केंद्र सरकार ने कृषि और श्रम विधेयकों को संसद में पास करवा कर अपनी शोषणकारी नीतियों को एक बार फिर से उजागर कर दिया है। पिछले कुछ सालों में बड़ी संख्या में किसानों की आत्महत्या के पीछे सबसे बड़ा कारण ही सरकारों की किसान विरोधी नीतियां रही हैं। किसानों की खुदकुशी की ज्यादातर घटनाएं इसीलिए हुई हैं क्योंकि ज्यादातर किसानों को फसलों का समुचित मूल्य न मिलने और प्राकृतिक कारणों के फसलें चौपट हो जाने के कारण वे कर्ज में डूब गए थे। लेकिन सरकार ने किसानों के हितों पर कुठाराघात करते हुए दलालों, आढ़तियों और बड़े पूंजीपतियों के पक्ष में तीन काले कानूनों को ध्वनिमत से पास करा लिया है।
इतना ही नहीं, सरकार ने देश के करोड़ों मजदूरों के खिलाफ भी तीन काले कानून पास करा लिए। अब इन काले कानूनों की मदद से तीन सौ मजदूरों वाली कंपनियां भी अब बगैर किसी अड़चन के उन मजदूरों को निकाल बाहर कर सकती हैं, जबकि पहले यह केवल सौ मजदूरों वाली कंपनियों तक ही सीमित था।
ये सारे कानून सीधे तौर पर मजदूर विरोधी और पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाने वाले हैं। लेकिन हैरानी की बात यह है कि इन कानूनों को भी सरकार के मंत्री मजदूरों के हित के ऐतिहासिक महत्त्व के कानून बता रहे हैं। श्रम मंत्री ने कहा कि ‘ये कानून मजदूरों के हितों की रक्षा करेगा। ‘एक अन्य भाजपा नेता का कहना है कि ‘ यह ऐतिहासिक व प्रगतिशील श्रम सुधार है,’। श्रममंत्री का कहना है कि ‘श्रमिक यूनियनों की सभी मांगों को गंभीरता से इन बिलों में शामिल किया गया है। ‘जबकि श्रमिक यूनियनों का कहना है कि उनका कोई भी सुझाव सार्थक रूप से लगभग इन कानूनों में शामिल ही नहीं किया गया है।
बड़ा सवाल तो यह है कि ये कानून किस दृष्टिकोण से श्रम सुधार कानून हैं ? इन कानूनों में तो सीधे-सीधे 300 मजदूरों की संख्या वाली कंपनियों और पूंजीपतियों को यह अधिकार दे दिया गया है कि वे जब चाहें उन मजदूरों को बगैर कोई कारण बताए निकाल बाहर कर सकते हैं। यह कानून तो बिल्कुल मजदूर विरोधी षड्यंत्र है!
श्रम सुधार तो तब होता जब मजदूरों के हितों, मसलन उसके और उसके परिवार के सामाजिक हित और उसके भरण-पोषण, शिक्षा, स्वास्थ्य की सुरक्षा आदि की व्यवस्था की जाती। आज सेवानिवृत्ति के बाद निजी क्षेत्र में दो-ढाई हजार रुपए से ज्यादा पेंशन नहीं मिलती। यह सोचने वाली बात है कि सेवानिवृत्ति के बाद कोई कैसे दो-ढाई हजार की पेंशन से गुजारा चला सकता है। श्रम सुधारों के नाम पर मजदूरों के साथ इससे बड़ा खिलवाड़ और क्या हो सकता है!
’निर्मल कुमार शर्मा, गाजियाबाद (उप्र)