यह चिंता की बात है कि आज हमारी मातृभाषा हिंदी की जो दयनीय स्थिति हो रही है, उसमें हमारे उच्चवर्ग के साथ-साथ मध्यवर्ग की भी एक बड़ी भूमिका है। हमारा मध्यवर्ग आज हिंदी पढ़ने-बोलने में शर्म महसूस करता है और खराब ही सही, अंग्रेजी बोलने में गर्व महसूस करता है। अंग्रेजी स्कूलों में तो हिंदी केवल एक खानापूर्ति का विषय बन कर रह गई है।

महात्मा गांधी ने कहा था- ‘हिंदुस्तान को अगर सचमुच एक राष्ट्र बनाना है तो चाहे कोई माने या न माने, राष्ट्रभाषा हिंदी ही बना सकती हैं।’ निस्संदेह हिंदी हमारी अनेकता में एकता की मिसाल है। हिंदी में कोई कमी है तो यह कि हमारे मन में इसे लेकर हीन भाव है। जब तक हिंदी पूरी तरह से उच्च शिक्षा में नहीं पढ़ाई जाएगी, तब तक इसके विकास के बारे में सोचना एक मृग मरीचिका के समान ही होगा।

इसलिए हमारे रहनुमाओं को भी हिंदी के विकास के बारे में गंभीरता से सोचना होगा। उन्हें चीनी, जापानी, जर्मन, रूस आदि देशों की तरह अपनी मातृभाषा से प्रेम करना होगा और हिंदी को उसका उचित सम्मान दिलाना होगा।
’रमेश शर्मा, केशवपुरम, दिल्ली</p>