महामारी के चलते सिर्फ भारत को ही नहीं, बल्कि संपूर्ण विश्व को काफी संकटों का सामना करना पड़ रहा है। पिछले लगभग एक साल से हर देश की अर्थव्यवस्था बेहद ही कठिन दौर से गुजर रही है। भारत में जैसे-जैसे कोरोना महामारी की दूसरी लहर नियंत्रित होती जा रही है, वैसे-वैसे अर्थव्यवस्था के पटरी पर लौटने के संकेत मिलने लगे हैं।
ऐसा ही एक मजबूत संकेत जीएसटी संग्रह में बढ़ोतरी का होना है। जुलाई में केंद्र सरकार ने 1,16,393 करोड़ रुपए जीएसटी राजस्व एकत्र किया है जो पिछले साल के जुलाई महीने के मुकाबले 33 फीसद ज्यादा है। हालांकि पिछले साल कोरोना की पहली लहर के कारण जुलाई महीने में सारी आर्थिक गतिविधियां प्रभावित हुई थीं। वही जून में जीएसटी राजस्व संग्रह एक लाख करोड़ रुपए से कम यानी 92,849 करोड़ रुपए रहा था। बढ़े हुए राजस्व संग्रह ने पहली तिमाही में राजकोषीय घाटे को नियंत्रित करने में भी मदद की है, जो आठ साल से निचले स्तर पर आ गया था। आंकड़े जारी करने के साथ वित्त मंत्रालय ने एक बयान में कहा है कि आने वाले महीने में भी मजबूत जीएसटी राजस्व जारी रहने की संभावनाएं हैं।
ग्लोबल रेटिंग एजेंसी एसऐंडपी के मुताबिक 2021 के मध्य तक भारतीय अर्थव्यवस्था ‘रिकवरी ट्रैक’ पर होगी। एसऐंडपी का मानना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में तेजी से सुधार, रिजर्व बैंक आॅफ इंडिया की ओर से उठाए गए कदम और भारत सरकार के प्रयासों से अर्थव्यवस्था में आई गिरावट कम हो रही है। भारतीय बैंकिंग व्यवस्था भी वर्ष 2023 के मध्य तक वापस अपनी रफ्तार पकड़ लेगा।
हालांकि खुदरा बाजार के व्यापारियों के संगठन यह नहीं मानते कि जीएसटी संग्रह में बढ़ोतरी का अर्थव्यवस्था में सुधार से कोई लेना-देना है। कन्फेडरेशन आफ इंडियन ट्रेडर्स के मुताबिक बाजार में अभी भी कम उपभोक्ता? आ रहे हैं। आइएमएफ ने वित्त वर्ष 2201-22 के लिए भारत के विकास अनुमान को 12.5 प्रतिशत से घटा कर 9.5 फीसद कर दिया है। आइएमएफ के ताजा विश्व आर्थिक आउटलुक के अनुसार चालू वित्त वर्ष के लिए भारत में आइएमएस द्वारा किए गए विकास अनुमानों में सबसे बड़ी गिरावट देखी है। यहां तक कि वैश्विक आर्थिक विकास दर छह फीसद बनी हुई है।
अगर देश में कोरोना की एक और लहर आती है तो जीडीपी विकास का अनुमान और घट सकता है। दुनिया के अन्य देशों की तुलना में भारत में दूसरी लहर वास्तव में विनाशकारी थी। महामारी की दूसरी लहर ने भारत को बुरी तरह से प्रभावित किया है। राजकोषीय समर्थन विभाजन का एक और कारण है जब महामारी दूसरी लहर आई तो भारत में मुफ्त भोजन कार्यक्रम शुरू किया। भारत ने पचहत्तर फीसद टीकाकरण की खरीद की है, लेकिन और अधिक किया जा सकता है, जैसे एमएसएमई आदि की मदद करना।
’रूबी सिंह, गोरखपुर, उप्र
गायब होती मिठास
‘गन्ने की कड़वाहट’ (संपादकीय, 4 अगस्त) पढ़ा। गन्ना मिलें गत कई वर्षों से कृषकों के गन्ने का भुगतान करने में बहुत देरी करती हैं। उन्हें पचासों चक्कर लगवाती हैं और उसके बाद भी उन्हें पूरा भुगतान नहीं मिल पाता है। एक अनुमान के अनुसार, लगभग आठ हजार करोड़ रुपए किसानों का गन्ना मिलों पर लेना बकाया है। अब सुप्रीम कोर्ट को इसकी यथाशीघ्र सुनवाई कर के कृषकों के बकाया धान का तत्काल भुगतान करने के आदेश देना चाहिए।
शक्कर मिलें शक्कर बेचने के साथ ही अल्कोहल बनाने में प्रयुक्त होने वाला मौलाशीश बेच कर भी करोड़ों रुपए का मुनाफा कमा रही हैं! मगर प्रभावशाली लोगों की मिलें होने के कारण राजनीतिक और शासकीय स्तर पर किसानों की सुनवाई करने वाला कोई नहीं है! किसानों की हालात ऐसी भी नहीं है कि वे सुप्रीम कोर्ट तक जा सकें और उसका खर्च वहन कर सकें! सभी गन्ना उत्पादक किसान मिल कर इसका खर्च उठा रहे हैं! सरकार को किसानों की लाचारी को देखते हुए मिलों से गन्ने का बकाया तत्काल देने का आदेश देने चाहिए। साथ ही अब नगद खरीदी में ही गन्ना खरीदने के सख्त निर्देश दिए जाने चाहिए!
’विभुति बुपक्या, आष्टा, मप्र