कुछ समय पूर्व एक परिचित ने कहा कि तुम्हारी आदत है कि तुम गलत की ओर झांकते ही नहीं हो, पर हर आदमी की यह सोच नहीं होती है। मैंने उनके बोलने के भावों को समझते हुए कहा कि मुझे जीवन में वही आदमी अच्छे लगते हैं जो मेरी आलोचना करे और मेरी कमी बताए। मेरी आदत ही नहीं है कि मैं नकारात्मक की ओर झांकू। मैं यह सोचता हूं कि मैं जो सोच रहा हूं, समझ रहा हूं, कर रहा हूं आदि, वह सब सुंदर से सुंदर हो। मेरे दृष्टिकोण से हर आदमी का अपना-अपना चिंतन होता है और अपनी-अपनी सोच समझ आदि होती है। जिसकी जो समझ-सोच होगी, वह वही करेगा। इसलिए हमें गलत में भी सही सोचना चाहिए।
मन है कि मानता ही नहीं है। इसमें विचारों का तांता-सा लगा रहता है। विचार विधायक भी और निषेधक भी आते हैं। विधायक चिंतन से शांति और आनंद मिलता है, जबकि निषेधक चिंतन से मन में विषाद का घेरा भर जाता है। अशांति अपना डेरा जमा लेती है। ज्यों ही निषेधक भाव अपने कदम बढ़ाए, तुरंत करने लग जाएं श्वास प्रेक्षा। और साथ-साथ में ऐसी अनुप्रेक्षा करें कि ये विचार मेरे नहीं हैं।
उस विचार को हम वहीं विराम दे दें। शुभ चिंतन की ओर अविराम मुड़ जाएं, क्योंकि सकारात्मक चिंतन हमारे जीवन का ‘पावर बैंक’ है, जो हमें हर पल कहीं भी चार्ज करता रहता है। हमारे मानस को होश और जोश से तर रखता है। विरोध हो या अवरोध मन मायूसी और उदासी से दूर रहता है। सकारात्मकता से ही चिंतन परिपक्व बनता है। उसमें गूढ़ता का स्वाद चढ़ता रहता है।
वह हमको स्वस्थ-सुंदर-उपयोगी बनाता है और उन्नति पथ की ओर बढ़ाता है। जब कि नकारात्मक चिंतन मन को निराशा की बेड़ियों में बांध देता है और प्रगति को रोक देता है। हिंसक भावों को जन्म देता है। हर पल मन में खीझ और क्रोध को उत्पन्न करता है। इसलिए कभी भी, कहीं भी अच्छे चिंतन की ओर हमारी सोच नहीं भी जाए, पर कम से कम नकारात्मक तो न बनें।
प्रदीप छाजेड़, बोरावड़, राजस्थान।
प्लास्टिक से नुकसान
स्वच्छता का लक्ष्य और स्वच्छ भारत का सपना तब तक पूरा नहीं हो सकता, जब तक प्लास्टिक का प्रयोग शत-प्रतिशत बंद नहीं होता। हमारे देश में प्लास्टिक कचरा भी बढ़ता जा रहा है। कूड़े के ढेर में सबसे ज्यादा पालीथिन बैग ही नजर आते हैं। प्लास्टिक के कचरे को जला कर भी नष्ट नहीं किया जा सकता। इसे जलाने से जहरीली गैस निकलती हैं।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार, देश में सबसे ज्यादा प्लास्टिक कचरा बोतलों का भी होता है। प्लास्टिक का दिन-प्रतिदिन बढ़ता प्रयोग लोगों की सेहत पर तो भारी पड़ ही रहा, साथ ही प्रकृति को दूषित कर रहा और भूमि की उत्पादन क्षमता को भी कम कर रहा। यह शहरों की सुंदरता में भी ग्रहण लगा रहा। पालीथिन के बैग धरती के नीचे बारिश के पानी को जाने से रोकता है। कुछ लोग प्लास्टिक को कूड़ा-करकट के साथ जलाते हैं, लेकिन शायद वे यह नहीं जानते कि इससे जो जहरीला धुआं निकलेगा वह कई बीमारियों को भी जन्म देता है।
राजेश कुमार चौहान, जलंधर।
हादसे की जिम्मेदारी
बड़ी-बड़ी घटनाओं-दुर्घटनाओं में बड़ी मछली बच जाती है और छोटे कर्मचारियों को दंडित कर इतिश्री कर दिया जाता है। किसी भी विभाग को देखने के लिए प्रशासनिक स्तर पर पिरामिड आकर की व्यवस्था है। उच्च स्तर पर प्रबंधन और मंत्रालय होता है। किसी भी कार्य की उपलब्धि का श्रेय सरकार लेती है। मंत्री फीता काटते हैं, झंडी दिखाते हैं, फिर नाकामी पर कोई जिम्मेवारी क्यों नहीं लेता है? जिम्मेवारी लेना नैतिकता की तकाजा है।
लालबहादुर शास्त्री से लेकर अन्य राजनेता तक अपनी नैतिकता के आधार पर त्याग पत्र दे चुके हैं, लेकिन आज के जमाने में किसी नेता से नैतिकता की उम्मीद करना भी बेमानी है। ओड़ीशा की रेल दुर्घटना में अब तक कई बातें सामने आ रही हैं। इलेक्ट्रानिक इंटरलाकिंग सिस्टम के जरिए ट्रेन का ट्रैक तय किया जाता है। इस व्यवस्था का उद्देश्य यह है कि किसी भी ट्रेन को तब तक आगे बढ़ने का संकेत नहीं दिया जाता, जब तक आगे का मार्ग सुरक्षित न हो जाए।
रेल मंत्री ने कहा कि यह एक अलग मुद्दा है। जबकि इलेक्ट्रानिक इंटरलाकिंग के दौरान जो बदलाव हुए। उसके कारण यह हादसा हुआ। यह किसने किया और कैसे हुआ, इसका पता उचित जांच के बाद लगेगा और इस हादसे की जिम्मेदारी तय की जानी चाहिए।
प्रसिद्ध यादव, बाबूचक. पटना</p>
नाश का नशा
नशा धर्म और धन दोनों का नाश करता है। नशा मुक्ति आंदोलन के द्वारा समाज में जागरूकता लाने के लिए कई संस्थाएं कार्यरत हैं। लेकिन नशे के आदी लोग इसको गौण समझने लगे हैं। जब व्यक्ति शराब के नशे में होता है, तब उसे अच्छे-बुरे का खयाल नहीं रहता है। नशा शब्द का नाम ही पतन की ओर ले जाने वाला है। हमारे देश में नशाखोरी बढ़ रही है। नशा कोई भी हो बुरा ही है।
फिर यह शराब का नशा तो धर्म और धन दोनों का नाश करता है। विवेक को समाप्त करता है। समाज के शुभचिंतकों को चाहिए कि समाज में ऐसा माहौल पैदा करे, जिससे शराब का आदी शराब से दूर रहकर जीवन में प्रगति कर सके। शराब विष के समान है और मृत्यु का आमंत्रण पत्र है। कुलीन को कुलहीन करने वाली शराब पर विशेष तौर पर दो राज्यों में रोक है। शराब में फंसना बुद्धिमानी नहीं, बल्कि मूर्खता का सूचक है।
यह किसी से छिपा नहीं है कि शराब के दुश्चक्र में फंसने वाली गरीब और कमजोर आबादी पीढ़ी-दर-पीढ़ी उसी अमानुषिक परस्थिति में जीने के को सहज मानती है और उससे निकलने के लिए कोई विशेष प्रयत्न नहीं करती। इससे यह भी जाहिर होता है कि शराब एक व्यक्ति और समुदाय को उसकी खराब या अच्छी स्थिति को लेकर अभ्यस्त कर देती है।
कांतिलाल मांडोत, सूरत।