‘सुविधा की भर्ती’ (संपादकीय, 21 अगस्त) पढ़ा। यह वक्त की मांग भी थी और जरूरत भी कि केंद्र सरकार की विभिन्न नौकरियों की भर्ती के लिए अलग-अलग परीक्षाओं के सिलसिले को खत्म किया जाए। केंद्रीय कैबिनेट ने राष्ट्रीय भर्ती एजेंसी के गठन को मंजूरी देकर केवल करोड़ों युवाओं को बड़ी राहत ही नहीं दी है, बल्कि संसाधनों की बर्बादी को रोकने का भी काम किया है।

इसका कोई मतलब नहीं था कि बैंकों, रेलवे और अन्य सरकारी विभागों के लिए विद्यार्थी अलग-अलग परीक्षाएं दें। इस क्रम में करीब बीस भर्ती एजेंसियां अलग-अलग प्रतियोगी परीक्षाओं का आयोजन करती थीं। इसके चलते विद्यार्थियों को हर परीक्षा के लिए अलग से तैयारी ही नहीं करनी पड़ती थी, बल्कि उन सबके लिए बार-बार फीस भी भरनी पड़ती थी। यही नहीं, उन्हें अलग-अलग परीक्षाओं में शामिल होने के लिए इस या उस शहर की दौड़ भी लगानी पड़ती थी। इसी के साथ उन्हें इसकी भी चिंता करनी पड़ती थी कि कब कौन-सी परीक्षा के लिए आवेदन मांगे गए हैं।

इस सबसे मुक्ति सरकारी नौकरियों की तलाश करने वाले करोड़ों युवाओं के लिए एक बड़ी राहत है। यह व्यवस्था इस तरह बनाई जानी चाहिए जिससे वह पारदर्शी होने के साथ भरोसेमंद भी बने। राष्ट्रीय भर्ती एजेंसी के जरिए होने वाली साझा पात्रता परीक्षा इस तरह होनी चाहिए, जिससे उसकी विश्वसनीयता को लेकर कहीं कोई सवाल न उठने पाए, क्योंकि हाल के समय में कुछ प्रतियोगी परीक्षाओं की विश्वसनीयता पर सवालिया निशान लगे हैं। किसी भी नई नीति नई सोच के साथ ये बहुत आवश्यक है कि उसमें पारदर्शिता अवश्य हो जिससे उसकी विश्वसनीयता पर कोई भी संदेह न रहे। फिर रोजगार की उपलब्धता को बढ़ाना भी सरकार की जिम्मेदारी है, वरना सारा प्रयास बेमानी होकर रह जाएगा।
’काव्यांशी मिश्रा, मैनपुरी

पुराना राग
पाकिस्तान में दाऊद इब्राहिम के होने के अपने कबूलनामे के एक ही दिन बाद पाकिस्तान अपनी बात से मुकर गया। दरअसल, चीन के असर में बात-बात में में पलटना धूर्त पाकिस्तान की फितरत है, जो हम पिछले लंबे समय से देख रहे हैं। हम न तो धूर्त चीन से, न पाकिस्तान से कोई उम्मीद कर सकते हैं कि वे कभी पटरी पर आएंगे! फिर भी वैश्विक भूमिका को देखते हुए हमें अपनी गरिमा बनाए रखनी चाहिए।
’हेमा हरि उपाध्याय, उज्जैन, मप्र