इसमें सत्ता पक्ष विपक्ष और सुप्रीम कोर्ट के प्रतिनिधि होने से अब राजनीतिक दल चुनाव आयोग पर किसी भी तरह के पक्षपात की अंगुली नहीं उठा सकेंगे। पूर्व चुनाव आयुक्त टीएन शेषन ने निष्पक्ष चुनावों के लिए बहुत परिश्रम किया और उन्होंने बता दिया कि चुनाव आयोग का सत्ता पक्ष के इशारे पर चलना कतई जरूरी नहीं है।
साथ ही अब सरकार को आयोग के लिए पर्याप्त धन, सुरक्षा और अन्य सभी मूलभूत सुविधाओं को यथासमय पूरा करना चाहिए। इसके साथ ही अब यह मांग भी उठने लगी है कि जब चुनाव आयुक्त के लिए सर्व स्वीकार्य प्रक्रिया निर्धारित कर ली गई है, तो क्यों न विवादास्पद कालेजियम प्रणाली के लिए भी यही प्रक्रिया अपना कर न्यायालयों को भी निष्पक्ष और भाई-भतीजावाद से मुक्त किया जाए।
सुभाष बुड़ावनवाला, रतलाम, मप्र।
पारदर्शिता की पहल
निस्संदेह सर्वोच्च न्यायालय द्वारा लिया गया यह निर्णय स्वागत योग्य है कि मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों का चयन प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और मुख्य न्यायाधीश की सलाह से होना चाहिए। अब भी चुनावों में निष्पक्षता पर प्रश्नचिह्न उठते रहते हैं और उन सभी संदेहों को समाप्त करने का सबसे अच्छा तरीका पारदर्शिता के साथ मुख्य चुनाव आयुक्त का चुनाव है।
जब विपक्ष के नेता, प्रधानमंत्री और मुख्य चुनाव आयुक्त स्वयं किसी नाम को राष्ट्रपति के पास स्वीकृति के लिए भेजेंगे तो उससे पूरे देश में सकारात्मक संदेश जाएगा। इससे सत्ता पक्ष को भी एतराज नहीं होना चाहिए, क्योंकि यह सभी के हित में होगा।
बाल गोविंद, नोएडा।
संतुलन का तकाजा
हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने एक याचिका पर कहा कि अतीत को वर्तमान और भविष्य पर इतना हावी नहीं होने दिया जा सकता है कि भारत अतीत का बंदी बन जाए। जिस याचिका पर अदालत ने यह टिप्पणी की वो याचिका प्राचीन जगहों के नाम बदलने से संबंधित थी। वर्तमान में पुरानी जगहों के नाम बदलने का चलन बढ़ गया है।
अतीत हमें हमारे अस्तित्व का भान कराता है, इससे हमारे वजूद की व्याख्या भी होती है। अगर इस विचारधारा का समर्थन किया जाए तो अतीत की ओर झांकना जायज है, क्योंकि अतीत से हमें हमारी सामर्थ्य का पता चलता है साथ ही हमारी कमजोरी भी उजागर होती है। इसका लाभ लेकर हम न सिर्फ अपने वर्तमान, बल्कि भविष्य को भी सवार सकते हैं।
मगर इसका दूसरा पक्ष सर्वोच्च न्यायालय के बयान से उभरता है। दोनों पक्षों पर विचार करने से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि अधिक अतीतोन्मुख या ज्यादा वर्तमानवादी होना उचित नहीं है। इसलिए अतीत और वर्तमान के बीच सामंजस्य रखना एक संतुलित दृष्टिकोण है, ताकि अपने आप को भूले बगैर स्वयं को मजबूत बनाया जा सके, अतीत की गलतियों से सबक लिया जा सके। साथ ही वर्तमान को शानदार बनाया जा सके।
कन्हैया सिंह, भरतपुर, राजस्थान।
सतर्कता जरूरी
जलवायु संकट का खतरा लगातार बढ़ रहा है। धरती का जलस्तर गिरना, ग्लेशियरों का पिघलना और समुद्र का जलस्तर बढ़ना ऐसी बड़ी चिंताएं हैं, जिनका समाधान खोजा जाना जरूरी है। इस वर्ष फरवरी माह का सबसे गर्म रहना बड़े खतरे का संकेत है। इससे उबरने के लिए पर्यावरण की सुरक्षा और प्रकृति संरक्षण ही कारगर उपाय होगा। हर हाल में जंगलों की हरियाली को कायम रखना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए।
आमतौर पर होली के बाद गर्मी का अहसास होता है। पूरे साल गर्मी पड़ने से धरती का जलस्तर काफी नीचे चला जा रहा है, जिससे हजारों फीट की गहराई तक पानी नसीब नहीं है। तेज गर्मी से ग्लेशियरों के पिघल कर समुद्र का जल स्तर बढ़ने से समुद्र किनारे बसे महानगरों के डूबने का खतरा पैदा हो गया है।
इन हालात में प्रकृति संरक्षण ही आने वाली आपदा को टाल सकता है। पर्याप्त पौधारोपण, बारिश के जल का पुनर्भरण जैसे कई उपाय हैं, जिन्हें समय पर अमल में लाकर हम प्रकृति के क्रोध से बच सकते हैं।
अमृतलाल मारू ‘रवि’ , इंदौर।
मोटापे की मार
विशेषज्ञों के अनुसार देश-दुनिया में मोटापे की वजह से कई जानलेवा बीमारियां होती हैं, जिनके चलते कई लोगों को अपनी जान से हाथ भी धोना पड़ा है। हर साल 4 मार्च को विश्व मोटापा दिवस मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य स्वास्थ्य के अनुरूप वजन बनाए रखने और मोटापे के वैश्विक संकट को दूर करने में मदद के लिए किए जा रहे व्यावहारिक कार्यों को प्रोत्साहित करना तथा समर्थन देना होता है।
स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करने के लिए स्वास्थ्य विभाग और प्रशासन ने बहुत से अभियान चला रखे हैं। आजकल देखने को मिलता है कि कुछ अभिभावकों को न तो अपने स्वास्थ्य की चिंता है और न ही अपने बच्चों की। हाल ही में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने 2019-20 में किए गए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) की पांचवीं रिपोर्ट का पहला भाग जारी किया।
रिर्पोट के अनुसार देश में बच्चों में कुपोषण और मोटापा बढ़ता जा रहा है। रिपोर्ट में बताया गया है कि बीस राज्यों में पांच साल से कम उम्र के बच्चों में तेजी से मोटापा बढ़ रहा है। इससे पहले भी राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण में यह खुलासा हुआ है कि देश में अशिक्षित या गरीब परिवारों के बच्चे ही नहीं, बल्कि शिक्षित और अमीर घराने के बच्चे भी पोषक आहार से दूर होते जा रहे हैं। बच्चों और किशोरों में तेजी से मोटापा बढ़ना चिंता का विषय है। ऐसे में जरूरत है बिगड़ते स्वास्थ्य के प्रति सचेत होने की।
राजेश कुमार चौहान, जालंधर।