विश्व के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में गिनी जानी वाली दिल्ली को बढ़ते प्रदूषण से बचाने के लिए आम आदमी पार्टी की सरकार ने आगामी एक जनवरी से सम-विषम संख्या वाले निजी वाहन एक दिन छोड़ कर चलाने का निर्णय लिया है। इस निर्णय का भारी विरोध होते देख केजरीवाल सरकार ने अब इसे प्रायोगिक तौर पर पंद्रह दिन तक लागू करने का ऐलान किया है। प्रदेश सरकार के इस निर्णय का जहां चारों ओर से स्वागत किया जाना चाहिए था वहीं टीवी चैनलों पर विभिन्न दलों के प्रवक्ता इसे तुगलकी और दिल्ली की जनता के विरोध में बताते नजर आए। राजधानी में प्रदूषण के बढ़ते खतरनाक स्तर को लेकर उच्चतम न्यायालय कई बार केंद्र सरकार पर प्रतिकूल टिप्पणी कर चुका है और हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने भी केंद्र सरकार को ‘कार्य योजना’ देने को कहा था। ऐसे में दिल्ली सरकार के इस निर्णय की सराहना तो दूर, इसके खिलाफ न्यायालय में जनहित याचिका तक दायर कर दी गई।

पूर्व में भी वर्षों पहले दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण को लेकर शहर के उद्योगों को बाहर स्थापित करने का निर्णय लिया गया था मगर इसे भी विरोध के चलते अमली जामा नहीं पहनाया जा सका। सरकार ने बीच का रास्ता निकालते हुए उद्योगों को प्रदूषण नियंत्रण संयंत्र लगाना अनिवार्य कर दिया। उद्योगों के मालिकों ने साठगांठ कर कम कीमत के नकली-दिखावटी संयंत्र लगाना प्रारंभ कर दिया और दिल्ली सरकार के अधिकारी रिश्वत लेकर नकली संयंत्रों को प्रमाणपत्र देते रहे कि उद्योग प्रदूषण मुक्त है। भ्रष्टाचार का यह सिलसिला आज भी जारी है। जिस देश के ऐसे हालात हों वहां प्रदूषण रोकने की कोई भी मुहिम कैसे सफल हो सकती है?

दूसरी ओर पेरिस के जलवायु सम्मेलन से आते ही चीन ने बीजिंग का बढ़ता प्रदूषण रोकने के लिए कुछ दिनों के लिए सभी तरह के नए निर्माण कार्यों पर प्रतिबंध लगाने का ऐलान कर दिया और वाहनों को भी दिल्ली सरकार के निर्णय की तरह एक-एक दिन चलाने का आदेश जारी कर दिया। चीन में इस निर्णय का कोई विरोध नहीं है। प्रदूषण नियंत्रण के लिए चीन के आदेशों का पालन जनता खुशी-खुशी करती है पर हमारे देश में राजनीतिक विरोध शुरू हो जाता है। कब हमारे देश के राजनेता और राजनीतिक दल अपने क्षुद्र स्वार्थ और वोट बैंक से ऊपर उठ कर दिल्ली और देशहित में बोलेंगे? (हरीशकुमार सिंह, ऋषि नगर, उज्जैन)

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हेरल्ड पर हंगामा
नेशनल हेरल्ड के मुद्दे पर संसद में तीन दिनों से हंगामा मचा कर जीएसटी जैसे जनहित से जुड़े और अत्यंत महत्त्वपूर्ण विधेयक की अनदेखी कर रहे राहुल गांधी हकीकत में कांग्रेस को पूरे देश में बदनाम कर रहे हैं। ऐसा करके वे कांग्रेस के लिए काफी गहरा गड््ढा खोद रहे हैं। राहुल गांधी बड़ी आसानी से भूल जाना चाहते हैं कि यह न्यायिक कार्यवाही से जुड़ा प्रश्न है। मामला न्यायालय में है और नेशनल हेरल्ड पूरी तरह से उनका निजी मामला है और इस देश का निष्पक्ष कानून राजा और रंक, सभी को समान नजर से देखता है और हमेशा इंसाफ ही करता है। (हंसराज भट, मुंबई)

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सत्ता के सगे
हर सत्तारूढ़ दल अपने शासनकाल के दौरान चहेतों का एक अच्छा-खासा समुदाय तैयार करता है जिसमें समाज से लिए गए हर तरह के लोग शामिल होते हैं। खास तौर पर मीडिया और कला-जगत से लेकर सामाजिक और औद्योगिक जगत से जुड़े प्रतिष्ठित लोग। निष्ठाओं की एवज में इन्हें प्रसाद भी मिलता है ताकि समय/ कुसमय ये लोग एक-दूसरे के हितों की रक्षा कर सकें। घाटे में वे रहते हैं जो किसी भी तरफ नहीं होते और केवल अपने काम से काम रखते है। मगर विडंबना देखिए, काम से काम रखने वालों की तुलना में काम में दखलंदाजी करने वाले आकर्षण का केंद्र ज्यादा बनते हैं। (शिबन कृष्ण रैणा, अलवर)

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बेलगाम बाबा
इक्कीसवीं सदी का ढिंढोरा पीटने वाले हम जीवन को चांद और मंगल पर तो तलाश कर रहे हैं लेकिन मानसिक स्तर पर अभी सोलहवीं सदी भी पार नहीं कर पाए हैं। भारत तरह-तरह के ‘बाबाओं’ की जन्म और कर्मस्थली रहा है जहां वे भली भांति फलते-फूलते रहे हैं क्योंकि हमारी मानसिकता उन्हें पूरा मौका मुहैया कराती रही है। दिल्ली जैसे महानगर में जहां लोग कड़ाके की ठंड और जानलेवा गर्मी फुटपाथों पर गुजार देते हैं वहां इन अमुक बाबाओं के ‘भवन’ और ‘सदन’ इंद्र के ऐश्वर्य और वैभव को मात देते हुए लगते हैं। ‘समागम’ जैसे त्रिदिवसीय कार्यक्रमों के दौरान तो सड़कों पर दौड़ता जीवन मानो रेंगने लगता है।

सरकार की खाली पड़ी जमीन इन कार्यक्रमों को संपन्न कराने में अपना महत्त्वपूर्ण योग देती है और शायद एक समय पर यह उन्हीं की संपत्ति का हिस्सा भी बन जाती है। यही वजह है कि जब मंदिर, मस्जिद अथवा ट्रस्ट से जुड़ा कोई ‘बाबा’ परलोक गमन करता है तो करोड़ों की संपत्ति उत्तराधिकारियों के लिए ‘संघर्ष-क्षेत्र’ भी मुहैया करा देती है। इन स्थितियों से निपटने के क्या कोई उपाय हैं? हमारे अंतस में स्थिर अंधविश्वास जिस दिन अस्थिर हो उठेगा उस दिन शायद कोई कानून भी तैयार हो जाएगा जिससे इन बाबाओं पर नकेल कसी जा सके। (अनीता यादव, दिल्ली विश्वविद्यालय)

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संवेदनहीन बयान
कोलकाता के चर्चित पार्क स्ट्रिट बलात्कार मामले पर अपने फैसले में कलकत्ता उच्च न्यायालय ने सभी अभियुक्तों को दोषी करार दिया है। मुझे याद है, मुख्यमंत्रीजी ने उस समय कहा था कि ये सब बनावटी केस है; विरोधी दलों की चाल और सरकार को बदनाम करने की साजिश है। उन्होंने तो पीड़िता के चरित्र तक पर सवाल खड़े कर दिए थे। उनका यह अशोभन व्यवहार हम सबने देखा था। हमारे राजनेताओं के ऐसे बयान अक्सर आते रहते हैं और उनकी असंवेदनशीलता को उजागर करते रहते हैं। ममता दीदी की तो यह आदत रही है कि उनकी सरकार से सवाल करने वालों को एकदम विपक्ष का एजेंट या माओवादी बता दो! शायद हाइकोर्ट के निर्णय के बाद उन्हें थोड़ी झेंप हो। वैसे उम्मीद कम ही है। (अरुण कुमार प्रसाद, आंबेडकर कॉलेज, दिल्ली)