यह उल्का वास्तव में खगोलीय मलबे की धाराओं के ग्रह के वायुमंडल पर अति-तीव्रता से गिरने से प्रस्तुत होते हैं। अधिकतर का आकार बहुत ही छोटा (रेत के कण से भी छोटा) होता है, इसलिए वे सतह तक पहुंचने से बहुत पहले ही ध्वस्त हो जाते हैं। अधिक घनी उल्का वर्षा को उल्का बौछार (उल्कापात) कहते हैं। उल्कापात दरअसल वे तारे न होकर छोटे आकाशीय पिंड होते हैं, जिन्हें विज्ञान की भाषा में ‘उल्का’ कहा जाता है। जब कोई उल्का पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करती है तो अपनी तीव्र गति से उत्पन्न हुए घर्षण के कारण वायुमंडल में जल उठती है।

इस प्रक्रिया से उत्पन्न हुए प्रकाश के कारण वे टूटते हुए तारे प्रतीत होते हैं। इस प्रकार की खगोलीय घटना को छात्र-छात्राएं, खगोलशास्त्र में रुचि रखने वालों को अवश्य देखना चाहिए। इसी तरह, उल्का पिंडों की बात करें तो वैज्ञानिकों की नजर उल्कापिंडों पर रहती है। हर साल सोशल मीडिया पर खबर आती है कि अंतरिक्ष से धरती पर उल्कापिंड गिरने की संभावना है।

उल्कापिंड धरती से नहीं टकराता, बल्कि एक भय का वातावरण सबके मन में भर जाता है। अभी सोशल मीडिया पर धरती की और उल्का पिंड के नजदीक से गुजरने की आशंका बताई गई। ऐसे उल्कापिंडों का परिभ्रमण दोबारा कई वर्षों बाद फिर से संभव होता आ रहा है। पृथ्वी से टकराने की ऐसी अफवाहों पर अंकुश लगाना आवश्यक है, क्योंकि अंतरिक्ष में करोड़ों उल्कापिंड तैरते रहते हैं, जिनकी पृथ्वी से दूरी लाखों-करोड़ों मील है। सभी ग्रहों का अपना गुरुत्वाकर्षण है।

ऐसे छोटे-छोटे उल्कापिंड पृथ्वी के करीब यानी लाखों किलोमीटर और अत्यंत तेज रफ्तार से गुजरते रहते हैं। कुछ पृथ्वी की कक्षा में आने के पूर्व नष्ट हो जाते हैं। भविष्य में संभावित खतरों से पृथ्वीवासियों की रक्षा के लिए नासा वैज्ञानिक, खगोलशास्त्री आदि की अंतरिक्ष पर नजरें हैं। लेकिन हर हाल में अफवाहों को फैलने से रोका जाए। संजय वर्मा ‘दृष्टि’, मनावर, मप्र

उम्र पर नाज

खूबसूरती ने सभी लोगों के दिलोदिमाग को अपनी मुट्ठी में बांध लिया है। लोगों पर खूबसूरती का नशा इतना चढ़ा है कि जरा-सा भी बदलाव शरीर में आने से लोगों की हंसी-खुशी जिंदगी को भी छीन लेता है। यह बात अलग है कि हर किसी को अपनी खूबसूरती पर नाज होता है। वह चाहता है कि वह सबसे अलग दिखे, अच्छा दिखे। पर हम ये क्यों भूल जाते हैं कि उम्र के साथ-साथ जिस तरह हमारी जिंदगी में बदलाव आते हैं।

उसी तरह हमारे शरीर पर भी उम्र झलकता है। अब नौजवान जैसा चेहरा अगर कोई बुढ़ापे में भी चाहे, तब ये ख्वाहिश नहीं पूरी हो सकती। यह सोचना चाहिए कि अब तक हम जिस भी उम्र में हों, हमने जिंदगी को अच्छे से समझा है, देखा है, परखा है और दुख-खुशी के दिनों को भी आते-जाते देखा है। हमें खुश होना चाहिए कि बचपन से लेकर अब तक का सफर कितने अच्छे से जिया है।

शीशे के सामने खड़े होकर अपनी खूबसूरती और साथ में उम्र पर भी नाज करना चाहिए। लटकती झुर्रियां खूबसूरती का एहसास कराती हैं। यहां तक आने तक का सफर भी बहुत से लोगों का सपना होता है, पर किसी का सपना पूरा होता है तो किसी का बीच में अधूरा रह जाता है।
सृष्टि मौर्य, फरीदाबाद, हरियाणा

सद्भाव की राह

आज विश्वयुद्ध के बादल मंडरा रहे हैं। रूस और यूक्रेन युद्ध एक वर्ष के बाद भी समाप्त नहीं हो पाया है। इसलिए तथागत गौतम बुद्ध की करुणा, प्रज्ञा, शील की शिक्षा और दीक्षा की प्रासंगिकता और भी बढ़ जाती है। विश्व समुदाय गौतम बुद्ध के पदचिह्नों पर चलकर ही विश्व शांति की कल्पना को साकार कर सकता है। तथागत बुद्ध की शिक्षाओं की बेहद आवश्यकता है।

भारत जहां से तथागत का संदेश गया था, यहां भी गरीबों और महिलाओं पर अत्याचार की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। सड़कों पर गाड़ियों के टकराने पर भी हत्या तक हो जाती है। हम क्रोध और अशांति में जी रहे हैं, नफरत और तनाव में जी रहे हैं। इन सबका समाधान तथागत बुद्ध की शिक्षा में निहित है। सभी धर्मों के अनुयायी आपसी भाईचारे और सामाजिक सौहार्द के साथ रहें। यही हमारी जीवन पद्धति होनी चाहिए।
वीरेंद्र कुमार जाटव, देवली, दिल्ली</p>

मशीन बनाम इंसान

कृत्रिम मेधा या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी तकनीक से कुछ वैसे ही लोगों को रोजगार मिल सकता है जो कंप्यूटर, विज्ञान या इससे संबंधित पढ़ाई करेंगे। दुनिया के बाकी देशों में एआइ रोजगार पर कितना प्रहार कर सकती है, यह तो अभी नहीं पता है, लेकिन अगर यह तकनीक हमारे देश में आती है तो यह हमारे देश में यह बेरोजगारी के जख्मों पर नमक लगाने जैसा होगा, क्योंकि हमारे देश में गरीबों की तादाद बहुत ही ज्यादा है।

जबकि एआइ से संबंधित पढ़ाई या कोर्स करना बहुत मुश्किल है। बेरोजगारी की समस्या हमारे देश के लिए ही नहीं, बल्कि दुनिया भर के लिए चुनौती बन रही है, क्योंकि इसका एक तो मुख्य कारण बढ़ती जनसंख्या और दूसरी मशीनीकरण है। जनसंख्या जिस हिसाब से बढ़ रही है, उस हिसाब से रोजगार के अवसर नहीं बढ़ रहे हैं।

दूसरे, फैक्टरी, कंपनी, खेत या अन्य किसी भी जगह पर जिस काम को दस लोग करते थे, अब उसी काम को मशीन के जरिए एक ही व्यक्ति द्वारा किया जा रहा है। ऐसे में लाजिमी है कि देश-दुनिया में बेरोजगारी की लाइन बढ़ती जाए।

आधुनिक तकनीक ने जिंदगी तो आरामदायक और आसान तो बना दी है, लेकिन इसने बेरोजगारी भी बढ़ा दी है। आज दुनियाभर के देशों के लिए बेरोजगारी एक बहुत बड़ी समस्या बनती जा रही है। भारत में मशीनों का निर्माण भी न के बराबर ही होता है। इस कारण भी नई तकनीक भारत में रोजगार के लिए अभिशाप ही मानी जा सकती है। इसी के साथ भारत में रोजगार पर प्रहार किया है चीन और आनलाइन बाजार ने। आनलाइन बाजार कुछ ही हाथों तक सिमटकर रह गया है।
राजेश कुमार चौहान, जलंधर