शिक्षा और स्वास्थ्य किसी भी समाज के विकास को मापने का पैमाना होता है। इस लिहाज से देखें तो हमारा राष्ट्रीय औसत परिदृश्य संतोषजनक नहीं है। प्रांतीय स्तर पर विषमता की गहरी खाई है। मातृ मृत्यु-दर, शिशु मृत्यु-दर आदि क्षेत्रों में जहां स्थिति आज भी चिंताजनक है, वहीं कुपोषण, रक्ताल्पता आदि की गंभीर चुनौतिया हैं। शिक्षा की बात तो दूर, अभी तक तो हम सबको साक्षर भी नहीं बना पाए हैं। अधिकतर राज्यों ने आज भी अपनी शिक्षा और स्वास्थ्य नीति नहीं बनाई है। केंद्र की नीतियां और कार्यक्रम राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में निर्धारित होते हैं, लेकिन हरेक राज्य की अपनी अलग-अलग परिस्थितियां और आवश्यकताएं होती हैं। लोक-कल्याण के एजेंडे के सिमटने के बाद तो ऐसा लगने लगा है कि शिक्षा और स्वास्थ्य के प्रति राज्य की कोई जिम्मेदारी ही नहीं है। समाज की बुनियादी जरूरत के इन क्षेत्रों को बाजार के हवाले करने की प्रवृत्तियों ने मुनाफे की हवस को इतना बढ़ा दिया है कि इन क्षेत्रों के लिए भी शिक्षा या स्वास्थ्य ‘माफिया’ जैसी शब्दावली का प्रयोग हो रहा है।
शिक्षा और स्वास्थ्य के व्यवसायीकरण ने बहुपरतीय प्रणाली स्थापित कर ली है, यानी जिस स्तर की भुगतान क्षमता उस स्तर की शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध है। यह एक ओर विषमता को तो दूसरी ओर हीनताबोध को बढ़ावा दे रही है। निम्न और सीमांत वर्ग के लिए तो बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य दु:स्वप्न बन गए है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में चिकित्सकों, पैथोलॉजी, प्रयोगशालाओं, बीमा कंपनियों, दवा कंपनियों और व्यवसायियों की सांठगांठ और मिलीभगत के किस्से रोज सुनाई देते हैं तो शिक्षा के क्षेत्र में स्कूलों की फीस, पाठ्यपुस्तकों और यूनिफार्म आदि की खरीदी और ट्यूशन और कोचिंग संस्थानों की लूट से आमजन त्रस्त है।
सरकारी स्कूलों और अस्पतालों की स्थिति ऐसी बना दी गई है कि कोई उनका उपयोग नहीं करना चाहता और आर्थिक तंगहाली और मजबूरी में जो वहां जाते भी हैं, उन्हें गुणवत्ता से समझौता करना पड़ता है। युक्तिकरण के नाम पर सरकारी स्कूलों और मिलेनियम गोल प्राप्त न करने की आड़ में गरीबों के लिए उपलब्ध थोड़ी-सी सुविधाएं भी छीन कर निजी क्षेत्र को सौंपने की तैयारी की जा रही है। ऐसे में इंदौर जिला रेडक्रॉस समिति ने रियायती दर पर दवाइयां उपलब्ध कराने की सराहनीय पहल की है। इस कीमत पर उपलब्ध दवाइयां देख कर बाजार में इस क्षेत्र की लूट का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है।
सुरेश उपाध्याय, गीता नगर, इंदौर