चार साल पहले यानी आठ नवंबर, 2016 को प्रधानमंत्री ने देश में नोटबंदी का एलान करते हुए पांच सौ और एक हजार रुपए के नोटों की वैधता को खत्म कर दिया था। नोटबंदी के इस फैसले भारत की अर्थव्यवस्था को लंबे समय के लिए बीमार कर दिया। आज भी गरीब लोग सरकार के इस अपरिपक्व फैसले की मार झेलने को मजबूर हैं। नोटबंदी के वक्त सरकार ने पुराने नोटों की जगह नए नोट जारी करने के लिए भी कोई अग्रिम तैयारी नहीं की गई थी। हैरानी की बात तो यह कि इतने बड़े फैसले के लिए रिजर्व बैंक तक को अंधेरे में रखा गया।

नोटबंदी को चार साल पूरे हो चुके हैं। और इन चार सालों में अर्थव्यवस्था गहरे संकट में फंस गई है। नोटबंदी के कारण असंगठित क्षेत्र तो पूरी तरह से तबाह हो चुका है। सवाल तो यह है कि कालेधन के नाम पर इतनी बडी कुरबानी देने के बाद आखिर देश को क्या हासिल हुआ। नोटबंदी के पक्ष में तब जो तर्क दिए गए थे और जो वादे किए थे, क्या वे पूरे हुए? क्या आतंकवाद मिट गया? क्या नकली नोटों का व्यापार बंद हो गया? क्या काला धन सामने आ गया?

सरकार ने काला धन समाप्त करने के नाम पर नोटबंदी के जरिए उन सभी लोगों को गर्त में धकेल दिया जिनके पास नगदी थी और इनमें अधिकांश लोगों के पास वास्तव में कालाधन निकला ही नहीं। दूसरी ओर, सरकार जानबूझ कर उन लोगों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर रही जो गले तक काली कमाई पैदा करने में लिप्त हैं और जिनके पास काली संपत्ति का अकूत भंडार है।
’साजिद महमूद शेख, मीरा रोड, (ठाणे)

अहंकार की पराकाष्ठा
ठीक ही कहा गया है कि अत्यधिक बहुमत मिलने से कोई भी पार्टी और उसके नेता का निरंकुश होना लाजिमी है। मगर भाजपा को कुछ ज्यादा ही गुरुर हो गया है। वरना उसके झारखंड प्रदेश अध्यक्ष ये कैसे कह सकते हैं कि ‘तीन महीने के भीतर प्रदेश की सरकार गिर जाएगी’ ? इस बयान पर तो संबंधित विभाग को स्वत: संज्ञान लेकर जांच प्रारंभ कर देना चाहिए कि क्या विधायकों की खरीद-फरोख्त को विधिवत रूप भाजपा ने दे दिया है? उसके बाद भाजपा के एक सांसद का बयान आया, जो कहते देखे और सुने गए कि ‘हमसे जो लड़ा है अकाल मृत्यु मरा है’ .इसका क्या अर्थ हुआ? क्या भाजपा के खिलाफ बोलना, लिखना और चुनाव लड़ना अपने जान को जोखिम में डालना है?
’जंग बहादुर सिंह, गोलपहाड़ी (जमशेदपुर)