छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले में लोगों को कार से कुचलने की घटना हो या फिर सिंघू बार्डर पर दलित किसान की हत्या, दोनों अमानवीय और क्रूर हैं, लेकिन हर बार की तरह इस पर भी खूब राजनीति हो रही है। कोई कह रहा, यह तुम्हारी सरकार में हुआ, तो कोई कह रहा है कि यह तुम्हारे लोगों ने किया। अपराधियों को सजा और ऐसी घटनाओं की रोकथाम के लिए कोई काम नहीं कर रहा है। गंभीर से गंभीर घटना को नेता बस धार्मिक या राजनीतिक रंग दे जाते हैं, फिर जनता आपस में बहस करती रह जाती है, न्याय कहीं खो जाता है। अपराध, सरकार और विपक्ष की राजनीति का मुद्दा बनने के बाद पीड़ित के सिवा शायद ही किसी और को फर्क पड़ता होगा।

सिर्फ अपराधियों को सजा मिल जाना न्याय नहीं है, न्याय वह है, जो भविष्य में ऐसी घटना होने से रोके, लेकिन राजनेता अपराध की प्रवृत्तियों को कम करने के बजाय दो समुदायों को आमने-सामने खड़ा कर देते हैं, जिससे अपराध और बढ़ता है। देश में न्याय-व्यवस्था बनी रहे, इसलिए सरकार और विपक्ष किसी विशेष समुदाय को निशाना न बना कर अपराधियों को सजा दें और ऐसे अपराध न हों, इस पर कार्रवाई करें।
’सरूप सोनी, बाड़मेर, राजस्थान</p>

चीन की नीयत

आज चीन के भारत के प्रति व्यवहार को कहीं से भी उचित नहीं माना जा सकता है। उसकी नीयत हमेशा से खराब रही है। हमारे पूर्वोत्तर राज्यों पर उसकी नीयत सदा खराब रही है। विस्तारवादी नीति के कारण उस पर कतई विश्वास नहीं किया जा सकता। दरअसल, चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अमन-चैन बहाल करने का कोई इरादा रखता हो, ऐसा नहीं लगता। कोरोना काल में जब सारी दुनिया स्वास्थ्य समस्या से जूझ रही थी, तब वह अपनी कुटिल चालें चल रहा था। उसकी कुदृष्टि हमेशा हमारे पूर्वोत्तर लद्दाख राज्य पर लगी रही थी। इतिहास गवाह है कि चीन के संबंध भारत से कभी बेहतर नहीं रहे हैं। चाहे चीनी-हिंदी भाई का नारा प्रधानमंत्री शास्त्री जी के जमाने में उछाला गया हो, पर तब भी हमारी जड़ें चीन ही खोदने को उतारू था। इस बात को आज पैंतालीस साल बीत गए, फिर भी कभी चीन हमारा यार रहा ही नहीं है। चीन हमेशा यह दिखाने की कोशिश करता है कि व्यापारिक संबंधों में दोनों देश खुशहाल हैं, जबकि ऐसा नहीं है।

चीन हमारा ऐसा पड़ोसी देश है, जो न केवल अपने तरीके से हमें परेशान करता है, बल्कि पड़ोसी देशों- नेपाल, पाकिस्तान, बांग्लादेश के बहाने भी भारत के लिए नासूर बना हुआ है। अब तो अफगानिस्तान भी चीन, पाकिस्तान के कहने में आकर भारत का अपमान कर रहा है। आज लगभग दर्जन भर देश ऐसे हैं, जिनसे चीन की दुश्मनी है। मौजूदा हालात में ताइवान एक ऐसा देश है, जो चीन से आरपार की लड़ाई करना चाहता है। इसलिए हमें जैसे को तैसा की नीति अपना कर ताइवान को मदद करनी चाहिए।

भारत और चीन के बीच बड़ा सीमा विवाद हमेशा से ही चलता रहा है, जिसके कारण अब तक तेरह दौर की बातचीत हो चुकी है, लेकिन विवाद आज भी कायम है। आज भारत सरकार को चीन से डरना नहीं चाहिए और उसकी आंख से आंख मिला कर बात करनी चाहिए। जब तक हम उसे उसकी ही भाषा में जवाब नहीं देंगे, तब तक वह हमसे झूठ और मक्कारी की भाषा में बोलता रहेगा। अत: जरूरी है कि उसे उसी की भाषा में हमें जवाब दें।
’मनमोहन राजावत ‘राज’, शाजापुर