देश के विकास के लिए जवाहरलाल नेहरू ने मिश्रित अर्थव्यवस्था का माडल अपनाया था। इसके तहत सार्वजनिक क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण औद्योगिक गतिविधियां, जैसे लोहा तथा इस्पात, बिजली, खानें, शिक्षा, चिकित्सा, रेल यातायात आदि रखे थे! इंदिरा गांधी ने 1969 में बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया! किसी देश के सार्वजनिक उपक्रम उस देश आर्थिक स्थिति का आधार होते हैं। मगर नई आर्थिक नीति के तहत इन सरकारी उपक्रमों में निजी क्षेत्र तथा विदेशी क्षेत्र की भागीदारी को भी शामिल किया जाने लगा।
समय बीतने के साथ सरकार की आमदनी के मुकाबले उसका खर्चा इतना बढ़ गया कि सरकार ने सार्वजनिक उपक्रमों में शत प्रतिशत निजी तथा विदेशी निवेश की अनुमति देनी शुरू कर दी। लेकिन इससे भी काम नहीं चला तो सरकार ने सरकारी उपक्रमों को बेच कर आमदनी करनी शुरू कर दी। दरअसल, सरकार को सार्वजनिक उपक्रम, जो किसी अर्थव्यवस्था की रीढ़ होते हैं, चलाने ही नहीं आते, इसलिए घाटे के मद्देनजर उनको बेचा जा रहा है।
अभी सरकार ने एयर इंडिया टाटा समूह को अठारह हजार करोड़ रुपए में बेच दिया, क्योंकि इसके ऊपर साढ़े इकसठ हजार करोड़ रुपए का कर्ज चढ़ गया था। पूछा जा सकता है कि टाटा समूह घाटे वाले इस उपक्रम को लाभ में कैसे बदलेगा और सरकार ऐसा क्यों नहीं कर सकी? ऐसा माना जा रहा है कि सरकार एलआइसी, बीएसएनल आदि को भी बेचने की तैयारी कर रही है। पूछा जा सकता है कि सरकार जब सार्वजनिक क्षेत्र को लाभकारी ढंग से नहीं संभाल सकती, तो देश की अर्थव्यवस्था को लोगों के हित के लिए कैसे संभालेगी।यह सब सरकार की गलत नीतियों के कारण हो रहा है। आर्थिक स्थिति का हाल यह है कि अस्सी करोड़ लोग मुफ्त के अनाज पर निर्भर हैं। भारत की संस्कृति पूंजीवाद के अनुसार अपने आप को नहीं ढाल सकेगी। इसलिए सरकार को सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को बेचने के बजाय उन्हें लाभप्रद बनाने के लिए नीति बनानी चाहिए।
’शामलाल कौशल, रोहतक, हरियाणा
जड़ पर प्रहार
इराकी प्रधानमंत्री मुस्तफा अल-कदीमी ने ट्वीट करके जानकारी दी की इराकी सेना ने इस्लामिक स्टेट के अतिमहत्त्वपूर्ण सदस्य सामी जसीम को गिरफ्तार कर लिया है। अगर यह बात सही है, तो फिर यह विश्व का आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में सबसे महत्त्वपूर्ण उपलब्धि मानी जानी चाहिए। कहते हैं कि यह न सिर्फ मारे गए आतंकी अबू बकर अल-बगदादी का दाहिना हाथ था, उससे भी बढ़ कर यह आईएस के लिए धन का इंतजाम करता था। यानी बिना इसके उस चरमपंथी गुट का पत्ता भी नहीं हिलता था।
किसी भी दहशतगर्द संगठन से लड़ने का सबसे सही तरीका होता है उसको मिलने वाली वित्तीय सहायता के स्रोत पर आक्रमण करना। क्योंकि जब किसी पौधे की जड़ को जल ही नहीं मिलेगा तो वह पेड़ नहीं बन सकेगा।
’जंगबहादुर सिंह, गोलपहाड़ी, जमशेदपुर