सड़कें देश की जीवन रेखाएं हैं। आज महानगरों से लेकर शहरों, कस्बों और गांवों तक की सड़कें, फुटपाथ, चौराहे और गलियां तक अवैध कब्जों और अतिक्रमण की बड़ी शिकार हैं। इससे देश का हर शहर जाम और हादसों का शिकार हो रखा है। इसमें न जाने कितना धन, र्इंधन, समय, जान-माल और ऊर्जा की भारी बर्बादी हो रही है। इसका प्रमुख कारण तेजी से बढ़ती जनसंख्या और इसी गति से लापरवाह होता सरकारी तंत्र है। सरकारी जमीनों और पार्कों आदि का भी यही हाल है।
एक अत्यंत बड़ी समस्या तेजी से बढ़ती अवैध कालोनियों की भी है जो रुकने का नाम ही नहीं ले रही है। कहीं भी नजर डालें तो पूरा देश ही झुग्गियों में तब्दील होता नजर आता है। इसलिए सर्व प्रथम तो सरकार को अब इस बड़े सुधार की तरफ तेजी से बढ़ने की जरूरत है, जिसमें जनसंख्या नियंत्रण के साथ इन सभी कालोनियों आदि की गलियों, सड़कों और फुटपाथों आदि पर विशेष कार्य युद्ध स्तर पर करना होगा और भविष्य में इन अवैध कालोनियों पर सख्त रोक लगानी होगी। आज अवैध कब्जे में कितनी सरकारी जमीन आ चुकी हैं, शायद सरकार को खुद को भी मालूम नहीं होगा। यदि सरकार अब भी इस पर कुछ ठोस और पारदर्शी कदम नहीं उठाती है तो हालात और भी अधिक विस्फोटक और खराब ही होंगे।
’वेद मामूरपुर, नरेला, दिल्ली</p>
कुदरत से खिलवाड़
खेती-किसानी करने वाले किसानों का जितना नाता वन, वृक्षों, जीव जंतु से होना चाहिए, वह आज नहीं है, क्योंकि किसानों की कुल्हाड़ी ने हरे भरे वृक्षों को काटना शुरू कर दिया। हरियाली के कम होने की एक वजह यह भी है। हमारे पूर्वज भले ही पढ़े-लिखे कम थे, मगर उनकी बुद्धि व वैज्ञानिक सोच हम पढ़े-लिखों से दो कदम आगे थी। उन्होंने पेड़-पौधों, वन्यजीवों को पूजने की रीति चला कर अपने वैज्ञानिक सोच और प्रकृति से समन्वय का आदर्श उदाहरण पेश किया था। लेकिन हमने पूर्वजों के आदर्शों की हत्या करनी शुरू कर दी। पेड़-पौधों के कटने से पशु-पक्षियों के बसेरे उजड़ गए। इससे प्राकृतिक संतुलन बिगड़ता जा रहा है। मौसम पर भी असर पड़ रहा है। अब हमें पूर्वजों की नसीहत को अमल में लाना होगा, तभी अच्छे मौसम की सौगात मिल पाएगी। हालांकि वनों को उजाड़ने में वन माफियाओं को भी माफ नहीं किया जा सकता है!
’हेमा हरि उपाध्याय, खाचरोद, उज्जैन
कब होंगी भर्तियां
हरियाणा में पिछले दो सालों से भर्ती प्रक्रिया बंद ही समझी जानी चाहिए। हरियाणा सरकार ने कोरोना बंदी से पहले जो भर्ती विज्ञापन जारी किए थे, उन पर अब तक कोई काम नहीं किया है। नई भर्ती की बात तो दूर की बात है। यही नहीं मार्च 2020 में राज्य भर के आइटीआइ संस्थानों यानी राजकीय औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों में अनुदेशकों के पदों के लिए जारी किए गए परिणाम के बाद दस्तावेजों की जांच को अदालत के स्थगन के नाम पर लटका दिया है। मालूम हो कि साल 2010 में हरियाणा सरकार ने पहली बार आइटीआइ में अनुदेशकों के पदों के लिए आवेदन मांगे थे। इसके बाद सात बार ये पद विज्ञापित किए जाते रहे। आखिरकार 2019 में राज्य के लाखों बीटेक युवाओं ने परीक्षा दी। हर श्रेणी की
अलग-अलग परीक्षा लगभग एक माह चली। आंदोलन कर परीक्षा परिणाम जारी करवाया गया। पांच बार दस्तावेज जांच का काम टला और यह अभी तक जारी है। आखिर सरकार अदालत की आड़ लेकर भर्ती क्यों नहीं करना चाहती? क्या यह अंदर खाते भ्रष्टाचार की दस्तक तो नहीं है? अगर ऐसा नहीं तो फिर क्यों सरकार भर्ती नहीं कर रही है। क्यों ठेके पर कर्मचारी रखे जा रहे हैं? सरकार के इस रवैए के कारण हरियाणा के बीटेक एवं एमटेक पास हजारों नौजवान तनाव में हैं।
’प्रियंका सौरभ, हिसार