वास्तव में अमीर होने के लिए उदार होना चाहिए। केंद्रित और अनुशासित या जिम्मेदार या ईमानदार होने के लिए एक विस्तृत समर्थन प्रणाली की आवश्यकता नहीं है। आप अपनी पृष्ठभूमि या वर्तमान स्थिति की परवाह किए बिना उन समृद्ध मूल्यों और कई अन्य लोगों को चुन सकते हैं। दरअसल, समृद्धि, संपन्न और वास्तविक उत्कृष्टता सभी एक ही के बहुत अधिक करने के लिए नेतृत्व करते हैं, जो मुख्य रूप से जीवन को अच्छा बनाता है। जिन उद्देश्यों और मूल्यों के साथ कोई जीना चुनता है, वह उसके जीवन के तरीके के मुख्य चालक हैं।

आर्थिक, राजनीतिक, पर्यावरणीय, सांस्कृतिक परिस्थितियां- सभी का लोगों के जीवन के अनुभव पर प्रभाव पड़ता है। फिर भी उन चीजों की तुलना में अधिक परिणामी इरादे और विकल्प हैं, दिन-प्रतिदिन, साल-दर-साल। चुनते रहना चाहिए कि क्या सच है, क्या अच्छा है, स्थायी मूल्य क्या है, पल से परे क्या अर्थ है। अपने और अपनी दुनिया के लिए नई और प्रामाणिक अच्छाई बनाते रहना चाहिए।

इस क्षण में कोई काम करने और सार्थक प्रगति के लिए चुनना चाहिए। इसमें थोड़ा समय, प्रयास और दृढ़ता की जरूरत होगी, लेकिन बदले में आप कुछ स्थायी मूल्य अर्जित होंगे। यह चुनौती देगा, कभी-कभी निराश करेगा और थोड़ा असहज भी कर देगा। फिर भी यह अच्छी तरह से किए गए काम की संतुष्टि भी लाएगा। अपना रास्ता चुनना सबसे आसान विकल्प नहीं है, फिर भी यह आखिर सबसे मूल्यवान साबित होता है।
चंदन कुमार नाथ, गुवाहाटी, असम</p>

भ्रष्टाचार का रोग

भारत में भ्रष्टाचार ने पूरी तरह से अपने पैर फैलाया हुआ है। कामकाज का कोई भी क्षेत्र इस बीमारी से मुक्त नहीं रह पाया है। जितने प्रकार के भ्रष्टाचार हमारे देश में हुए हैं उनकी मिसाल दुनिया के अन्य देशों में नहीं मिलती है। भारत के सरकारी विभागों में फैले भ्रष्टाचार के लिए आम जनता भी दोषी है, यह कहा जा सकता है। सरकारी विभागों मे अटके अपने कामों को जल्दी से निपटाने के चक्कर में लोग भी लेन-देन का काम जारी रखे रहते हैं।

हालांकि वैसे सरकारी कर्मचारी भी आम हैं, जो बिना रिश्वत लिए काम करने में लापरवाही बरतते हैं। हालांकि पिछले कुछ समय से ईडी द्वारा की जाने वाली कार्रवाइयों में निजी और सरकारी अधिकारियों के यहां से मिलने वाली करोड़ों की नकद राशि देख-सुन कर लोगों की आंखें फटी रह जा रही हैं। जिस प्रकार ऊपरी कमाई के पैसों से भ्रष्टाचारी शानो-शौकत की जिंदगी जी रहे होते हैं, वह सबके लिए विस्मयकारी होती है।

भ्रष्टाचार बढ़ाने में दोनों ही दोषी होते हैं। यों भ्रष्टाचार के विरुद्ध कानूनों की कमी नहीं है, मगर शायद ही कोई भ्रष्टाचारी इन कानूनों की परवाह करता है। लोग जल्दबाजी की प्रवृत्ति को त्याग कर अगर व्यवस्था में रहकर कार्य करवाने की पहल करें और किसी भी सरकारी कार्य के लिए पैसा देना बंद कर दें, तो उन स्थितियों में भी भ्रष्टाचार को देश से खत्म किया जा सकता है। यह जनता को ही सिद्ध करना होगा कि बिना भ्रष्टाचार के भी वह अपने कार्य करवाने के लिए धैर्य रखती है। लेकिन अगर सरकार ने कर्मचारियों पर नकेल नहीं कसी तो भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी अलग-अलग रूप में कायम रहेगी और इन पर लगाम लगा पाना चुनौती बना रहेगा।
नरेश कानूनगो, देवास, मप्र