कुछ दिन पहले सोशल मीडिया पर ऐसे संदेश फैलाए गए, जिनमें तरह-तरह से यह दिखाने की कोशिश की गई कि क्रिसमस का त्योहार इस देश का नहीं है या इससे हिंदू धर्म को खतरा है। हैरत तो तब हुई जब कुछ लोगों ने यह शंका तक जता दी कि भारत फिर से अंग्रेजों का गुलाम हो सकता है और इसके जिम्मेदार वही लोग होंगे जो हिंदू होते हुए भी क्रिसमस की बधाई दे रहे हैं या इस मौके पर उत्सव मना रहे हैं। पिछले कुछ समय से डर, असुरक्षा और वैमनस्य का जो माहौल देश में बनाया जा रहा है, वह हृदय को भीतर तक व्यथित करता है।

राजनीतिक महत्त्वाकांक्षाओं के चलते धार्मिक ध्रुवीकरण का जो हथकंडा विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा अपनाया जा रहा है, वह धीरे-धीरे हमारी गंगा-जमुनी संस्कृति, भाईचारे और साझी विरासत को लीलता दिख रहा है। हम बचपन में यही पढ़ते हुए बड़े हुए हैं कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है जहां सभी धर्मों के लोग प्रेम और भाईचारे से रहते हैं। एक दूसरे के त्योहारों और उत्सवों में शामिल होते हैं। यह उसी प्रकार है जैसे हम एक मुहल्ले में रहते हुए अपने पड़ोसियों के दुख-सुख में साथ खड़े रहते हैं। अब आखिर अचानक ही ये पड़ोसी दुश्मन कैसे हो गए? किसी को त्योहार पर बधाई देने से हमें खतरा क्यों महसूस होने लगा है? ये प्रश्न बहुत गंभीर हैं, जिन पर हमें तुरंत सोचना होगा। वरना हम अपनी अगली पीढ़ी को एक ऐसा समाज देकर जाएंगे, जहां चारों तरफ नफरत होगी और इसके दोषी हम सब होंगे।

भारत की छवि एक धर्मनिरपेक्ष देश की रही है। पूजा और अपने धर्म के पालन की आजादी भारत में विविध संस्कृतियों के सामंजस्यपूर्ण अस्तित्व की अभिव्यक्ति है। वास्तव में मुसीबत के समय सभी धर्म अपने सांस्कृतिक मतभेद होने के बाद भी साथ आते हैं और विविधता में एकता दिखाते हैं। इतिहास गवाह है कि देश के लिए लड़ते-लड़ते सभी धर्मों के लोग शहीद हुए हैं और देश के विकास में सभी धर्मों के लोगों की भागीदारी है।
लेकिन आज विश्व को ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ का नारा देने वाले देश में संकीर्णता का जहर घोलने के प्रयास किए जा रहे हैं। उम्मीद है कि ये सफल नहीं हो पाएंगे। सिर्फ स्वार्थसिद्धि के लिए ध्रुवीकरण का माहौल बनाया जा रहा है। डर बस यही है कि जब तक जनता को बांटे जाने की साजिश लोगों को समझ आए, तब तक कहीं ज्यादा देर न हो जाए।
’अश्वनी राघव ‘रामेंदु’, उत्तमनगर, नई दिल्ली</p>