विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में अगर दागी जनप्रतिनिधि प्रवेश करेंगे, तो लोकतंत्र किसी भी कीमत पर सुरक्षित नहीं रह सकता। सवाल है कि लोकसभा, राज्यसभा और विधानसभा में कोई भी राजनीतिक ऐसा नहीं है, जो दागियों को टिकट नहीं देता। सभी राजनीतिक दलों के इर्द-गिर्द दागी जनप्रतिनिधि घूमते हैं और उन पर इस प्रकार के संगीन अपराध होते हैं। उन पर हत्या, जबरन वसूली, सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने, दंगा-फसाद कराने और इस प्रकार की गहरी आपराधिक धाराओं के तहत मुकदमे विभिन्न थानों में और अदालतों में चलते रहते हैं। अधिकतर राजनीतिक दल इन दागियों को इसलिए टिकट देते हैं कि दागी सफेद पोशाक में लिपट कर समाज में अपनी वजह से विजय दिला देते हैं। वे धन बल की बदौलत आसानी से चुनाव जीत जाते हैं।
समय-समय पर उच्चतम न्यायालय केंद्र और राज्य सरकारों को कड़ी फटकार लगा चुका है। निर्वाचन आयोग को दागी जनप्रतिनिधियों के चुनाव लड़ने के विषय में विस्तृत रूप से निर्देश दे चुका है। यहां तक कह चुका है कि दागी प्रतिनिधियों के लिए राजनीतिक दलों से पूछा जाए कि आखिर क्यों ऐसे लोगों को टिकट दिए। फिर भी दागी जनप्रतिनिधि बड़ी मात्रा में चुनाव के मैदान में आ जाते हैं। वे चुनाव भी जीत जाते हैं। शायद राजनीतिक दल दागियों को टिकट देकर यह संकेत देते हैं कि उनको अपना बहुमत चाहिए सरकार बनाने के लिए।
अगर आगामी पांच विधानसभा चुनावों पर नजर डालें तो कोई भी राजनीतिक दल ऐसा नहीं है, जिसने दागियों को टिकट नहीं दिया। ऐसा कानून बनना चाहिए कि कोई भी व्यक्ति अगर दागी है और उसका जिला अदालत में मुकदमा चल रहा है, तो उस पर कुछ समय के लिए विराम लगा देना चाहिए। इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि अगर दागी जनप्रतिनिधि विधानसभा और संसद में प्रवेश करेंगे तो लोकतंत्र किसी कीमत पर सुरक्षित नहीं रह सकता
- विजय कुमार धानिया, नई दिल्ली</li>
खेल में पारदर्शिता
आज क्रिकेट केवल एक खेल नहीं, करिअर के रूप में उभर चुका है। इसी के चकाचौंध में लड़के-लड़कियां लगातार इस खेल में अपनी प्रतिभा का जौहर दिखा रहे हैं। ऐसे में खास बात यह है कि आज गांवों के लड़कों में कोई प्रतिभा की कमी नहीं है, उनमें प्रतिभा कूट-कूट कर भरी हुई है। बशर्ते उनकी प्रतिभा निखारने की जरूरत है। चिंता का विषय यह है कि गांवों के बच्चों की प्रतिभा कहीं न कहीं दबी रह जा रही है, इसका मुख्य कारण ग्रामीण क्षेत्रों में न कोई ढंग का स्टेडियम है, न खेल का कोई आधुनिक साधन है और न ही कोई कोच है। प्रधानमंत्री ने खेलो इंडिया की शुरुआत जरूर किया है, लेकिन इसकी पहुंच ग्रामीण अंचलों तक नहीं है।
पिछले दिनों एक खबर आई थी कि उत्तर प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन के अंडर-14, अंडर-16, अंडर-19 और अंडर-23 के ट्रायल में धांधली, जिसके कई कारण बताए गए। इसमें राजनीति के साथ पैसे की लेनदेन के मामले सामने बताए गए हैं। इस तरह बच्चों की प्रतिभा और पहचान दबी रह जाती है। हर साल खेल के क्षेत्र में करोड़ों रुपए आते हैं, फिर खेल का वर्तमान परिदृश्य अच्छा नहीं है। खेल में आए दिन भ्रष्टाचार के मामले सामने आ रहे हैं। सरकार को अब इस पर ध्यान देने की जरूरत है। खेल के क्षेत्र में पूर्ण रूप से पारदर्शिता लाने की जरूरत है, तभी आज हर बच्चा अपनी प्रतिभा की पहचान बड़े स्तर तक दिखा सकते हैं।
- राहुल उपाध्याय, बलिया, उत्तर प्रदेश
