धरती पर अनेक जीव, जंतु और पेड़-पौधे हैं। ये लगभग सभी एक दूसरे से अलग-अलग हैं। यानी इनमें विभिन्नता है। यह विभिन्नता ही जैव विविधता है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इनमें बेशक विभिन्नता है, लेकिन ये किसी न किसी रूप में एक दूसरे पर निर्भर भी जरूर हैं। हमारा देश जैव विविधता प्रधान है। यहां विभिन्न प्रजातियों के जीव और पेड़-पौधे पाए जाते हैं। जैव विविधता के संरक्षण के लिए पर्यावरण का संरक्षण बहुत जरूरी है, लेकिन हम आधुनिकता और भौतिकतावादी चकाचौंध में अंधे हो गए हैं और पर्यावरण का संरक्षण करना भी भूल गए हैं।

ऐसा माना जाता है कि धरती पर लगभग तीन लाख वनस्पति और जीव-जंतु हैं, लेकिन इंसान ने अपने स्वार्थ के लिए पर्यावरण को इस कदर बिगाड़ दिया कि इनमें से बहुत से जीव-जंतु लुप्त हो गए और कुछ लुप्त होने के कगार पर हैं। यह जैव विविधता के लिए खतरे का संकेत है। प्रकृति की शान पशु, पक्षियों और हर प्राणी से है। जब किसी के सिर स्वार्थ सवार हो जाता है, तो वह अपने हित को पूरा करने के लिए अपने आसपास की अच्छी चीजों, बातों को भी अनदेखा कर देता है।

प्रकृति के साथ भी इंसान ऐसा ही कुछ कर रहा है, अपनी सुख-सुविधाओं की खातिर प्रकृति की नाक में दम तो किया ही है, साथ ही प्रकृति के सौंदर्य को चार चांद लगाने वाले वन्यजीव, पशु-पक्षियों की रक्षा करना ही भूल गया है। इनमें से कुछ प्रजातियां विलुप्त हो गई हैं। कुदरत ने प्राणी जाति के लिए एक चक्र बनाया है। इसमें हर जीव-जंतु, पक्षियों का होना जरूरी है। लेकिन आज इंसान ने आधुनिकता और भौतिकतावाद की अंधी दौड़ में अपने स्वास्थ्य के साथ-साथ पशु, पक्षियों और अन्य सभी प्राणियों के जीवन के अस्तित्व को ही खतरे में डाल दिया है।
राजेश कुमार चौहान, जलंधर।

समीक्षा के आग्रह

एक समय था जब हम फिल्मों के बड़े परदे पर प्रदर्शित होने से पहले उसकी समीक्षा अखबारों में पढ़ते थे, जिसे किसी विश्वसनीय और वरिष्ठ फिल्म समीक्षक द्वारा लिखा जाता था। उनमें फिल्म के निर्देशन, फिल्म की पृष्ठभूमि सिनेमेटोग्राफी, गानों, अभिनेत्री और अभिनेता के अभिनय आदि की चर्चा होती थी। फिल्म में क्या कुछ बढ़िया है और कहां चूक रह गई, इस पर विस्तृत समीक्षा होती थी।

वास्तव में समीक्षा का अर्थ ही यही है कि जो कुछ अच्छा है और जो कुछ बुरा है, उसे निष्पक्ष होकर कहना, क्योंकि समीक्षा, आलोचना और प्रशंसा दोनों पक्षों को मिलाकर निष्पक्ष रूप से दी जाती है। लेकिन आजकल लोगों के पास ऐसे निष्पक्ष विस्तृत लेख पढ़ने का समय ही कहां हैं। अब लोग फोन पर ही फिल्म समीक्षा सुन लेते हैं और उसी के हिसाब से फिल्म देखने जाते हैं। नहीं तो फोन पर ही देख लेते हैं।

जिस तरह लोगों के फिल्म देखने के तरीके बदले हैं, उसी तरह समीक्षा का रूप भी बदल गया है। कुछ लोग खुद को पेशेवर फिल्म समीक्षक समझकर फिल्म की व्यक्तिगत समीक्षा दे रहे हैं। फिल्म के किसी अन्य बिंदु पर चर्चा करना तो दूर, फिल्म को बस किसी धर्म, जाति या राजनीतिक दल से जोड़कर किसी एक की बुराई करते हैं और दूसरे का महिमामंडन करते हैं। फिल्म समीक्षा कम राजनीतिक समीक्षा ज्यादा लगती है। व्यक्तिगत समीक्षक निष्पक्ष होकर नहीं, बल्कि एक पक्ष चुनकर अपनी समीक्षा देते हैं। आजकल निष्पक्ष होकर कुछ कहने से ज्यादा आसान है पक्ष चुनकर कहना।
आयुषी शाक्य, मलाजनी, इटावा।

नगद का भरोसा

जो लघु उद्योग अपनी नगद जरूरतों को पूरा करने के लिए दो हजार रुपए के नोट में मुद्रा रखते हैं या जो किसान अपनी बचत को इन नोटों में रख रहे होंगे, उन्हें निश्चित रूप से दिक्कत होगी। सरकार अगर सौ दिनों के भीतर इन सभी नोटों को वापस लेगी तो इसका मतलब ये है कि इस दौरान दस करोड़ अतिरिक्त लेनदेन होंगे। इससे बैंकों पर बोझ बढ़ेगा और लोगों को बैंक में अतिरिक्त समय लगेगा। ये नोट बंद होने से अर्थव्यवस्था में नगद की विश्वसनीयता भी कम होगी।

लोगों के मन में यह सवाल पैदा हो सकता है कि अगर दो हजार का नोट बंद किया जा सकता है तो पांच सौ का भी बंद किया जा सकता है। नगद का इस्तेमाल भुगतान के लिए किया जाता है। इसमें भी बाधा आ सकती है। भारतीय अर्थव्यवस्था पहले से परेशानी में है। असंगठित क्षेत्र पिट रहा है, वह और खराब स्थिति में जा सकता है। नोटों का इस्तेमाल लेनदेन के लिए किया जाता है। नोट में भरोसा कम होने से लेनदेन भी कम हो सकते हैं और इसका सीधा असर अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है।
रवि रंजन, नई दिल्ली।

क्वाड के सामने

क्वाड भारत, अमेरिका, आस्ट्रेलिया और जापान जैसे कुछ देशों का एक समूह है, जिसका उद्देश्य भारत प्रशांत क्षेत्र में लोकतांत्रिक देशों के हितों की रक्षा करना और वैश्विक चुनौतियों का समाधान करना है। यह एक अनौपचारिक संगठन है। प्रत्येक वर्ष इसका एक शिखर सम्मेलन होता है। हालांकि 2023 का शिखर सम्मेलन अमेरिका ने स्थगित करवाकर चीन को मुफ्त की जीत दिलवा दी है। इससे क्वाड को चोट पहुंची है, क्योंकि इस वर्ष का सम्मेलन अति महत्त्वपूर्ण था। चारों देशों के अलावा अन्य देशों को बुलाने का कार्यक्रम था। मगर अंतिम क्षण में अमेरिका के राष्ट्रपति ने कहा कि मैं आस्ट्रेलिया नहीं आ पाऊंगा। इसके बाद आस्ट्रेलिया ने पूरा सम्मेलन ही रद्द करवा दिया।

महत्त्वपूर्ण सवाल यह है कि अमेरिका ने सम्मेलन रद्द क्यों होने दिया। इसके पीछे अमेरिका का बढ़ता कर्ज है। हाल ही में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने कहा है कि डालर पर संकट आने वाला है जिसका प्रभाव अमेरिका पर ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया पर दिखाई पड़ेगा। अमेरिका की समस्या तो यह थी। लेकिन यह पहले भी बताना चाहिए था कि आस्ट्रेलिया को कि वहां के राष्ट्रपति सम्मेलन में शामिल नहीं हो पाऊंगा। इसके अलावा, राष्ट्रपति जो बाइडेन अपने सचिव को भेजकर वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए उपस्थित होकर क्वाड को संबोधित कर सकते थे। लेकिन रद्द करवाकर चीन को जैसी जीत दिलवाई गई है, इससे अमेरिका की क्वाड के प्रति प्रतिबद्धता कितनी है, वह साफतौर पर दिखाई देती है। इससे भारत-प्रशांत क्षेत्र के देशों के लिए एक खराब संदेश जाएगा।
पारस मल बोस, बाड़मेर, राजस्थान।