इन सभी प्रश्नों पर विचार करना जरूरी हो जाता है समाज में अपराध सदियों से होते आ रहे हैं, किंतु अपराधों का स्वरूप बदल गया है। अब साइबर अपराधों का ग्राफ तेजी से बढ़ रहा है। प्राचीन काल में न्याय राजा के दरबार में होता था, उसकी जगह आज न्यायपालिका है।
लेकिन सजा देने के उद्देश्य में कोई अंतर नहीं आया है। सजा का उद्देश्य अपराधी में सुधार करना होना चाहिए या गलती का अहसास होना चाहिए, न कि उसे और बढ़ा अपराधी बनाना जैसा कि आजकल देखने को मिलता है। देखा गया है कि जो अपराधी जेल की हवा खाकर लौटता है, वह किसी गली-मोहल्ले का दादा बन जाता है, अपनी गिरोह बना लेता है और फिर समाज में उसका खौफ कायम हो जाता है। यदि हमारी जेलें सही मायनों में सुधारगृह होतीं तो वहां से निकलने वाले दोबारा अपराध में लिप्त नहीं होते।
’आशीष रमेश राठौड़, चंद्रपुर (महाराष्ट्र)
बेटी क्यों नहीं
लिंग के आधार पर होने वाले भेदभाव को खत्म करने और महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाने की शुरूआत की गई। देश में हर साल 24 जनवरी को राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जाता है। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने 2008 में इसकी शुरूआत की थी। इसका असल मकसद लड़कियों को समान अधिकार दिलवाने की दिशा में काम करना है।
समाज में आज भी लड़कियों को काफी ज्यादा भेदभाव का सामना करना पड़ता है। आज भी ऐसे परिवारों की कमी नहीं है जो बेटी की तुलना में बेटे को ही अहमियत देते हैं। हालांकि सरकार द्वारा लिंग जांच पर प्रतिबंध लगाने के बाद थोड़ी कमी जरूर आई है, लेकिन लोगों की मानसिकता में अपेक्षित बदलाव देखने को नहीं मिला है।
यदि केवल संसार में बेटे ही बेटे हो जाएं, तो क्या आने वाली हमारी पीढियों का अस्तित्व बच पाएगा, यह कोई नहीं सोचता। सबको मां चाहिए, पत्नी चाहिए, तो फिर बेटी क्यों नहीं चाहिए? लोगों को अपनी मानसिकता बदलनी होगी।
’मधु कुमारी ,बोकारो (झारखंड)