अतिमहत्त्वपूर्ण लोगों की सुरक्षा घेरे में रहने वाले हुक्मरान और नेता बड़े-बड़े दावे करते हैं कि देश की राजधानी दिल्ली लड़कियों के लिए सुरक्षित स्थान है, जहां वे रात में भी अकेली चल सकती हैं। लेकिन दिल्ली के द्वारका की घटना ने सबके दिल को दहला कर रख दिया है। तेजाबी हमले की शिकार छात्रा का चेहरा लहूलुहान हो गया। इसके साथ ही उसके न जाने कितने अरमानों, कितने सपनों को कुछ निर्मम हाथों ने मिटा दिया। आरोपी भले ही पुलिस के गिरफ्त में है, उसे सजा भी हो जाएगी, लेकिन क्या पीड़िता उस दर्द से कभी भी उबर पाएगी? उसके माता-पिता पर क्या गुजर रही होगी? उसके दर्द को कौन समझेगा?
कानून की बात करें तो देश में तेजाबी हमले करने वाले आरोपियों के लिए सख्त सजा का प्रावधान किया गया है, लेकिन फिर भी बहुत ही कम मामलों में पीड़िता को न्याय मिल पाता है। आंकड़े बताते हैं कि देश भर में हर साल डेढ़ सौ से ज्यादा लड़कियां किसी मनचले या सिरफिरे के हाथों तेजाबी हमले का शिकार होती हैं।
क्या लड़कियों या महिलाओं को इस त्रासदी से निजात दिलाने का रास्ता सरकार के पास है? या सरकार ने खुद को इस मामले में लाचार घोषित कर दिया है? न सरकार महिलाओं को तेजाब के दंश से मुक्ति दिलाने को लेकर कभी ठोस पहल करती हैं, न समाज अपने घर के लाडले बेटों को हैवान के बजाय इंसान बनाने के लिए बचपन से उन्हें संवेदना की सीख देने को तैयार है। ऐसे में इस समाज और घरों की लड़कियां कितनी सुरक्षित हैं?
जयप्रकाश नवीन, नालंदा, बिहार</strong>