भारत विश्व का सर्वाधिक युवा आबादी वाला देश है लेकिन यह कथन गौरवान्वित करने के साथ ही तस्वीर के स्याह पहलू की ओर भी हमारा ध्यान आकर्षित करता है। युवाओं की बढ़ती संख्या का दंभ हम भले ही भरते हों पर इन आंकड़ों की कड़वी सच्चाई यह भी है कि प्रतिदिन बढ़ती बेरोजगारी के कारण सबसे अधिक आत्महत्याओं का कलंक भी हमारे देश के माथे पर लगा हुआ है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के ताजा आंकड़ों के मुताबिक प्रतिदिन 26 युवा खुद को काल के गाल में झोंक रहे हैं और इस संताप की स्थिति का जन्म छात्र बेरोजगारी की गंभीर समस्या के कारण हुआ है।

गौरतलब है कि जिन युवाओं के दम पर हम भविष्य की मजबूत इमारत की आस लगाए बैठे हैं उसकी नींव की हालत निराशाजनक है और हमारी नीतियों के खोखलेपन को राष्ट्रीय पटल पर प्रदर्शित कर रही है। यह देश का एक ऐसा सच है जिससे राजनीतिकों, नीति-नियंताओं तथा खुद को मुल्क का रहनुमा समझने वाले लोगों ने आंखें मूंद ली हैं। इक्कीसवीं सदी की बात करें तो 1,54,751 बेरोजगार अब तक खुदकुशी कर चुके हैं। इस तरह युवाओं का बेदम होना किसी राष्ट्र के बेदम होने का संकेत ही है। बेरोजगारी की समस्या वर्ष दर वर्ष और गंभीर होती जा रही है तो क्या मान लिया जाए की भारत बढ़ती खुदकुशियों के एक नए कीर्तिमान की ओर अग्रसर हो रहा है?

एक अनुमान के मुताबिक भारत में प्रतिदिन 400 नए रोजगारों का सृजन किया जाता है। यह हमारी बेलगाम रफ्तार से बढ़ती आबादी के लिहाज से ऊंट के मुंह में जीरा ही कहा जा सकता है। इसके मद्देनजर हमारी योजनाओं की प्राथमिकताओं में बेरोजगारी उन्मूलन को शामिल कर ठोस कदम उठाए जाएं ताकि भविष्य की इमारत को मजबूत नींव प्रदान की जा सके।
’विकास कुमार, आईआईएमसी, नई दिल्ली</p>