दिनोंदिन कोरोना मरीजों की संख्या में अप्रत्याशित रूप से वृद्धि होती जा रही है। लोग मानसिक रूप से इतना भयभीत होते जा रहे हैं कि साधारण दिनों वाले सर्दी, खांसी, बुखार या छींक भी हो जाए तो कोरोना के डर से मन सशंकित हो जाता है। कोरोना से ग्रसित मरीज और बढ़ती मौतों ने इंसान को हिला कर रख दिया है।
कोरोना के बाद के सामाजिक व्यवहार ने भी सामान्य लोगों को दहशत डाल दिया है। मानसिक तौर पर स्थिति यह है कि लोगों की चिंता बढ़ती जा रही है कि न जाने किस समय कौन-सी दुखद खबरें सुनने को मिल जाए। ऐसे समय में मानसिक तौर पर सुरक्षित और दृढ़ता के साथ खड़ा रहना भी चुनौती पूर्ण कार्य हो गया है।
निराशावादी दृष्टिकोण ऐसे ही इम्यून सिस्टम यानी रोग प्रतिरोधक क्षमता को आधा कर देता है। एक साल पहले कोरोना को देशवासियों ने मिलजुल कर, सरकार के निर्देशों का पालन कर के हरा दिया था। आज हर स्तर पर कोरोना के खिलाफ युद्ध लड़ने में सहभागिता निभाने की आवश्यकता प्रतीत होती है।
सरकारी स्तर की यह भरोसा बहुत प्रभावी काम करती है कि बीमारी होने पर समुचित इलाज हो जाएगा। लेकिन जब कम बिस्तर और आॅक्सीजन के अभाव मरीज सुनता है तो धड़कन ऐसे ही तेज हो जाती है। साथ ही हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि देश में इतने संसाधन हैं कि समुचित उपयोग हो तो कोई कारण नहीं कि एक भी व्यक्ति मरेगा। विशेषकर इस बात के मद्देनजर कि दुनिया में बहुत से देशों ने कोरोना पर नियंत्रण पा लिया है।
नागरिक, कर्मचारी, अधिकारी, जनप्रतिनिधि सबको मानव अस्तित्व बचाने के लिए अपना दायित्व निभाने का समय आ गया है। वैज्ञानिक जगत भी अब तक इतना विकास तो जरूर कर चुका है कि विषाणु की दुनिया बहुत छोटी पड़ जाएगी। कोरोना विषाणु चाहे जितना रूप बदल ले और जिस रूप में आए मानव पर कदापि भारी नहीं पड़ सकता। इस बात को समझने की जरूरत सबसे पहले है। दायित्व निर्वहन का कार्य हर स्तर पर होना चाहिए।
केवल केंद्र सरकार या राज्य सरकार को जिम्मेदार ठहरा कर अपने दायित्वों की इतिश्री करना उचित नहीं है। स्थानीय स्वशासन को भी इसके लिए जिम्मेदार बनाया जाए। वैज्ञानिकों ने असीम मेहनत करके टीके का ईजाद में सफलता पा ली है। आशावादी दृष्टिकोण रखते हुए आज की तारीख में लोगों को परहेज से रहने की जरूरत है। इतिहास में अनवरत संघर्ष कर मानव ने समस्याओं पर विजय पाया है। ये अंधेरी रात भी कट जाएगी, इस बात को लेकर जीना पड़ेगा। मुसीबत है इससे घबराना नहीं है, संघर्ष कर विजय पाना है।
’मिथिलेश कुमार, भागलपुर, बिहार
कौन जिम्मेदार
भारत के पांच राज्यों में धीरे-धीरे चुनाव संपन्न होने को आ गया है और इसमें केवल पश्चिम बंगाल में एक चरण का चुनाव अभी बाकी है। सवाल यह है कि जिस प्रकार से राजनीतिक दलों ने चुनाव के दौरान रैलियां की थीं और उससे कोरोना महामारी के संक्रमण का फल आया है, उसकी जिम्मेदारी कौन लेगा! उसके लिए निर्वाचन आयोग को मद्रास उच्च न्यायालय ने दोषी ठहराया है। लेकिन राजनीतिक दलों ने जिस प्रकार से राजनीति की भूख और सत्ता के सिंहासन को पाने के लिए लगातार लापरवाहियां कीं और उन पर निर्वाचन आयोग ने किसी भी प्रकार से सख्त कार्रवाई नहीं की, वह ज्यादा गंभीर है।
शायद यही वजह है कि निर्वाचन आयोग पर टिप्पणी करते हुए मद्रास उच्च न्यायालय ने यहां तक कह दिया कि दो मई को होने वाला मतदान भी रोक दिया जाए। अगर चुनाव कुछ समय पश्चात हो जाते और इस तरह से इस महामारी को रोकने के लिए व्यापक रूप से प्रबंध किए जाते तो शायद कोरोना को इस प्रकार बेलगाम तरीके से फैलने से रोका जा सकता था।
लेकिन न राजनीतिक दलों को अपनी गतिविधियों पर लगाम लगाना जरूरी लगा, न निर्वाचन आयोग ने वास्तविकता पर गौर करने की जरूरत समझी। इस अनदेखी का परिणाम आ सामने आ रहा है। मद्रास उच्च न्यायालय को यहां तक कहना पड़ गया कि निर्वाचन आयोग के खिलाफ हत्या का मुकदमा भी चलना चाहिए। इस समय कोरोना महामारी के कारण विभिन्न राज्यों में आम लोग जिस प्रकार से विभिन्न तरह की परेशानियों को झेल रहे हैं, उसकी त्रासदी को सिर्फ लाचारी से देखा और अनुभूत किया जा सकता है। जनता अपने अधिकार खो रही है और अपनी जान गंवा रही है तो यह त्रासदी किसकी देन है?
’विजय कुमार धनिया, नई दिल्ली</p>