आमतौर पर तथाकथित बाबाओं के सत्संग में गरीब और कम पढ़े-लिखे लोग जाते हैं। यही बात नेताओं की सभाओं पर कुछ हद तक लागू होती है! देश की प्रगति से लाभ उठाने वाले लोग ऐसे कार्यक्रमों से दूर रहते हैं। ऐसा लगता है कि सपने खरीदने के लिए गरीब लोग अधिक व्याकुल रहते हैं और इनको सपने बेच कर आप या तो बाबा बन जाते हैं या नेता! अभी टीवी चैनलों पर आपने रामपाल के सतलोक आश्रम से निकलने वाली भीड़ देखी होगी। आप जानते हैं कि उसमें कौन लोग थे यानी समाज के किस तबके के लोग थे? क्या आपको यह देख कर दुख नहीं होता कि आपके भाई-बहनों को कोई उल्लू बना रहा है। इन नकली बाबाओं से देश की जनता को मुक्ति दिलाना बेहद जरूरी है।
’सुभाष लखेड़ा, द्वारका, नई दिल्ली
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