पिछले कुछ समय से उत्तर प्रदेश में बलात्कार और छेड़छाड़ के मामले अपने चरम पर पहुंच गए लगते हैं। इसे राष्ट्रीय अपराध रेकार्ड ब्यूरो के आंकड़े और रिपोर्ट भी पुष्ट करते हैं। वर्ष 2017 में प्रचंड बहुमत की सरकार ने बेटियों और महिलाओं को आश्वस्त किया था कि सख्त कानून और प्रशासन व्यवस्था से बलात्कार, गुंडागर्दी, छेड़छाड़ और छिनैती, हत्या आदि पर नकेल कसी जाएगी। लेकिन परिस्थितियां बिल्कुल विपरीत नजर आ रही है। आए दिन कहीं न कहीं बेटियों की अस्तित्व के खिलाफ अपराध हो रहे हैं।
हाथरस हो या गुरुग्राम, आजमगढ़ हो या जौनपुर, हर तरफ महिलाओं के लिए सिर्फ डर या भय का माहौल नजर आ रहा। ऐसे में आखिर कोई पिता और परिवार अपने बेटियों को शिक्षा और अन्य कार्य के लिए अकेला कैसे छोड़ेगा? आखिर कैसे बेटियां सड़क पर निर्भीक होकर चल सकेंगी? लेकिन ऐसे घिनौने काम में भी अगर एक तरफ राजनीति और दूसरी ओर आरोपियों को बचाने के लिए सभाएं की जा रही हैं तो यह गलत है।
किसी भी स्त्री का सम्मान जाति, धर्म और पंथ से ऊपर उठ कर होता है। जिस प्रदेश में महिलाओं का यह हाल है, उसे ‘उत्तम प्रदेश’ किस तरह कहा जाए! जहां कोई मंदिर के लिए तो बहुत सारे लोग खुश और उत्साहित हैं, लेकिन महिलाओं का सम्मान तार-तार हो रहा। यह कौन कर रहा है और क्यों कर रहा है? अगर हालात में सुधार नहीं होगा तो यह बेहतरी के बरक्स शर्मिंदगी की वजह बनेगा। इससे सिर्फ मौजूदा सरकार की छवि नहीं खराब होती, बल्कि वहां के नागरिकों के लिए भी यह दुखद है।
’अमन जायसवाल, दिल्ली विवि, दिल्ली