संस्कृतिविदों की गुहार और समय-समय पर अदालती फटकार के बावजूद ऐतिहासिक विरासतों का संरक्षण सरकारों की चिंता में अब तक शामिल नहीं हो सका है। उलटे विकास की दलील देकर सरकारें वहां भी निर्माण की इजाजत और नियमों में ढील देती रही हैं, जहां ऐतिहासिक महत्त्व के स्थलों का अस्तित्व खतरे में है। नियमों के मुताबिक स्मारकों के सौ मीटर के दायरे में किसी भी तरह के निर्माण-कार्य पर पाबंदी है। लेकिन बहुत सारी धरोहरों के आसपास या उनसे बिल्कुल सटे गैरकानूनी निर्माण करा लिए गए या व्यावसायिक गतिविधियां शुरू कर दी गर्इं।
लगभग छह साल पहले भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग ने देश भर में ढाई सौ से ज्यादा ऐतिहासिक स्थलों के अतिक्रमण का शिकार होने की बात कही थी। ऐतिहासिक महत्त्व की कई इमारतें आज या तो अतिक्रमण से प्रभावित हैं या जर्जर होती जा रही हैं। जब देश का ऐसा कोई स्थान विश्व धरोहर की श्रेणी में शामिल किया जाता है, तो यह हमारे लिए गौरव का विषय होता है। पर ऐसे स्थलों की दुर्दशा हमें विचलित क्यों नहीं करती!
’आबिद कुरैशी, जामिआ, नई दिल्ली
फेसबुक पेज को लाइक करने के लिए क्लिक करें- https://www.facebook.com/Jansatta
ट्विटर पेज पर फॉलो करने के लिए क्लिक करें- https://twitter.com/Jansatta