इस तरह के लोग किसी भी दल के क्यों न हों, जनता इन्हें नकार दे तभी कुछ सुधार की उम्मीद की जा सकती है।
’यश वीर आर्य, नई दिल्ली
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