‘बदल रही है बरसात की चाल’ (लेख, 17 अक्तूबर) लेख में वाजिब विश्लेषण किया गया है। कहीं लोग बरसात के एक बूंद के लिए तरसते रहे तो कहीं मूसलाधार बारिश की वजह से दैनिक जीवन में भयानक मुश्किलें उठाने के लिए बेहद मजबूर हैं। इसे प्रकृति का असंतुलन कहें या फिर मनुष्य द्वारा किए गए कार्यों का फल, कहना मुश्किल है। इसके कारण हर साल किसान दो बूंद पानी के लिए तरस जाते हैं तो दूसरी तरफ बाढ़ का कहर लोगों के सब्र का प्रतीक्षा भी समय-समय पर लेती रहती है। बारिश की बूंदें अब किसी काम के नहीं रहीं। एक तरफ सूखा पड़े होने के कारण किसान दो अनाज उगाने के लिए भी असमर्थ है, तो दूसरी तरफ बूंदें बाढ़ का विकराल रूप लेकर सिर्फ आम लोगों के लिए मुसीबत ही उत्पन्न करता है। हमें सिर्फ मनसून पर ही निर्भर नहीं होना चाहिए, बल्कि सरकार भी इसके निवारण के लिए एक ऐसी व्यवस्था बनाए। ताकि सूखे पड़े इलाकों में पानी का सिंचाई आसानी से किसान कर सकें।
- समराज चौहान, कार्बी, असम</strong>