इसी का कारण है कि संसद में अलग-अलग विचारधारा के लोगों की कमी है। भगतसिंह जैसे क्रांतिकारी भी विचारधारा के महत्त्व पर बल देते थे।
विभिन्न विचारधाराओं के व्यक्तियों की उपस्थिति से संसद में न सिर्फ बहस के स्तर में सुधार होगा, बल्कि एक मुद्दे पर कई तरह के पहलू भी पटल पर आएंगे। यही लोकतंत्र की ताकत होती है। इसीलिए संसद में न सिर्फ एक विचारधारा किंतु उसके अलावा कुछ मात्रा में पूंजीवादी, समाजवादी, गांधीवादी, रूढ़िवादी तो इनके साथ ही उदारवादी और वामपंथी विचारधारा की उपस्थिति में भी परिवर्तन में सहायक है।
आजादी के समय बनी पहली लोकसभा इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। देश के लिए मजबूत सरकार जितनी महत्त्वपूर्ण है, उतना ही महत्त्वपूर्ण मजबूत विपक्ष का होना भी है। इसीलिए व्यक्ति के साथ विचारधारा पर भी बल दिया जाना चाहिए।
’मोहित पाटीदार, धामनोद (मप्र)
आसमान छूते दाम
देशवासियों को महंगाई के लगातार झटके लग रहे हैं। देशभर में पेट्रोल और डीजल तो नित नए रिकार्ड तोड़ ही रहे हैं, अब रसोई गैस भी महंगी कर दी गई। दिल्ली में रसोई गैस के दाम झटके से पचास रुपए बढ़ा दिए गए।
इस बढ़ोतरी के बाद राजधानी में गैर सबसिडी वाले एलपीजी सिलेंडर की कीमत 719 से बढ़ कर 769 रुपए हो गई है। सरकारी तेल कंपनियां चो आ दिन पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ाती ही जा रही हैं। कई शहरों में पेट्रोल सौ रुपए के पार निकल गया है। पिछले साल दिसंबर से लेकर अब तक सिलेंडर के दाम में कई बार बढ़ोतरी हुई है और इससे पहले चार फरवरी को भी सिलेंडरों के दाम 694 रुपए से बढ़ा कर 719 रुपए किए गे थे।
उल्लेखनीय है कि पेट्रोल और डीजल पर कर बढ़ाना या कम करना सरकार की जरूरतों और बाजार की स्थिति जैसे कई पहलुओं पर निर्भर करता है। लेकिन सरकार को बढ़ते दामों पर अवश्य ही ध्यान देना चाहिए क्योंकि बढ़ते दामों का असर हर वर्ग के लोगों की आमदनी पर पड़ता है और घर का बजट प्रभावित होता हैं।
’निधि जैन, लोनी (गाजियाबाद)
खतरा बरकरार
अमेरिक के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एक बार फिर महाभियोग से बच गए। ये तो होना ही था। महाभियोग के लिए तीन चौथाई की बहुमत की जरुरत थी, इसलिए ये सफल न हो सका। अब डेमोक्रेटिक पार्टी को चाहिए कि वह पूरे अमेरिका में घूम-घूम कर लोगों को ये बताए कि छह जनवरी को अमेरिका में लोकतंत्र के साथ जो हुआ था, उसमें प्रत्यक्ष हाथ डोनाल्ड ट्रंप का तो था ही, साथ में जिन 43 रिपब्लिकनों ने ट्रंप के पक्ष में मतदान किया, वे भी कैपिटोल हिल को तहस-नहस करने के पक्षधर हैं और इस साजिश में शामिल रहे।
इस मतदान के बाद ट्रंप का बयान आया है कि वे पुनर्वापसी तो करेंगे ही, साथ में अपनी विचारधारा को और जोरशोर से बढ़ावा देंगे। इसलिए खतरा अभी टला नहीं है। बाइडेन को विभाजित अमेरिका विरासत में मिला है। उन्हें काफी सोच समझ कर नीतियां बनानी होंगी।
’जंग बहादुर सिंह, गोलपहाड़ी,जमशेदपुर
शराब से कमाई !
जाहिर है, मिजोरम, गुजरात, नगालैंड और बिहार राज्य शराब मुक्त हो कर राजस्व के अन्य वैकल्पिक स्त्रोत से विकास कार्य सम्पन्न कर रहे हैं। देश के विभिन्न राज्यों में जहरीली शराब के कारोबार के हश्र से सभी परिचित होने के बाद भी “शराब से राजस्व” पर सरकारों की निर्भरता कम नहीं हो रही है। इसी के मद्देनजर शराब व नशा उन्मूलन, शराबबंदी, जनजागरण और दुकानें कम करने जैसी मांगे अवश्य उठाई जा रही हैं, क्योंकि इसकी गिरफ्त में सबसे ज्यादा तो नौजवान हैं।
फिर भी सख्ती से पालन के लिए समय आने पर केंद्र और राज्य सरकारें आगे नहीं आतीं। सच यह भी है कि पूर्ण शराब बंदी संभव नहीं है, किंतु क्रमश: उन्मूलन हेतु विभिन्न विकल्पों से भी राजस्व अर्जित कर शराब से राजस्व पर निर्भरता कम की जा सकती है। इसलिए केंद्र सरकार को ऐसी नीति बनाना चाहिए जो सभी राज्यों पर समान रुप से लागू हो और शराब से राजस्व प्राप्ति पर शासन की निर्भरता भी कम कर सके।
’बीएल शर्मा”अकिंचन”, उज्जैन
विपक्ष है कहां!
लोकतांत्रिक व्यवस्था में राजनीतिक दलों का स्थान केंद्रीय अवधारणा के रूप मे अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। हमारे देश मे राजनीतिक दलों की संख्या बहुत अधिक है। परंतु राष्ट्रीय स्तर पर गिने-चुने दल हैं और क्षेत्रीय दलों की भरमार है।
ये सभी दल राष्ट्रीय, राज्यीय और स्थानीय स्तर पर चुनावों मे अपना प्रदर्शन करते हैं। चुनावों के बदलते स्वरूप में आजकल सभी दल धर्म और जातिगत आधार पर राजनीतिक रोटियां सेंकते हैं जिसके परिणाम स्वरूप हिंसक घटनाओं और समाज में तनाव तेजी से बढ़ता जा रहा है। धर्म और जाति को चुनावी मुद्दा बना कर लड़े जाने वाले चुनाव लोगों में आपसी भाईचारे और सौहार्द को कम करने पर तुले हुए हैं।
जिस देश मे हिंदू- मुसलिम-सिख-ईसाई : आपस में सब भाई-भाई जैसे नारे दिए जाते थे, वहां अब गंदी राजनीति ने सभी लोगों को एक दूसरे का दुश्मन बना डाला है। देश में जिस तरह अलग-अलग मुद्दों पर आंदोलन शुरू हुए, वे भी किसी न किसी राजनीतिक दल के संरक्षण और समर्थन के शिकार हो जाते हैं। किसी भी लोकतांत्रिक देश में सर्वसम्मति से चुनी गई सरकार के साथ मजबूत और सार्थक विपक्ष हो, तभी उस राजनीति के सही मायने जनता को समझ आ सकते हैं।
’नरेश कानूनगो, बंगलूरू
दरिंदों को सजा
शायद ही कोई दिन ऐसा जाता है कि दरिंदों द्वारा कोई घटना को अंजाम न दिया जाए। नाबालिगों के साथ शोषण, छेड़खानी और बलात्कार की घटनाएं रोजाना सुर्खियां बनती हैं। महिलाओं के साथ होने वालों इन अशोभनीय घटनाओं से हमारी संस्कृति और सभ्यता अकेले में आंसू बहाती रहती है। ये घटनाएं यह सोचने पर विवश करती हैं कि इन्हें इंसाफ जल्दी क्यों नही मिल पाता। क्यों नहीं ऐसे दरिंदों को क्यों सरेआम सजा दी जाती?
’योगेश जोशी, बड़वाह (मप्र)