हालांकि हमारे संविधान में कहीं भी दलीय व्यवस्था की चर्चा नहीं है, फिर भी स्वतंत्रता के बाद से ही लगातार हमारे नेता विभिन्न राजनीतिक दलों का गठन कर चुनाव में भाग लेते आ रहे हैं और चुनाव जीत कर या जोड़-तोड़ कर सरकार बनाते आ रहे हैं। दरअसल, किसी भी राजनीतिक दल के संचालन के लिए भारी संख्या में व्यक्तियों की आवश्यकता है। केंद्रीय समिति से लेकर प्रखंड स्तर तक अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, महासचिव, सचिव वगैरह और प्रत्येक स्तर पर दर्जनों कोषांग और फिर उनके पद धारक और सदस्य। फिर जो व्यक्ति दल का अगुवा रहता है उसे हमेशा अगुआ रहने की चिंता। वर्तमान माहौल में सब जगह, सभी समय भीड़ जुटाने की चिंता अलग से।
अब यह अन्वेषण करने की चीज है कि ऊपर से नीचे तक जो लाखों लोग इस प्रकार से राजनीति करने जैसे कार्य में लगे हुए हैं, उनकी आजीविका कैसे चलती है और उनमें से अधिकतर लोग सामान्य लोगों की तुलना में धनाढ्य किस प्रकार हो जाते हैं? जाहिर है, आज हमारी राजनीति समाज की सभी प्रकार की बुराइयों का कारण बन चुकी है। विधायक और सांसद का पद या अन्य कोई पद तो बहुत कम लोगों को मिल पाता है, राजनीति करने वाले अधिकतर लोग समाज के लिए परजीवी (पारासाइट) हो जाते हैं और केवल गलत ढंग से पैसा कमाते हैं।
अक्सर सभी लोग कहते हैं कि युवाओं को राजनीति में आगे आना चाहिए। अच्छी बात है, लेकिन ऐसे लोगों को यह भी बताना चाहिए कि राजनीति करने वाले युवाओं की आखिर गृहस्थी किस प्रकार चलेगी? अगर कोई नौजवान राजनीति में आता है तो जब तक उसे कोई वेतन-भत्ते वाला पद नहीं मिल जाता, तब तक उसका या उसके परिवार का खर्च किस प्रकार चलेगा? राजनीति में आने वाले सभी लोगों को यह स्पष्ट होना चाहिए कि राजनीति से उन्हें कोई आर्थिक लाभ नहीं होगा। राजनीति करने को इच्छुक सभी लोगों को यह मालूम होना चाहिए कि अगर उन्हें आजीविका कमानी है या गृहस्थी चलाने की चिंता है तो वे खेती करें, व्यापार करें, नौकरी करें या कुछ भी वैसा कार्य करें, जिससे उनका और उनके परिवार का खर्च चले।
राजनीति को अगर हमें साफ-सुथरा करना है तो हमें राजनीति से भीड़ को हटाना होगा। पूर्णकालिक रूप से राजनीति करने के लिए बहुत ही कम लोगों की आवश्यकता है। अपने-अपने विचार और सोच से मिलने वाले राजनीतिक दलों या व्यक्तियों के समर्थन के लिए पूर्णकालिक रूप से राजनीति करने वाले लोगों की आवश्यकता नहीं है।
इसके अलावा, राजनीति करने वाले लोगों को हमें दो श्रेणियों में बांटना होगा। पहला, पूर्णकालिक राजनीतिक, जो चुनाव लड़ सकता है, लेकिन उसे कोई आर्थिक लाभ नहीं मिलेगा, केवल कार्य करने की व्यवस्था मिलेगी। दूसरा, अंशकालिक राजनीतिक, जो अपनी सोच और विचार के अनुरूप किसी भी दल का या व्यक्ति का समर्थन या प्रचार-प्रसार कर सकेगा, लेकिन उसे इसके एवज में कोई लाभ नहीं मिलेगा। केवल लोकतंत्र को मजबूत और सुरक्षित बनाने का आत्मसुख मिलेगा। इस प्रकार, राजनीति को साफ-सुथरा तथा जवाबदेह बनाने के लिए राजनीति में भीड़ को समाप्त करना होगा और केवल सेवा भाव वाले लोग ही राजनीति में आ पाएं, यह सुनिश्चित करना होगा।
’राधा बिहारी ओझा, पटना, बिहार