‘दम तोड़ती नदियां’ (22 अक्तूबर) पढ़ा। यह सही है कि गावों में कृषि के लिए सिंचाई और शहरों में उद्योगों को पानी की आवश्यकता के नाम उसका दोहन कर लिया जाता है। जो नदियां बारिश में बाढ़ का रूप लेती हैं, कुछ ही दिनों बाद उनका पानी इन कार्यों में उपयोग कर नदियों को सुखा दिया जाता है। नदियों में जगह-जगह बांध बना कर उनके प्रवाह को रोका जा रहा है।
नदियों के सूखने से पृथ्वी का प्राकृतिक सौंदर्य भी समाप्त हो रहा है। प्रत्येक गांव और शहर के पास कोई न कोई नदी अपना सौंदर्य बिखेरती चलती थी, जिसमें गांव के लोग अपने नित्य के कार्य करते थे और नदियां पशुओं की प्यास बुझाने का साधन भी हुआ करती थीं। नदियों में बारह महीने पानी बहते रहने से कुओं, तालाबों और ट्यूब वेल में जल स्तर बना रहता था।
मध्य प्रदेश की जीवन धारा कहलाने वाली नर्मदा नदी को सरकार द्वारा शहरों को पीने के पानी उपलब्ध कराने के नाम पर सुखा दिया है और कल-कल बहती नदी के प्रवाह को कम कर दिया गया है। हर वर्ष देश भर की बड़ी नदियों में बारिश की दिनों में अतिवर्षा से बाढ़ की खबरें आती हैं, जिससे फसलों के साथ जान-माल का भारी नुकसान होता है।
भारत सरकार द्वारा अलग से जल शक्ति मंत्रालय बनाया गया है, पर जल संचय योजना पर अभी तक कोई ठोस काम नहीं हुआ है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की नदी जोड़ने की योजना भी एक सपना बन कर रह गई है। इस दिशा में भी सरकारों ने कोई विशेष ध्यान नहीं दिया है। नर्मदा-क्षिप्रा नदियों को जोड़ा गया है, लेकिन इसका पानी विशेष स्नान पर्वों पर ही छोड़ा जाता है।
’यशवंत गोरे, होशंगाबाद रोड, भोपाल, मप्र
दोस्ती का दौर
देखा जाए तो यह साल किसी भी नजरिए से अच्छा नहीं रहा है। चाहे वो कोरोना की मार रही हो या चीन से सीमा पर विवाद। देश को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा, पर देशवासियों ने साहस दिखाया और सरकार द्वारा उठाए कदमों का आदर कर इन चुनौतियों से निपटने का अडिग साहस का परिचय दिया। इन परिस्थितियों में भारत के मददगार देशों ने भी साथ मिल कर काम कर देश को दुबारा पटरी पर लाने की जोरदार भूमिका निभाई। इन्हीं दिनों नए आयाम रच रही भारत-अमेरिका की दोस्ती एक नए मुकाम पर आने की कोशिश में है।
अमेरिका ने बीते दिनों हरसंभव प्रयास किया, चाहे वह आर्थिक सहायता हो या चीन विवाद से संबंधित मामलों में मदद का भरोसा। उम्मीद है कि अब दोनों देशों के बीच हुई ताजा वार्ता हमारे देश की अर्थव्यवस्था और सुरक्षा के लिए अहम साबित होगी।
’सुशीला चिलवाल, हल्द्वानी, उत्तराखंड
दूरदर्शिता से दूर
बड़प्पन की लालसा अच्छी है, मगर इसके लिए बड़ा संघर्ष जरूरी है और इसी से ही आगे बढ़ा जा सकता है। विजयादशमी के मौके पर आरआरएस प्रमुख मोहन भागवत ने भारत को चीन से बड़ा होने की इच्छा जताई है। ऐसा अवश्य हो सकता है, मगर इसके लिए युद्ध स्तर पर बड़े दूरदर्शी कार्यक्रम से प्रयास करने होंगे। अब तक की सभी पार्टियां और सरकारें दुर्भाग्य से दूरदर्शिता से दूर रही हैं।
आज जनसंख्या घनत्व की दृष्टि से भारत चीन से शायद आगे है, मगर अन्य बातों में यह चीन से बहुत पीछे है। यही नहीं, आज तो जीडीपी को लेकर पड़ोसी देश बांग्लादेश से भी दुर्भाग्य से हम पीछे हैं। इसलिए अब इसके आगे आने के लिए इसे दूरदर्शी सोच और कार्यक्रम के साथ युद्ध स्तर पर ही आगे बढ़ना होगा, तभी यह संभव होगा। इसके लिए एक समान कानून से जनसंख्या नियंत्रण, सभी के लिए योग्यतानुसार समान रोजगार और हर क्षेत्र में दूरदर्शी ठोस योजना के साथ जनविरोधी निजीकरण को सिरे से नकारते हुए तेजी से आगे बढ़ना होगा। तभी यह संभव है।
’वेद मामूरपुर, नरेला, दिल्ली
