झांसी की रानी लक्ष्मीबाई और भगत सिंह जैसी आधुनिक इतिहास की दो महान विभूतियों ने मातृभूमि के मान की रक्षा के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया। दोनों वीरगति को प्राप्त हुए। ध्यान देने की बात है कि उस समय दोनों की ही आयु पच्चीस वर्ष से कम थी। अपनी लड़ाइयों में अगर वे जीत जाते तो उतनी ही कम आयु में अपने क्षेत्र के सर्वोच्च नेता हुए होते। ऐसे तमाम उदाहरण हैं जब लोगों ने बेहद कम उम्र में शासन चलाने लायक बौद्धिक और रणनीतिक कौशल हासिल कर लिया था। इन उदाहरणों को देखते हुए भी न जाने क्यों हमारे संविधान में ऐसी व्यवस्था की गई जिससे 25 वर्ष से कम आयु के व्यक्ति का देश की संसद और राज्यों की विधानसभाओं में प्रवेश प्रतिबंधित हो गया।

आधी से अधिक आबादी के इस ‘युवा देश’ को आज इन प्रावधानों को बदल देने की जरूरत है। अठारह वर्ष की आयु में जब हम निर्वाचित करने का अधिकार प्राप्त करते हैं उसी समय हमें निर्वाचित होने का भी हक होना चाहिए। राजनीति में युवाओं की भागीदारी बढ़ाने की बात करते हुए हमें इस प्रावधान के साथ-साथ चुनाव सुधारों पर भी ठोस पहल करनी होगी। चुनाव सरकारी खर्च पर हों और सभी उम्मीदवारों को सरकार बराबर आर्थिक मदद दे। इसके बिना हर बात लफ्फाजी के सिवाय कुछ नहीं है।
’अंकित दूबे, जनेवि, नई दिल्ली</p>