मोदी सरकार को दो वर्ष पूरे हो गए हैं। इस उपलक्ष्य में केंद्र सरकार ने प्रत्येक अखबार के प्रथम पृष्ठ पर शानदार विज्ञापन दिया था और सरकार (मोदी) के गुणगान के लिए पूरे देश में प्रचार किया जा रहा है। इंडिया गेट पर भव्य फिल्मी आयोजन के लिए करोड़ों रुपए का पांडाल सजाया गया। पूरे देश में महिमामंडन के लिए तैंतीस टीमें बनाई गई हैं और दो सौ शहरों में कई कार्यक्रम होंगे जिनके चलते पंद्रह जून तक सभी केंद्रीय मंत्री प्रचार की मुद्रा में रहने वाले हैं।
जब दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने विज्ञापनों के जरिए अपने कार्यों का प्रचार किया तो भाजपा का तर्क था कि अगर सच में केजरीवाल ने आम आदमी के हित में कार्य किए हैं तो उसे प्रचार की आवश्यकता ही क्या है, जनता खुद कहेगी कि काम हुआ है! लेकिन अब यह तर्क कहां गया? अगर काम ही हुआ है तो प्रचार की जरूरत क्या है? कहीं ऐसा तो नहीं कि भारत माता की जय की तरह यह प्रचार भी अपनी नाकामियों को छुपाने का एक जरिया है?
गुड़गांव जैसे शहरों का जो गुड़ गोबर किया है असल में तो वही काम काज का सही लेखा जोखा है। मोदी विकास के एजेंडे के साथ आए थे और आते ही आरएसएस के एजेंडे के विकास में लग गए हैं। हमारी सरकार भ्रष्टाचार से लगातार लड़ रही है, यह अलग बात है कि इस धर्मयुद्ध में लोकपाल की कोई आवश्यकता नही है क्योंकि लोकपाल नियुक्त हो गया तो नूराकुश्ती बंद हो जाएगी! सीबीआई सबसे मस्त है जो खिलाफ बोले उस पर ही छापा मरवा दो!
पिछले दिनों तमाम समाचार पत्रों के प्रथम पृष्ठ पर छपा विज्ञापन बड़ा मजेदार रहा। उसमें पृष्ठ के केवल बीस फीसद हिस्से में अपने काम का बखान है और बाकी अस्सी फीसद हिस्से में मोदीजी हल्की-सी मुस्कान लिए खड़े हैं। आप लोगों को अपना काम बता रहे हैं या मोदीजी के दर्शन करा रहे हैं? भाई, जब काम ही न हो बताने को तो मुस्करा कर खुद खड़े हो जाओ, क्या जाता है? कोई हिसाब मांगेगा तो भारत माता की जय है ही!
चार सौ करोड़ की गैस सब्सिडी छुड़वाने के लिए तीन सौ करोड़ के विज्ञापन देकर गरीब की रसोई में गैस पहुंचाने का दावा करने वाली सरकार को यह भी बताना चाहिए कि उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनावों के लिए जमीन तैयार करने के लिए जो पूरे देश में प्रचार किया जा रहा है उसमें जनता का कितना पैसा खर्च हुआ?
’सूरज कुमार बैरवा, सीतापुरा, जयपुर</p>

